गेहूँ खरीद में इस बार ग़जब हो रहा है। निजी खरीदार सरकारी दाम से भी ज़्यादा महंगा गेहूँ ख़रीद रहे हैं। यानी मोटे तौर पर कहें तो गेहूं की खरीद की लूट मची है! सरकारी दाम यानी एमएसपी पर गेहूँ खरीद का सरकार का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। सरकारी मंडियाँ खाली दिख रही हैं। तो आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या गेहूँ की पैदावार कम हुई है या फिर व्यापारी कालाबजारी के लिए गेहूँ खरीदकर जमा कर रहे हैं और क़ीमतें ऊपर चढ़ने पर महंगे दामों पर बेचेंगे? गेहूं खरीद के ऐसे हालात होने का मतलब क्या है?