छत्तीसगढ़ में अबूझमाड़ के जंगलों में 21 मई को प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के महासचिव नामबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजु का मारा जाना सुरक्षाबलों की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी है। केंद्र सरकार ने 2026 तक वामपंथी उग्रवाद को समाप्त करने की जो टाइमलाइन घोषित की है, उसे देखते हुए यह वाक़ई एक उपलब्धि है।
अरसे से सरदर्द बने माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व के ख़त्म होने के साथ ही सरकार आदिवासी इलाक़े में शांति और विकास का नया दौर शुरू होने का दावा करने लगी है, लेकिन इतिहास को देखते हुए यह आसान नहीं लगता। माओवादी पार्टी को आदिवासियों के बीच ‘आधार-क्षेत्र’ बना लेने के संदर्भ में जिन कारकों ने मदद की थी, वे लगातार मौजूद हैं। माओत्से तुंग की लाल किताब पढ़कर आदिवासी नौजवान माओवादियों का साथ नहीं देते, बल्कि जल-जंगल-ज़मीन की लूट से उपजे शोक की वजह से उनकी शक्ति बनते हैं।