कर्नाटक के आलंद में मतदाता सूची से सही वोटरों को हटाने के लिए हर फर्जी आवेदन पर 80 रुपये दिए गए थे। ऐसा कर्नाटक पुलिस की विशेष जाँच टीम यानी एसआईटी को जाँच में पता चला है। द इंडियन एक्सप्रेस ने यह ख़बर दी है। एसआईटी के अनुसार, प्रत्येक फर्जी आवेदन के लिए डेटा सेंटर ऑपरेटर को भुगतान किया गया था। दिसंबर 2022 से फरवरी 2023 के बीच कुल 6018 ऐसे आवेदन चुनाव आयोग को दिए गए थे, जिससे कुल 4.8 लाख रुपये का भुगतान हुआ। यह खुलासा लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा 'वोट चोरी' के आरोपों के बीच आया है, जिसमें आलंद सीट को उदाहरण के रूप में पेश किया गया था।

इस आलंद मामले की जाँच एसआईटी कर रहा है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि एसआईटी ने कलबुर्गी जिले के मुख्यालय में स्थित एक डेटा सेंटर को इन आवेदनों को भरने वाला केंद्र चिह्नित किया है। फरवरी 2023 में यह मामला सामने आने के बाद स्थानीय पुलिस और सीआईडी ​​साइबर अपराध इकाई द्वारा इसकी जाँच की गई थी। 26 सितंबर को मामले की जाँच अपने हाथ में लेने वाले एसआईटी की जाँच में एक स्थानीय निवासी मोहम्मद अशफ़ाक की संलिप्तता का संकेत मिला।

मोहम्मद अशफाक पर शक की सुई

2023 में पूछताछ के दौरान मोहम्मद अशफाक ने अपनी बेगुनाही का दावा किया था और अपने पास मौजूद इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सौंपने का वादा किया था। इसके बाद वह दुबई चला गया। एसआईटी ने इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड्स यानी आईपीडीआर और अशफाक से जब्त उपकरणों की जांच की। 

जांच में पाया गया कि अशफाक ने इंटरनेट कॉल के जरिए अपने सहयोगी मोहम्मद अकरम, जुनैद, असलम और नदीम के साथ संपर्क में था। पिछले सप्ताह, एसआईटी ने अकरम, जुनैद, असलम और नदीम की संपत्तियों पर छापेमारी की और कलबुर्गी क्षेत्र में मतदाता सूची में हेरफेर के लिए डेटा सेंटर संचालित होने के सबूत पाए। जांच में यह भी पता चला कि प्रति मतदाता हटाने के लिए 80 रुपये का भुगतान किया गया था।

डेटा सेंटर का संचालन 

जाँच के अनुसार, डेटा सेंटर का संचालन मोहम्मद अकरम और अशफाक द्वारा किया जा रहा था, जबकि अन्य लोग डेटा एंट्री ऑपरेटर थे। एसआईटी ने एक लैपटॉप बरामद किया है, जिसका इस्तेमाल फर्जी आवेदन जमा करने के लिए किया गया था। इसके अलावा, 17 अक्टूबर को भाजपा नेता सुभाष गुट्टेदार, उनके बेटों हर्षनंद और संतोष और उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट सहयोगी मल्लिकार्जुन महंतगोल की संपत्तियों पर छापेमारी की गई। इस दौरान सात से अधिक लैपटॉप और मोबाइल फोन जब्त किए गए। एसआईटी अब इस बात की जांच कर रहा है कि भुगतान के लिए पैसा कहां से आया।

जांच में यह भी खुलासा हुआ कि मतदाता सूची में बदलाव के लिए चुनाव आयोग के पोर्टल पर आवेदन करने के लिए 75 मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया। ये नंबर पोल्ट्री फार्म कर्मचारी से लेकर पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों तक के थे।

फर्जी क्रेडेंशियल्स का रहस्य 

एसआईटी अभी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि डेटा सेंटर संचालकों ने फर्जी क्रेडेंशियल्स का उपयोग करके चुनाव आयोग के पोर्टल तक कैसे पहुंच बनाई। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मतदाता हटाने के आवेदनों में जिन लोगों की पहचान का इस्तेमाल किया गया, उन्हें या तो आलंद के आवेदकों या संबंधित मतदाताओं को इसकी कोई जानकारी नहीं थी।

सुभाष गुट्टेदार ने आरोपों को नकारा 

चार बार के विधायक सुभाष गुट्टेदार ने मतदाता हटाने से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने दावा किया कि 2023 में आलंद से कांग्रेस के विजेता बी. आर. पाटिल ने व्यक्तिगत लाभ के लिए ये आरोप लगाए। गुट्टेदार के अनुसार, पाटिल मंत्री बनना चाहते हैं और राहुल गांधी का समर्थन हासिल करने के लिए ये आरोप लगाए गए।

कैसे पकड़ी गयी थी 'चोरी'?

यह मामला 2023 के फरवरी में तब सामने आया था जब आलंद के एक बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ ने अपनी रिश्तेदार का नाम हटाने का आवेदन देखा, जबकि वह रिश्तेदार जिंदा और क्षेत्र में ही रह रही थी। बीएलओ ने तुरंत स्थानीय चुनाव अधिकारियों को बताया। बाद में जिला आयुक्त के निर्देश पर ग्राउंड-लेवल पर सत्यापन किया गया। इसमें सामने आया कि 254 पोलिंग बूथों पर 6018 नाम हटाने के आवेदन दिए गए थे। इनमें से केवल 24 मतदाता ऐसे थे जो अब उस निर्वाचन क्षेत्र में नहीं रहते थे। यानी बाक़ी सब फर्जी आवेदन सामने आए थे।

राहुल गांधी के आरोप

राहुल गांधी ने 18 सितंबर 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आलंद को 'वोट चोरी' का प्रमुख उदाहरण बताते हुए कहा था कि 'किसी ने सॉफ्टवेयर के जरिए 6018 वोटरों के नाम हटाने की कोशिश की, खासकर कांग्रेस समर्थक बूथों को निशाना बनाया गया।' उन्होंने आरोप लगाया कि कर्नाटक से बाहर के मोबाइल नंबरों का उपयोग कर फर्जी आवेदन जमा किए गए। उन्होंने दावा किया था कि यह एक संगठित साजिश थी, जिसमें चुनाव आयोग की कमजोरियों का फायदा उठाया गया।

बहरहाल, एसआईटी अब इस मामले में और गहराई से जांच कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इस हेरफेर के पीछे और कौन-कौन शामिल हो सकता है। साथ ही, यह भी जाँच की जा रही है कि फर्जी आवेदनों के लिए डेटा सेंटर तक पहुंच कैसे बनाई गई और इसके पीछे का मकसद क्या था। एसआईटी की जाँच के नतीजे और भविष्य में होने वाली कार्रवाई इस मामले में और भी खुलासे कर सकती है।