भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। 1984 में सोवियत मिशन पर अंतरिक्ष जाने वाले पहले भारतीय विंग कमांडर राकेश शर्मा के बाद, अब शुभांशु शुक्ला दूसरे भारतीय नागरिक के रूप में 17 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से अपना ऐतिहासिक मिशन पूरा करके भारत की धरती पर लौट आए हैं। जेएनयू तथा आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र शुभांशु ने इस मिशन के दौरान अंतरिक्ष में भारत का नाम रोशन किया।

भारत का अंतरिक्ष इतिहास एक और स्वर्णिम पल का साक्षी बन गया है। निजी क्षेत्र का Axiom-4 मिशन पूरा कर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से स्वदेश लौटे शुभांशु शुक्ला - राकेश शर्मा (1984) और कल्पना चावला (1997-2003) के बाद तीसरे भारतीय हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष में भारत का परचम लहराया। देश वैज्ञानिकों, उभरते निजी क्षेत्र, और ISRO के अथक परिश्रम को सलाम कर रहा है। थुम्बा की सड़कों से संसद के गलियारों तक, लोग विक्रम साराभाई की लगन, जवाहरलाल नेहरू की दूरदर्शिता, और ISRO की वैश्विक क्षमता के समक्ष नतमस्तक हैं। लेकिन सवाल बाकी है—क्या निजीकरण के रास्ते में ISRO, BSNL जैसी स्थिति का शिकार होगा? आइए, इस स्वर्णिम सफर, इसकी उपलब्धियों, और चुनौतियों पर नजर डालें।
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सपनों की नींव: नेहरू और साराभाई का पत्र

1961 में जब भारत आजादी के बाद की चुनौतियों से जूझ रहा था, 26 वर्षीय विक्रम साराभाई, जो कैम्ब्रिज से कॉस्मिक रेज पर PhD कर लौटे थे, ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा। शब्दशः मजमून था:
“प्रिय प्रधानमंत्री जी,
आज अमेरिका और रूस अंतरिक्ष में दौड़ लगा रहे हैं। हमारे पास अभी रॉकेट नहीं, पर वैज्ञानिकों में जुनून है। मैं थुम्बा में एक छोटा रॉकेट स्टेशन बनाना चाहता हूँ। हम मौसम पूर्वानुमान और टेलीकम्यूनिकेशन शुरू कर सकते हैं।
कृपया मुझे 10 मिनट दें।
आपका,
विक्रम”

नेहरू का जवाब:
“ये साराभाई कौन है? कोई वैज्ञानिक? अच्छा... बुलाओ इसे!”

साराभाई ने तर्क दिया कि अंतरिक्ष अनुसंधान से मौसम पूर्वानुमान और संचार में क्रांति आएगी, जो किसानों और देश के लिए वरदान होगा। नेहरू सहमत हुए। 1962 में INCOSPAR की स्थापना हुई, और 1963 में केरल के थुम्बा में पहला रॉकेट लॉन्च हुआ। मजेदार किस्सा? 

रॉकेट का नोज साइकिल पर ले जाया गया, और पार्ट्स मछुआरों की नावों से आए! NASA ने हंसी उड़ाई, लेकिन भारत का जुगाड़ इतिहास बन गया।

जुगाड़ से चाँद तक: ISRO की उपलब्धियाँ

1969 में ISRO की स्थापना के साथ भारत का अंतरिक्ष सफर गति पकड़ने लगा। 1984 में राकेश शर्मा सोवियत मिशन के तहत अंतरिक्ष गए। कल्पना चावला ने 1997-2003 में NASA मिशनों में भारत का नाम रोशन किया, हालांकि उनका दूसरा मिशन त्रासदी में समाप्त हुआ। 2017 में ISRO ने PSLV-C37 मिशन में 104 सैटेलाइट लॉन्च कर विश्व रिकॉर्ड बनाया, जिसकी लागत ₹200 करोड़ थी, और विदेशी कंपनियों से ₹150 करोड़ की कमाई हुई। चंद्रयान-3 (2023) ने चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग कर इतिहास रचा, और आदित्य-L1 ने सूर्य का अध्ययन शुरू किया।

