भारत सरकार सस्ते चीनी स्टील आयात पर 12% अस्थायी टैरिफ़ लगाने जा रही है। यह कदम घरेलू स्टील उद्योग को बचाने के लिए उठाया जा रहा है, लेकिन इससे भारत-चीन व्यापार संबंधों में नया मोड़ आ सकता है। जानिए, क्या असर होगा।
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा स्टील उत्पादक देश भारत ने सस्ते सामानों की डंपिंग के ख़तरे को देखते हुए एक बड़ा क़दम उठाया है। इसने सस्ते स्टील आयात, खासकर चीन से आने वाले स्टील को रोकने के लिए टैरिफ़ लगाने की तैयारी की है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार ने कुछ स्टील उत्पादों पर 12% का अस्थायी टैरिफ़ लगाने का फ़ैसला किया है। इसे स्थानीय रूप से 'सेफगार्ड ड्यूटी' कहा जाता है। रिपोर्ट है कि यह टैरिफ़ 200 दिनों के लिए प्रभावी होगा और इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय स्टील उद्योग को सस्ते आयात से होने वाले नुक़सान से बचाना है। यह क़दम न केवल भारत की आर्थिक नीतियों में बदलाव को दिखाता है, बल्कि वैश्विक व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद की बढ़ती प्रवृत्ति को भी दिखाता है।
भारत पिछले दो वर्षों से तैयार स्टील का शुद्ध आयातक रहा है। 2024-25 वित्तीय वर्ष में भारत ने 95 लाख मीट्रिक टन स्टील का आयात किया, जो नौ साल में सबसे अधिक है। इसमें से 78% आयात चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से हुआ, जिसमें चीन का हिस्सा विशेष रूप से बड़ा रहा। दुनिया का सबसे बड़ा स्टील उत्पादक चीन अपनी अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को कम क़ीमतों पर वैश्विक बाज़ारों में उतार रहा है। इस 'डंपिंग' रणनीति ने भारतीय स्टील उद्योग, खासकर छोटे और मध्यम स्तर के स्टील मिलों, को गंभीर संकट में डाल दिया है। सस्ते आयात के कारण भारतीय स्टील की क़ीमतें गिर गई हैं, जिससे छोटे मिलों को उत्पादन कम करना पड़ा और कुछ ने नौकरियों में कटौती पर विचार शुरू कर दिया। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए टैरिफ़ ने चीनी स्टील निर्यातकों को भारत जैसे वैकल्पिक बाज़ारों की ओर मोड़ दिया, जिससे भारत में आयात का दबाव और बढ़ गया। इस स्थिति ने भारत को तत्काल कार्रवाई के लिए मजबूर किया।
बहरहाल, भारत के टैरिफ़ का यह फ़ैसला व्यापार उपचार महानिदेशालय यानी डीजीटीआर की सिफारिश पर आधारित है। इसने दिसंबर 2024 में शुरू हुई जाँच के बाद इसकी अनुशंसा की थी। डीजीटीआर ने पाया कि सस्ते आयात ने भारतीय स्टील उद्योग को 'गंभीर नुक़सान' पहुँचाया है, खासकर गैर-मिश्र धातु और मिश्र धातु स्टील फ्लैट उत्पादों के क्षेत्र में, जो निर्माण, ऑटोमोबाइल, और इंजीनियरिंग जैसे उद्योगों में उपयोग होते हैं।
इस टैरिफ़ का उद्देश्य आयातित स्टील की क़ीमत को 675 से 964 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के बीच निर्धारित करना है। यदि कोई शिपमेंट इस क़ीमत से नीचे आयात किया जाता है तो उस पर 12% सेफगार्ड ड्यूटी लागू होगी। यह क़दम भारतीय स्टील निर्माताओं को प्रतिस्पर्धी क़ीमतों पर बाज़ार में टिकने में मदद करेगा।
भारतीय स्टील उद्योग ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय स्टील संघ के अध्यक्ष नवीन जिंदल ने इसे 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम बताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की सराहना की। जेएसडब्ल्यू स्टील, टाटा स्टील, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, और आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया जैसे बड़े स्टील निर्माताओं ने लंबे समय से आयात पर अंकुश लगाने की मांग की थी। केंद्रीय स्टील मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा कि यह कदम छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों को विशेष राहत देगा, जो आयात के दबाव में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इस टैरिफ़ से स्टील की घरेलू क़ीमतों में 5% की बढ़ोतरी पहले ही दर्ज की जा चुकी है और उद्योग को उम्मीद है कि इससे उनको लाभ होगा।
