उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफ़े को लेकर राजनीतिक गलियारों में अटकलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन 74 वर्षीय धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन विपक्ष ने इस दावे पर संदेह जताते हुए सरकार से जवाब माँगा है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस्तीफे पर सवाल उठाते हुए कहा, “सरकार को बताना चाहिए कि उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया। उनकी तबीयत एकदम ठीक है। उन्होंने हमेशा आरएसएस और बीजेपी का बचाव किया। फिर अचानक इस्तीफा क्यों? साफ है कि 'दाल में कुछ काला है'।”

खड़गे, जिनकी राज्यसभा में धनखड़ से कई बार तीखी बहसें हो चुकी हैं, ने आरोप लगाया कि यह इस्तीफा किसी गहरे राजनीतिक घटनाक्रम का संकेत देता है।

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इसी तरह, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी सरकार पर तंज कसा। उन्होंने कहा, “हमारे लोकप्रिय उपराष्ट्रपति ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया, लेकिन कोई भी बीजेपी नेता उनका हालचाल लेने तक नहीं गया। इससे साफ है कि दाल में कुछ काला है।”

इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो पूर्व में धनखड़ की कटु आलोचक रही हैं, ने भी चौंकाते हुए कहा कि “धनखड़ एकदम स्वस्थ हैं और अच्छा महसूस कर रहे हैं। कुछ सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी ने भी इस मामले को और पेचीदा बना दिया। इस्तीफे के 15 घंटे बाद पीएम मोदी ने एक छोटा सा ट्वीट किया, जिसे कांग्रेस ने राजनीतिक संकेतों से भरा बताया।

कांग्रेस के लोकसभा में उपनेता गौरव गोगोई ने कहा, “एक संवैधानिक पद की गरिमा उसकी कार्यप्रणाली में ही नहीं, बल्कि इस्तीफे में भी झलकनी चाहिए। पीएम मोदी का ट्वीट इस इस्तीफे की राजनीतिक स्थिति को बताता है।”

टकराव की वजह क्या जस्टिस यशवंत वर्मा विवाद 

सूत्रों के अनुसार, धनखड़ के इस्तीफे के पीछे एक प्रमुख कारण अदालत को लेकर उपजे विवाद को माना जा रहा है। दरअसल, धनखड़ ने विपक्षी सांसदों द्वारा लाए गए प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। वर्मा के आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद यह प्रस्ताव सामने आया था।

सरकार इस मुद्दे को लोकसभा में उठाकर खुद को भ्रष्टाचार विरोधी नायक के रूप में प्रस्तुत करना चाहती थी, लेकिन धनखड़ द्वारा राज्यसभा में विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने से सरकार की योजना धरी की धरी रह गई। इस कदम को सत्ता पक्ष के लिए शर्मिंदगी का कारण माना जा रहा है।

धनखड़ के इस फैसले को लेकर सरकार बेहद असहज थी और राजनीतिक हलकों में यह चर्चा शुरू हो गई थी कि उन्हें पद छोड़ने के लिए 'विकल्पहीन' बना दिया गया।

क्या आगे और खुलासे होंगे? 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं है। इस घटनाक्रम ने सत्ता के गलियारों में गहराई से चल रही खींचतान, अधिकारों की लड़ाई और संवैधानिक पदों की गरिमा को लेकर नई बहस छेड़ दी है।

विपक्ष ने साफ कर दिया है कि वे इस मुद्दे को संसद के भीतर और बाहर उठाएंगे। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य दलों ने मांग की है कि सरकार पारदर्शिता बरते और स्पष्ट करे कि एक स्वस्थ उपराष्ट्रपति ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया।

आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद की कार्यवाही में केंद्र में रह सकता है, जिससे मानसून सत्र की गरिमा और दिशा दोनों प्रभावित हो सकते हैं।