RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय समाज अपने ही ज्ञान की परंपरा से कट गया है क्योंकि हमारा दिमाग विदेशी प्रभावों से ग्रस्त हो गया है। भागवत को क्यों लगता है कि हमारा दिमाग और बुद्धि विदेशी हो गए?
क्या भारतीयों का दिमाग और बुद्धि विदेशी प्रभाव में है? क्या पूरी भारतीय शिक्षा प्रणाली पर विदेशी प्रभाव है? कम से कम आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत तो यही तर्क देते हैं। उन्होंने रविवार को कहा कि भारतीयों को अपनी ज्ञान परंपरा को समझने और उसका महत्व जानने के लिए मैकाले शिक्षा पद्धति के विदेशी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होना होगा। उन्होंने कहा कि सभी भारतीयों ने मैकाले शिक्षा पद्धति के तहत शिक्षा प्राप्त की है, जिसके कारण हमारा दिमाग और बुद्धि विदेशी हो गए। सवाल उठता है कि क्या मैकाले शिक्षा पद्धति के आने से पहले भारत में नए-नए इंवेंशन हो रहे थे? सवाल यह भी है कि क्या संघ प्रमुख भारतीय शिक्षा पद्धति को पूरी तरह बदलने की पैरवी कर रहे हैं और क्या मोदी सरकार जिस तरह पाठ्यक्रमों में बदलाव कर रही है, वह भागवत के इसी विचार के अनुरूप है?
इसे समझने के लिए मैकाले शिक्षा पद्धति और भागवत के बयान को समझते हैं। मैकाले शिक्षा पद्धति को 1835 में लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले ने भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान लाने की पैरवी की थी। वैसे, इसका मक़सद तो अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी ज्ञान को बढ़ावा देना था, ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार हो जो भारतीय संस्कृति और ब्रिटिश प्रशासन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सके। लेकिन इससे भारतीयों को काफी फायदा भी हुआ।
मैकाले शिक्षा पद्धति से फायदा नहीं हुआ?
मैकाले की नीति ने अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी विज्ञान, साहित्य, और दर्शन को भारत में लाने में मदद की। इससे भारतीय समाज में आधुनिक विचार और वैज्ञानिक सोच का दायरा बढ़ा। पश्चिमी शिक्षा ने समानता, तर्क, और मानवाधिकार जैसे विचारों को प्रोत्साहित किया। इसने सामाजिक सुधार आंदोलनों को तेज किया। राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे सुधारकों ने सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। महिलाओं की शिक्षा को भी कुछ हद तक बढ़ावा मिला, हालांकि यह प्रक्रिया धीमी थी। अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों को पश्चिमी स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद के विचारों से परिचित कराया, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया। फिर भी आज़ादी के तुरंत बाद से ही मैकाले पद्धति की आलोचना की गई और इसमें भारत के अनुकूल बड़े पैमाने पर बदलाव लाया गया।
आज़ादी के बाद पद्धति बदली?
भारत की आजादी के बाद मैकाले शिक्षा पद्धति में कई बदलाव हुए, हालांकि इसकी मूल संरचना और अंग्रेजी भाषा का प्रभाव लंबे समय तक बना रहा। आजादी के बाद भारत सरकार ने शिक्षा को राष्ट्रीय विकास और सांस्कृतिक पहचान के अनुरूप ढालने की कोशिश की। आजादी के तुरंत बाद 1948-49 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन हुआ। इसके अध्यक्ष डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। इन्होंने मैकाले पद्धति पर सवाल उठाए और भारतीय भाषाओं, संस्कृति, और मूल्यों को शिक्षा में शामिल करने की सिफारिश की। काफी बदलाव हुए। 1964-66 में कोठारी आयोग बनने के बाद मैकाले पद्धति को और अधिक संशोधित किया गया। इसने त्रि-भाषा सूत्र (हिंदी, अंग्रेजी, और क्षेत्रीय भाषा) को लागू करने की सिफारिश की, ताकि भारतीय भाषाओं को बढ़ावा मिले। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (संशोधित 1992) और 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने मैकाले पद्धति के प्रभाव को और कम करने की कोशिश की।
आजादी के बाद 1950-60 के दशक में IIT और IIM जैसे संस्थानों की स्थापना ने इंजीनियरिंग, प्रबंधन, और विज्ञान में विश्वस्तरीय शिक्षा को बढ़ावा दिया। NCERT और अन्य संस्थानों ने भारतीय इतिहास और संस्कृति पर आधारित पाठ्यपुस्तकें तैयार कीं।
आरएसएस की आपत्ति क्या?
