पिछले दो सप्ताह से स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में चल रहा संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन समाप्त हो गया है। धरती और हमारे अस्तित्व की अंतिम आस माने जा रहे इस सम्मेलन से उन उपायों पर आम सहमति होने की उम्मीद थी जिनसे वायुमंडल का औसत तापमान औद्योगिक युग से पहले के औसत तापमान की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्शियस से आगे न बढ़ने पाए। सम्मेलन के घोषणापत्र पर अभी सौदेबाज़ी चल रही है लेकिन कई ऐसे समझौते हुए हैं जिनसे जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की उम्मीद बँधी है। परंतु बहुत कुछ ऐसा भी है, जो नहीं हो सका जिससे चिंता और निराशा होती है।
ग्लासगो जलवायु सम्मेलन- बड़ी-बड़ी बातें, छोटे-छोटे क़दम
- विचार
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- 13 Nov, 2021

आज औसत तापमान 1.1 डिग्री पार कर चुका है और यदि 2030 तक गैसों के उत्सर्जन में 45% की कटौती नहीं की गई तो यह 2.4 डिग्री तक जा सकता है। कार्बन कटौती की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका जैसे देश 2030 तक अपनी ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ोतरी बंद करने के ही वायदे कर रहे हैं, घटाने के नहीं।
चीन-अमेरिका के बीच समझौता
ग्लासगो के जलवायु सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि चीन और अमेरिका के बीच हुआ जलवायु सहयोग का समझौता है। चीन और अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं और तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के 40% का उत्सर्जन यही दो देश करते हैं।
एक साल से चल रही 30 बैठकों के दौर के बाद दोनों देशों ने फ़ैसला किया है कि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम पर सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों एक कार्यदल बनाएँगे जो इस पूरे दशक में मिथेन गैस और कार्बन गैसों की रोकथाम करने और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में मदद करेगा।
इससे पहले चीन कोयले का प्रयोग बंद करने के मामले पर हाथ खींच रहा था। इस समझौते से उसके रवैये में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं।