प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक मानवीय सभ्यता के इतिहास में आम तौर पर चार तरह के भंडार की चर्चा होती रही है। एक धन का भंडार, दूसरा अन्न का भंडार, तीसरा खनिज भंडार जिसे हम प्राकृतिक संपदा भी कहते हैं और चौथा जल भंडार। पहले दोनों तरह के भंडार यानी धन एवं अन्न का हम सृजन या उत्पादन करते हैं पर खनिज एवं जल भंडार हमें क़ुदरती तौर पर मिलते हैं। इसे हमें सहेज कर रखने और बड़े ही अनुशासित रूप से ख़र्च करने की आवश्यकता है क्योंकि यह दोनों ही उपभोग से घटते-घटते समाप्त हो जायेंगे और इनका सृजन या उत्पादन मानवीय क्षमता से परे है।