हालाँकि, इस फ़ैसले का विरोध भी हो रहा है। स्टील का बड़े पैमाने पर उपयोग करने वाले ऑटोमोबाइल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्र इस टैरिफ़ से कच्चे माल की क़ीमतों में वृद्धि की आशंका जता रहे हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों यानी एमएसएमई ने चेतावनी दी है कि यह उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित कर सकता है। इसके जवाब में बड़े स्टील निर्माताओं ने एमएसएमई को रियायती क़ीमतों पर स्टील आपूर्ति करने का वादा किया है। यह टैरिफ़ भारत का पहला बड़ा व्यापार नीति क़दम है, जो अमेरिका द्वारा अप्रैल 2025 में विभिन्न देशों पर व्यापक टैरिफ़ लगाने के बाद आया है। अमेरिका ने चीन से स्टील आयात पर 25% टैरिफ़ लगाया। इस कारण चीनी निर्यातक भारत जैसे अन्य बाज़ारों की ओर मुड़ गए। भारत का यह क़दम सऊदी अरब, वियतनाम, और चिली जैसे देशों की श्रृंखला में शामिल हो गया है, जो सस्ते स्टील आयात को रोकने के लिए समान उपाय अपना रहे हैं।
वैश्विक स्टील उद्योग अतिरिक्त उत्पादन क्षमता और संरक्षणवादी नीतियों के दबाव में है। लागत से कम क़ीमत पर स्टील बेचने की चीन की 'डंपिंग' रणनीति ने वैश्विक बाजारों में घरेलू उद्योगों को कमजोर किया है। भारत का यह टैरिफ़ न केवल घरेलू उद्योग की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को मज़बूत करने का भी प्रयास है।
यह टैरिफ़ भारतीय स्टील निर्माताओं को सस्ते आयात से प्रतिस्पर्धा करने में मदद करेगा और उनकी लाभप्रदता में सुधार करेगा। अनुमान है कि इससे भारत के स्टील आयात में 50% तक की कमी आ सकती है। ऑटोमोबाइल, निर्माण, और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में कच्चे माल की लागत बढ़ने से उत्पादों की क़ीमतों में वृद्धि हो सकती है, जो अंततः उपभोक्ताओं पर असर डाल सकता है। यह क़दम भारत-चीन व्यापार संबंधों को और तनावपूर्ण बना सकता है, खासकर तब जब दोनों देशों के बीच 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं। हालांकि, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत चीन के साथ व्यापार के लिए बंद नहीं है, लेकिन यह 'क्षेत्र और शर्तों' पर निर्भर करता है। भारत सरकार स्टील निर्यात के लिए अफ्रीका, मध्य पूर्व, और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे नए बाजार तलाश रही है। साथ ही, उच्च-मूल्य और विशेष स्टील उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जहां चीनी प्रतिस्पर्धा कम है। इसके अलावा, कोकिंग कोल जैसे कच्चे माल के स्रोतों में विविधता लाने के लिए कनाडा, रूस और मंगोलिया जैसे देशों के साथ बातचीत चल रही है।
भारत का 12% टैरिफ़ का फ़ैसला घरेलू स्टील उद्योग को सस्ते आयात से बचाने के लिए यह ज़रूरी क़दम है। यह न केवल छोटे और मध्यम उद्यमों को राहत देगा, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा देगा। हालाँकि, इस क़दम के कुछ जोखिम भी हैं। व्यापक टैरिफ़ नीतियाँ महंगाई को बढ़ा सकती हैं और उन उद्योगों को नुक़सान पहुँचा सकती हैं जो आयातित स्टील पर निर्भर हैं, खासकर तब जब भारत में उच्च-ग्रेड विशेष स्टील का उत्पादन अभी सीमित है। भारत का 12% सेफगार्ड ड्यूटी लगाने का फ़ैसला वैश्विक व्यापार युद्ध के दौर में एक रणनीतिक क़दम है। यह घरेलू स्टील उद्योग को सस्ते चीनी आयात से बचाने और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को मज़बूत करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। हालांकि, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह टैरिफ़ उपभोक्ता उद्योगों पर अनावश्यक बोझ न डाले और दीर्घकालिक रूप में विशेष स्टील उत्पादन को बढ़ावा दे।