नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे आन्दोलन में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल, 2009 में अपने एक फ़ैसले में कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति को क़ैद की सजा के साथ ही अदालत को घटना के दिन क्षतिग्रस्त हुई संपत्ति के बाज़ार मूल्य के बराबर की राशि का जुर्माना भी दोषी पर लगाना चाहिए। जुर्माना अदा नहीं करने पर ऐसे व्यक्ति को अतिरिक्त क़ैद की सजा दी जानी चाहिए।
कोर्ट के दिशा-निर्देश, तोड़फोड़ करने वालों से हो संपत्ति को हुए नुक़सान की भरपाई
- विचार
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- 22 Dec, 2019

सरकारों को उच्चतम न्यायालय की व्यवस्थाओं के मद्देनर आन्दोलनों के दौरान सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने वालों की पहचान करके उनसे इसकी वसूली करनी चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुरूप पुलिस और प्रशासन तमाम घटनाओं की वीडियोग्राफ़ी के आधार पर ही आरोपियों की पहचान करते हैं। आन्दोलन, हड़ताल और बंद आदि के दौरान तोड़फोड़ और आगजनी आदि की गतिविधियों में लिप्त तत्वों की पहचान कर यदि उन्हें सार्वजनिक और निजी संपत्ति को हुए नुक़सान की भरपाई के लिए बाध्य किया जाता है तो निश्चित ही इससे न सिर्फ सार्वजनिक और निजी संपत्ति को समुचित संरक्षण प्राप्त होगा बल्कि लोकतांत्रिक तरीक़े से होने वाले विरोध-प्रदर्शनों के दौरान हिंसा की घटनाओं पर भी अंकुश लगाने में सफलता मिलेगी।