कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी सरकार पर सीधा “सरकार चोरी” का गंभीरतम आरोप लगाया। यहाँ तक कह दिया कि यह सरकार अवैध है। उनके ‘हाइड्रोजन बॉम्ब’ प्रेस कॉन्फ्रेंस को 50 करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा, पढ़ा और सुना — तो दुनिया कांप उठी।

राहुल गांधी की ‘हाइड्रोजन बॉम्ब’ प्रेस कॉन्फ्रेंस ने जिस तरह टीवी-लाइव और सोशल-क्लिप्स के जरिए एक डिजिटल सुनामी पैदा की है — वह सिर्फ एक राजनीतिक ड्रामा नहीं रही; यह अब एक जन-रिफरेंडम बन गयी है जिस पर सबकी निगाहें जूरी की तरह टिक गयी हैं।

राहुल गांधी ने दावा किया कि उनके पास बहुत सारे सबूत हैं। वे साबित कर देंगे, कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वोट चोरी कर अवैध तरीके से प्रधानमंत्री बने हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी का रौद्र रूप देखकर थर्रायी भाजपा सरकार ने उनके तथ्य-पूर्ण आरोपों का जवाब देने के लिए बहुत सोच समझकर मौजूदा केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और पूर्व केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को उतारा। पर दोनों में से किसी ने सिवाए राजनीतिक बयान के एक भी आरोप का कोई खंडन नहीं किया। 

प्रधानमंत्री मोदी की जुबान पर 'कट्टा'

लाल आंखों से क्रोध में भरे राहुल गाँधी ने लोकतंत्र की सरेआम चोरी के सीधे आरोप चुनाव आयोग और मोदी सरकार पर लगाये। राहुल गाँधी के हाथ में संविधान दिखा, तो उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान पर कट्टा। युवा नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ बिहार में जारी विधानसभा चुनाव की बागडोर खुद अपने हाथ में संभाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजद नेता पर कट्टा का भय दिखाने का आरोप लगाया।

प्रियंका गाँधी का हमला

मोदी की जुबान से कट्टा क्या निकला, तेज तर्रार कांग्रेस नेत्री सांसद प्रियंका गाँधी ने उन्हें बुरी तरह रगड़ दिया और पद की गरिमा बनाये रखने की याद दिलायी। प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी और चुनाव आयोग पर करारा हमला करते हुए कहा कि – “कट्टा, गोली, फिरौती और रंगदारी जैसी बातों का इस्तेमाल पर पीएम मोदी अपने पद की गरिमा को गिरा रहे हैं। अब वह चुनाव जीतने के लिए वोट चोरी पर उतर आए हैं। इसमें चुनाव आयोग के तीन अधिकारी उनका साथ दे रहे हैं।”

राहुल और प्रियंका गांधी के आरोपों से तिलमिलायी पूरी भाजपा सरकार सन्नाटे में है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दर्ज हो गयी इस तस्वीर ने कई सुलगते सवाल खड़े कर दिये हैं।

भारत का लोकतंत्र संस्थागत आरामघरों में संविधान की शपथ लेकर बैठे जिम्मेदार पदों से — सवाल पूछ रहा है। उम्मीदों से भरे सवाल - न्यायपालिका से, विधायिका से, कार्यपालिका से और मीडिया से भी। और याद रहे - जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।

बेंगलुरु से हरियाणा तक — पैटर्न

यह लड़ाई अचानक नहीं आई। अगस्त 7, 2025 के ‘एटम-बॉम्ब’ प्रेस कॉन्फ्रेंस में गांधी ने बेंगलुरु सेंट्रल और मैसूरु के डाटा-विश्लेषण का खुलासा किया था — जहाँ उन्होंने दावे किये कि 3.8 लाख असली मतदाताओं को हटाया गया और 1.5 लाख नकली नाम जोड़े गए। सवाल था कि इलेक्ट्रॉनिक-दस्तावेज़ और रोल्स पर पारदर्शिता कहाँ है।

