गेहूँ खरीद में इस बार ग़जब हो रहा है। निजी खरीदार सरकारी दाम से भी ज़्यादा महंगा गेहूँ ख़रीद रहे हैं। यानी मोटे तौर पर कहें तो गेहूं की खरीद की लूट मची है! सरकारी दाम यानी एमएसपी पर गेहूँ खरीद का सरकार का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। सरकारी मंडियाँ खाली दिख रही हैं। तो आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या गेहूँ की पैदावार कम हुई है या फिर व्यापारी कालाबजारी के लिए गेहूँ खरीदकर जमा कर रहे हैं और क़ीमतें ऊपर चढ़ने पर महंगे दामों पर बेचेंगे? गेहूं खरीद के ऐसे हालात होने का मतलब क्या है?
गेहूँ एमएसपी से भी महंगा क्यों बिक रहा है; क्या संकट का संकेत है?
- अर्थतंत्र
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- 29 Apr, 2022
गेहूँ खरीद की इस पर जैसे लूट है? निजी व्यापारी भी सरकारी खरीद से ज़्यादा पैसे किसानों को चुका रहे हैं? सरकारी खरीद के लिए भी गेहूँ कम क्यों पड़ने लगा है? जानिए वजह।

यह सवाल ख़ासकर इसलिए अहम है कि देश में अभी गेहूं की कटाई का मौसम चल रहा है और ऐसे में सरकारी खरीद बेहद कम होना चिंता की बात है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इस साल गेहूं की फसल पहले की तुलना में कम होने के कारण देश को निर्यात से सतर्क रहने की ज़रूरत है, ऐसा न हो कि आने वाले महीनों में आपूर्ति की कमी हो जाए।