ISRO का बजट आज ₹10,000 करोड़ सालाना है, जो NASA (₹2.2 लाख करोड़) और चीन (₹1.5 लाख करोड़) से कम है, लेकिन उपलब्धियों में भारत पीछे नहीं। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था:
“हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम जुनून और जरूरत का संगम है, जो हमें सितारों तक ले जाएगा।”

शुभांशु शुक्ला: नया सितारा

शुभांशु का Axiom-4 मिशन, NASA और Axiom Space का निजी मिशन है, जिसमें ISRO ने ट्रेनिंग और तकनीकी सहायता दी। शुभांशु ने ISS पर माइक्रोग्रैविटी प्रयोग किए, जो भारतीय विज्ञान के लिए मील का पत्थर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “वैज्ञानिक सोच की जीत” बताया, जबकि राहुल गांधी ने कहा: “यह भारत के वैज्ञानिक समुदाय और युवाओं के लिए गर्व का क्षण है। शुभांशु ने नेहरू के सपनों को नई पहचान दी।”

राकेश शर्मा ने कहा:
“यह पल हर भारतीय के लिए गर्व का है। मैं उनके अनुभव सुनने को उत्सुक हूँ।”

18 अगस्त को संसद के विशेष सत्र में शुभांशु को सम्मानित किया गया। 

गगनयान: सपना अधूरा, पर प्रगति जारी

गगनयान, भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन, 2025 के मध्य तक लॉन्च होने की उम्मीद है। इसकी यात्रा चुनौतीपूर्ण रही:
  • 2014-18: 2014 में मंजूरी मिली, लेकिन बजट और प्राथमिकता की कमी से प्रगति रुकी।
  • कोविड-19: 2020-21 में महामारी ने टेस्टिंग और ट्रेनिंग में देरी की।
  • तकनीकी समस्याएँ: 2023 में दो पैराशूट टेस्ट असफल; रूस से जीवन रक्षक प्रणाली की डिलीवरी में विलंब।
  • बजट: अब तक ₹12,400 करोड़ खर्च, जिसमें ₹902 करोड़ अतिरिक्त स्वीकृत।
ISRO चेयरमैन एस. सोमनाथ का कहना है कि गगनयान भारत को चौथा स्वदेशी मानव अंतरिक्ष यात्री देश बनाएगा।

निजीकरण: अवसर या खतरा?

2020 की भारतीय अंतरिक्ष नीति (ISP) और 2022 में IN-SPACe की स्थापना ने निजी कंपनियों को रास्ता खोला। प्रमुख खिलाड़ी:
  • Skyroot Aerospace: विक्रम-1 रॉकेट, ISRO के विकास इंजन की तकनीक साझा।
  • Agnikul Cosmos: 3D-प्रिंटेड अग्निबान रॉकेट।
  • Pixxel: अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट्स।
  • Dhruva Space: सैटेलाइट डिप्लॉयमेंट।

चुनौतियाँ

राष्ट्रीय सुरक्षा: विदेशी निवेश (Skyroot में सिंगापुर, Agnikul में अमेरिका) से डेटा लीक का खतरा।

लागत: निजी कंपनियाँ ISRO से अधिक शुल्क लेती हैं (PSLV: ₹365 करोड़, Skyroot: ₹420 करोड़)।

ISRO का भविष्य: संसदीय समिति (2023) ने चेतावनी दी कि ISRO का 90% परियोजनाओं पर एकाधिकार निजी विकास को सीमित करता है।

शशि थरूर ने 16 मार्च 2022 को लोकसभा में सवाल उठाया: “क्या सरकार ISRO की सैटेलाइट/लॉन्च व्हीकल गतिविधियों को NSIL जैसी निजी कंपनियों को हस्तांतरित करेगी, और क्या इससे ISRO के कर्मचारियों की छँटनी होगी?”