उसके बाद बिहार के लगभग सभी जिलों में रैलियां कर 15 दिनों तक वोटर अधिकार यात्रा निकालने के बाद जब 1 सितम्बर को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ऐलान किया था कि वे अब हाइड्रोजन बम फोड़ेंगे, तो भाजपा ने खिल्ली उड़ायी कि राहुल कांग्रेस को चुनाव नहीं जिता सकते तो वोट चोरी का बहाना बनाते हैं। सितम्बर के बाद अक्टूबर भी बीत गया। जब भाजपा लगभग निश्चिंत हो गई कि अब राहुल का हाइड्रोजन बम नहीं फूटने वाला। तो बिहार विधानसभा चुनावों में पहले दौर के मतदान से ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी ने पॉलिटिकल सरप्राइज देते हुए फिर नए सबूतों के साथ देश को बताया कि कैसे चुनाव आयोग ने भाजपा के साथ मिलकर लाखों वोटों की हेरा-फेरी की है।

क्या था राहुल गांधी की ‘H-Files’ में

हाइड्रोजन बम प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने बहुत बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हरियाणा में भाजपा ने मतदाता सूची में बड़ी गड़बड़ी कर सरकार चुरायी। राहुल गांधी ने कहा -
  • हरियाणा में 2024 के विधानसभा चुनाव में लगभग 25 लाख वोट नकली, डुप्लिकेट या अमान्य थे।  
  • कुल 2 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 12.5 % तक “फर्जी मतदाता” थे।
  • हरियाणा में 8 में से 1 मतदाता फर्जी है।
  • एक महिला की तस्वीर दो मतदान केंद्रों पर 223 बार पायी गयी।
  • एक ब्राज़ीलियन मॉडल की फोटो 22 बार विभिन्न नामों से दर्ज पाई गई।
  • हमारे पास ठोस सबूत हैं कि हरियाणा में बड़ी धांधली हुई है।
  • कई वोटर ऐसे हैं जो असली नहीं हैं, कुछ के नाम दो-दो जगह हैं।
  • कुछ के नाम व फोटो इस तरह बनाए गए हैं कि कोई भी उनकी जगह वोट दे सके।
कांग्रेस नेता ने एक ब्राज़ीलियन मॉडल की स्टॉक फोटो का उदाहरण देते हुए कहा कि वह जितनी बार चाहे वोट डाल सकती है। यह महिला हरियाणा में 10 अलग-अलग मतदान केंद्रों पर 22 बार वोट डाल रही है। उसके कई नाम हैं। यह सब एक केंद्रीकृत प्रक्रिया से हुआ है।

कांग्रेस लगभग 22,000 वोटों से चुनाव हारी

राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें हरियाणा के कई उम्मीदवारों से शिकायतें मिलीं थीं, कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी है और सब कुछ गलत दिशा में जा रहा है। उन्होंने कहा, “हमने यह डेटा कई बार जांचा। जब मैंने पहली बार देखा तो मुझे विश्वास नहीं हुआ।” लेकिन यही सच था। उन्होंने कहा -
  • कांग्रेस हरियाणा में लगभग 22,000 वोटों से चुनाव हारी
  • यह गड़बड़ी चुनाव परिणाम को पलटने के लिए की गई थी।
  • हरियाणा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि डाक से आने वाले वोट (postal votes) और वास्तविक वोटिंग (actual votes) में बहुत फर्क पाया गया।
राहुल गांधी ने कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसा ही देखा गया था, लेकिन कांग्रेस ने हरियाणा पर गहराई से जांच करने का फैसला किया। उन्होंने उदाहरण देते हुए आरोप लगाया कि कुछ भाजपा नेता दो राज्यों में वोट डाल रहे हैं।  

चुनाव आयोग पर संवैधानिक सवाल

उन्होंने कहा, “अगर चुनाव आयोग डुप्लिकेट नाम हटाए, तो चुनाव निष्पक्ष होंगे। लेकिन वे ऐसा नहीं करते क्योंकि वे भाजपा की मदद कर रहे हैं। उनके पास यह तकनीकी क्षमता है, यह काम एक सेकंड में हो सकता है।” राहुल गांधी का आरोप है कि भाजपा और चुनाव आयोग ने मिलकर हरियाणा की सरकार “चुरा ली” है।

