मीरा बाई मार्ग पर उत्तर प्रदेश सरकार के गेस्ट हाउस का वह कमरा लगभग भरा हुआ था। मैं रात आठ बजे के क़रीब उस कमरे के अंदर गया तो लोगों ने ज़ोरदार ठहाके से मेरा स्वागत किया। 'अब आया है असली गुनहगार' हल्की दाढ़ी वाले, साँवले रंग के उस शख़्स ने धीरे से कहा और कमरा फिर ठहाके से भर गया। मैं थोड़ा सहम गया। मेरे सामने उस दौर के वरिष्ठ पत्रकार बैठे थे। मैं, एक नौसिखुआ पत्रकार उनके ठहाके का मतलब समझ नहीं पाया था। ख़ैर दाढ़ी वाले शख़्स ने फिर कहा 'जहाँ जगह दिखे बैठ जाओ, खड़े क्यों हो।' मैं सहमते हुए उनके पास ही बैठ गया।