जवाब: “NSIL केवल व्यावसायिक मिशनों को संभालेगी। ISRO अनुसंधान और विकास का केंद्र रहेगा।”
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रूस की 1960 की तकनीक

2019 में ISRO ने चार अंतरिक्ष यात्रियों को रूस के स्टार सिटी में ट्रेनिंग के लिए भेजा। दावा किया गया कि रूस ने 1960 के दशक के वोस्तोक स्पेसक्राफ्ट पर ट्रेनिंग दी, जबकि वे खुद आधुनिक सोयुज का उपयोग करते हैं। ISRO के तत्कालीन चेयरमैन के. सिवन ने कहा:
“बेसिक ट्रेनिंग सिद्धांत एक जैसे हैं।”

रूस का लूना-25 (2023) क्रैश होने से उनकी तकनीकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे।

अंतरिक्ष बाजार और सरकारी नियंत्रण

वैश्विक अंतरिक्ष बाजार 2024 में $447 बिलियन का था, जो 2030 तक $1 ट्रिलियन तक पहुँचेगा। सरकारी नियंत्रण जरूरी है क्योंकि:
  • सुरक्षा: सैटेलाइट डेटा और लॉन्च तकनीक का सैन्य उपयोग होता है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: अमेरिका और चीन निजी नवाचार को सख्त निगरानी के साथ बढ़ावा देते हैं।
  • आर्थिक जोखिम: निजी विफलताएँ (जैसे Virgin Orbit का 2023 में दिवालियापन) सरकारी संसाधनों पर बोझ डालती हैं।
  • अमेरिका: NASA ने SpaceX को $2.6 बिलियन का ठेका देकर 60% लागत बचाई।
  • चीन: iSpace जैसे निजी फर्म सस्ते रॉकेट ($4.5 मिलियन) बनाते हैं।
  • यूरोप: Arianespace का बाजार हिस्सा 60% से 20% गिरा।
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संसदीय समिति और सिफारिशें

संसदीय समिति (2023): सुझाव दिया कि ISRO रेगुलेटर बने, निजी फर्मों को बड़े ठेके मिलें, और FDI 49% तक सीमित हो।

नीति आयोग (2022): FDI को 74% तक बढ़ाने का प्रस्ताव, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने 49% की सीमा की मांग की।

ORF थिंक टैंक (2024): निजी फर्मों के लिए लॉन्च बीमा अनिवार्य करने का सुझाव।

आगे की राह: ISRO को BSNL बनने से रोकना

निजीकरण जरूरी है, लेकिन ISRO की कीमत पर नहीं। 

सुझाव

  • हाइब्रिड मॉडल: ISRO रणनीतिक मिशनों को संभाले; निजी फर्म व्यावसायिक लॉन्च करें।
  • सुरक्षा उपाय: FDI 49% तक सीमित; डेटा गोपनीयता सुनिश्चित।
  • प्रतिभा संरक्षण: बेहतर वेतन और अवसर।
  • स्वदेशी तकनीक: क्रायोजेनिक इंजन और जीवन रक्षक प्रणालियों में आत्मनिर्भरता।

सितारों की ओर

साइकिल पर रॉकेट के नोज से चाँद तक, भारत का अंतरिक्ष सफर जुनून और जीनियस की कहानी है। शुभांशु शुक्ला की उड़ान इस विरासत का प्रतीक है। लेकिन गगनयान की देरी, निजीकरण के जोखिम, और सीमित बजट चुनौतियाँ हैं। ISRO को BSNL बनने से रोकने के लिए नवाचार और राष्ट्रीय हितों का संतुलन जरूरी है। जैसा कि विक्रम साराभाई ने कहा था: “हमारे पास रॉकेट नहीं, पर जुनून है।”

यह जुनून भारत को सितारों की नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।