यह सरकार चोरी से बनी: राहुल

उन्होंने कहा, “हम यह बात पूरे देश के सामने रख रहे हैं कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री वैध रूप से सत्ता में नहीं हैं। यह सरकार चोरी से बनी है। राहुल गांधी ने बताया कि कांग्रेस ने यह सबूत सुप्रीम कोर्ट के सामने भी पेश किए हैं और यह कोई छुपी हुई बात नहीं है। कांग्रेस ने कहा, “हम यह सब भारतीय जनता के सामने, मीडिया के सामने रख रहे हैं। यह उनका (चुनाव आयोग का) डेटा है, हमारा नहीं।”

मीडिया-सुनामी और चुप्पी का शोर

राहुल गांधी के आरोप लाइव टीवी पर चले। कई चैनलों ने घंटों कवरेज दी; उनके बयान सोशल मीडिया में विस्फोटक तरीके से फैल गये। प्रमुख राष्ट्रीय अखबारों ने फ्रंट-पेज पर कवरेज दी; अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भारत के ‘डेमोक्रेसी-डिबेट’ पर खबरें लगाईं। लेकिन भारत के कुछ बड़े ब्रॉडकास्टर्स और सरकारी चैनलों पर चुप्पी छा गयी।  

राहुल गांधी ने हरियाणा वोट चोरी का खुलासा करते हुए इस ब्राजीलियन मॉडल का जिक्र किया

बिहार में क्यों हुआ SIR?

2024 में लोकसभा के चुनाव हुए। देश का प्रधानमंत्री उसी मतदाता सूची से चुना गया। तब यह सूची ठीक थी। तो आखिर चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव से ऐन पहले क्यों किया SIR? आयोग ने कहा कि वे मतदाता सूची को शुद्ध करना चाहते हैं। बड़ी अच्छी बात। तो प्रधानमंत्री चुनने से पहले क्यों नहीं किया। आयोग चुप। फिर देश के बड़े चैनलों और अखबारों के जरिये खबर प्लांट करायी गयी कि बिहार में बड़े पैमाने पर घुसपैठिये हैं। भाजपा के बड़े नेताओं ने भी आरोप लगाया कि घुसपैठिये निकालना जरूरी है। देशभक्त जनता ने मौन सहमति दी।

चुनाव आयोग का SIR (Special Intensive Revision) पूरा हुआ तो, क्या हुआ –
  • बिहार में लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम काट दिए गए
  • 22 लाख मृत बताए, 36 लाख को प्रवासी और 7 लाख डुप्लिकेट नाम।  
  • घुसपैठिये कहां गये जनाब? जवाब - एक भी नहीं मिले?
  • पिछले बीस सालों में बिहार में कितने घुसपैठिये निकाले? – जवाब – एक भी नहीं।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार 7 अक्टूबर 2025 की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) में कितने विदेशी घुसपैठिए पकड़े गए, तो उन्होंने मुस्कुराकर बात टाल दी। कोई संख्या या सबूत नहीं दिया। ज्ञानेश कुमार ने बिहार की मतदाता सूची को 22 साल बाद "शुद्ध" करने का दावा किया, लेकिन घुसपैठियों पर चुप्पी ने सवालों का तूफान खड़ा कर दिया।

बिहार के SIR में एक भी विदेशी घुसपैठिया नहीं मिला?

घुसपैठियों के नाम पर गहन मतदाता पुनरीक्षण करने और घुसपैठिये कितने निकले इस पर चुनाव आयोग की आधिकारिक चुप्पी ने भाजपा और उसके सहयोगी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के घुसपैठिया नैरैटिव की टूलें हिला दीं। सबने याद किया कि भाजपा और संघ तो पचासों साल से बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली घुसपैठियों का डर फैलाकर हिंदू वोटरों को एकजुट करते रहे हैं। बिहार में 2025 के चुनाव से पहले यही कहकर एसआईआर अभियान चलाया गया, जहां लाखों नाम काटे गए। मकसद बताया गया - विदेशी घुसपैठियों को पकड़ना। लेकिन अंतिम रिपोर्ट में क्या निकला?