मैकाले शिक्षा प्रणाली को आरएसएस और कई भारतीय विचारक भारतीय ज्ञान परंपराओं को दबाने का एक प्रयास मानते हैं। भागवत का यह बयान उस विचार को दोहराता है कि विदेशी शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक जड़ों से दूर कर दिया।
भागवत ने कहा, 'हमें भारतीय शिक्षा प्रणाली में नहीं पढ़ाया गया। हमें मैकाले शिक्षा प्रणाली में शिक्षित किया गया। हमारी उत्पत्ति, नींव और ज्ञान की खोज के लिए हमारी बुद्धि उसी के अनुसार ढल गई। कहा जाता है कि हम गुलाम थे। हम भारतीय हैं, लेकिन हमारा दिमाग और बुद्धि विदेशी हो गए। हमें उस विदेशी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होना होगा। तभी हम अपनी ज्ञान परंपरा तक पहुंच पाएंगे और उसका महत्व समझ पाएंगे।'
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार भागवत ने कहा,
अगर दुनिया के बाक़ी हिस्सों ने कुछ प्रगति की है, तो हमें उस प्रगति के रहस्य को समझना चाहिए और उसका मूल्यांकन करना चाहिए। हमें जो अच्छा है उसे अपनाना चाहिए और जो बेकार है उसे छोड़ देना चाहिए।
भागवत ने धर्मांतरण का ज़िक्र क्यों किया?
भागवत ने कहा कि प्राचीन काल में भारतीय विश्व भर में घूमकर संस्कृति और विज्ञान का प्रसार करते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी देश पर विजय प्राप्त करने की कोशिश नहीं की या किसी का धर्मांतरण नहीं किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत ने सद्भावना और एकता के संदेश के साथ दुनिया को ज्ञान दिया, जबकि आक्रमणकारियों ने भारत को लूटा और दास बनाया। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'हमारे पूर्वज मैक्सिको से साइबेरिया तक फैले हुए थे। उन्होंने दुनिया को विज्ञान और संस्कृति सिखाई। वे किसी को धर्मांतरण करने या जीतने नहीं गए। हम सद्भावना लेकर गए और एकता का संदेश दिया।'
उन्होंने कहा, 'कई आक्रमणकारी आए और उन्होंने हमें लूटा तथा गुलाम बनाया। अंतिम आक्रमणकारियों ने तो हमारी मानसिकता को ही लूट लिया। हम अपनी शक्तियों को भूल गए और दुनिया के साथ साझा करने योग्य चीजों को भी विस्मृत कर दिया।'
क्या भारतीय ज्ञान परंपरा ख़त्म हो गई?
भागवत कहते हैं कि मैकाले की शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों को भारतीय ज्ञान परंपरा दूर कर दिया। कहा जाता है कि ये कुछ हद तक सच है कि मैकाले की नीति ने संस्कृत, आयुर्वेद, वेद जैसी भारतीय ज्ञान परंपराओं को कमतर आंका था। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि आजादी के बाद भारतीय संस्कृति, इतिहास, और दर्शन को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। 1948 में राधाकृष्णन आयोग, 1964-66 में कोठारी आयोग और 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों ने पाठ्यक्रमों में बड़े बदलाव किए। NCERT और अन्य संस्थानों ने भारतीय इतिहास और संस्कृति पर आधारित पाठ्यपुस्तकें तैयार कीं।
खुद मोदी सरकार ने 2020 में योग, आयुर्वेद और भारतीय दर्शन पर जोर दिया है। यानी भारतीय शिक्षा पद्धति में समय के साथ लगातार बदलाव आ रहे हैं। ऐसे में अब भागवत को आपत्ति क्या है? क्या वह इसमें आमूल-चूल परिवर्तन लाना चाहते हैं और संस्कृत, आयुर्वेद, वेद जैसी परंपराओं को ज़्यादा तवज्जो देना चाहते हैं? यदि ऐसा हुआ तो क्या एआई के जमाने में भारतीय शिक्षा पद्धति वैश्विक स्तर पर मुक़ाबला कर पाएगी?