प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक मानवीय सभ्यता के इतिहास में आम तौर पर चार तरह के भंडार की चर्चा होती रही है। एक धन का भंडार, दूसरा अन्न का भंडार, तीसरा खनिज भंडार जिसे हम प्राकृतिक संपदा भी कहते हैं और चौथा जल भंडार। पहले दोनों तरह के भंडार यानी धन एवं अन्न का हम सृजन या उत्पादन करते हैं पर खनिज एवं जल भंडार हमें क़ुदरती तौर पर मिलते हैं। इसे हमें सहेज कर रखने और बड़े ही अनुशासित रूप से ख़र्च करने की आवश्यकता है क्योंकि यह दोनों ही उपभोग से घटते-घटते समाप्त हो जायेंगे और इनका सृजन या उत्पादन मानवीय क्षमता से परे है।
क़ानूनों का सख्ती से पालन होगा तभी साफ़ होगी गंगा
- विचार
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- 18 Nov, 2019

गंगा की अविरलता एवं निर्मलता बनाये रखने में किसी तरह का आर्थिक भ्रष्टाचार न हो, साथ ही क़ानूनों के क्रियान्वयन से संबंधित सभी विभागों को भी जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है।