आज से लगभग 11 साल पहले की बात है, जब नरेंद्र मोदी ने 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने और 26 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पहली बार बहुत बड़ी संख्या में लोगों को संबोधित किया था। मौक़ा था 5 सितंबर, ‘शिक्षक दिवस’ का (2014)। उनके संबोधन को देश के लगभग 18 लाख सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में लाइव चलाया गया था। लोगों को लगा था कि पीएम मोदी कोई बहुत बड़ी और ज़रूरी बात कहने वाले हैं इसीलिए तो पूरे देश के स्कूलों को जोड़ा गया था। प्रधानमंत्री ने लगभग 120 मिनट का मैराथन भाषण भी दिया, जिसे देश के करोड़ों छोटे-बड़े विद्यार्थियों और शिक्षकों ने सुना और उस वादाई भाषण के गवाह बने। पीएम मोदी ने कहा कि “दुनिया भर में अच्छे शिक्षकों की माँग है… क्या हम यह सपना नहीं देख सकते कि हम उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षक दुनिया को भेजें? क्या हम अपने युवा छात्रों को शिक्षक बनने और राष्ट्र की सेवा करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते?”
शिक्षकों को बाहर भेजने का मोदी का सपना 11 साल पुरानी फैंटेसी है और कुछ नहीं!
- विमर्श
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- 7 Sep, 2025

2014 में पीएम मोदी ने शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को वैश्विक स्तर पर भेजने का वादा किया था। 11 साल बाद 2025 में न शिक्षा पर निवेश बढ़ा, न सपना पूरा हुआ। शिक्षा, स्कूल और शिक्षकों की बदहाली की सच्चाई पढ़ें।
जिस देश में शिक्षकों की इतनी बड़ी कमी थी वहाँ के लिए यह सपना दिखाना बहुत बड़ी बात थी। ऐसा लग रहा था कि पीएम मोदी सचमुच कुछ नया करना चाह रहे हैं। 2 महीने बाद ही 25 दिसंबर 2014 को, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ‘पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक और शिक्षण मिशन’ के शुभारंभ के दौरान मोदी ने फिर से सपना दिखाया कि देश में ‘पाँच वर्षीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम’ की ज़रूरत है और भारत को दुनिया भर में उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों को भेजने का लक्ष्य रखना चाहिए, क्योंकि वैश्विक स्तर पर इसकी मांग है। उस वक़्त पीएम लगातार एक ही बात दोहरा रहे थे जो कि एक सकारात्मक और नया संकेत था और यह इतनी बड़ी बात भी नहीं थी जिसे पूरा नहीं किया जा सकता था, क्योंकि प्रधानमंत्री पद को संविधान ने और देश की संसद ने इतनी ताक़त दी है कि वो ऐसे लक्ष्यों को अपने भाषणों में कह सकता है, दोहरा सकता है और पूरा भी करा सकता है। बस महत्वपूर्ण बात इतनी सी है कि प्रधानमंत्री मोदी जो कह रहे थे उसे पूरा करने की नीयत भी रखते।