1 अक्टूबर 2025 को जारी अंतिम मतदाता सूची में 7.42 करोड़ वोटर बचे, जो पहले 7.89 करोड़ थे। हटाए गए 52.9 लाख नामों में 22.34 लाख मृतक, 36.44 लाख प्रवासी (देश के अंदर ही), 6.85 लाख डुप्लीकेट, और सिर्फ 11,484 ऐसे जिनका पता नहीं चला। नेपाली, बांग्लादेशी या रोहिंग्या का नामोनिशान नहीं। नेपाली तो भारतीय सेना में भी भर्ती होते हैं। रोहिंगिया तो हजार किलोमीटर दूर मणिपुर – म्यांमार सीमा के रास्ते कैसे आ सकते हैं, जहां सीमा पर सीमा सुरक्षा बल भी है और राज्य सरकार भी केन्द्र की।

घुसपैठिये को रोकते क्यों नहीं?

या आये नहीं और ऐसे ही डर फैला रहे हैं? सवाल ये है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अस्मिता से जुड़े इन सवालों का कोई ठोस जवाब चुनाव आयोग क्यों नहीं दे सका। क्या कोई घुसपैठिया था ही नहीं, या मिला नहीं? और ये 11,484 लोग कौन हैं, जिनका अता पता नहीं मिला? क्या इन्हें घुसपैठिए मानें? क्या उनके नाम-पते पुलिस और गृह मंत्रालय को सौंपे गए? चुनाव आयोग खुद इनके विदेशी होने पर शक करता है, क्योंकि ये संख्या भी कुल वोटरों का सिर्फ 0.014% है। यानी यह संख्या - कोई बड़ा "आक्रमण" नहीं। आयोग की प्रेस रिलीज (जुलाई 2025) में भी सिर्फ नियमित सफाई की बात है, घुसपैठियों का जिक्र नहीं। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने इसे "वोट चोरी" कहा, क्योंकि हटाए गए नाम ज्यादातर गरीब, महिला, दलित, पिछड़े और मुसलमानों के थे, जो विपक्ष के समर्थक माने जाते हैं।

दरअसल, बिहार के सीमांचल इलाके में बंगाली बोलने वाले मुसलमानों को "बांग्लादेशी घुसपैठिए" कहकर बदनाम किया जाता है। लेकिन सच्चाई? ये लोग सदियों से यहां बसे हैं, खेती-मजदूरी करते हैं। भाजपा ने चुनाव में इस मुद्दे को भुनाया, लेकिन एसआईआर ने पोल खोल दी।

मतदाता सूची शुद्ध हो गई या अशुद्ध?

ऐतिहासिक रूप से देखें। 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद लाखों शरणार्थी आए, ज्यादातर हिंदू। 1985 का असम समझौता हुआ, जहां 1971 को कटऑफ डेट माना गया। लेकिन बिहार में ऐसा कुछ नहीं। फिर भी भाजपा ने डर फैलाया। 2024 लोकसभा चुनाव में 69 लाख वोटरों को विधानसभा से पहले क्यों हटाया? जीवित लोगों के नाम मृत बताकर काटे गए। राहुल गांधी ने दिल्ली में ऐसे लोगों के साथ चाय पी और योगेंद्र यादव ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पेश भी किया। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच (6 अक्टूबर 2025) कहती है कि "शुद्ध" सूची में 1.32 करोड़ नाम के फर्जी या संदिग्ध पते हैं और 14.35 लाख डुप्लीकेट हैं। 3.42 लाख मामलों में नाम, पिता का नाम और उम्र तक एक जैसे। अलग-अलग जातियों के लोग एक ही पते पर दर्ज। राजनीतिक विश्लेषक इसे चुनावी घोटाला कहते हैं, जबकि विपक्ष "सत्ता की साजिश" बताता है। आंकड़े कहते हैं - शुद्धि के नाम पर सूची और गड़बड़ हो गई।

सुप्रीम कोर्ट ने वापस दिया जनता का आधार

पीएम मोदी की तस्वीर के साथ देश की जनता को बताया गया था – मेरा आधार मेरी पहचान। लेकिन चुनाव आयोग ने तो बिहार में आधार कार्ड को पहचान और नागरिकता - दोनों का आधार मानने से ही इनकार कर दिया था। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आयोग ने आधार को 12वें डाक्यूमेंट के रूप में स्वीकार तो कर लिया, लेकिन जब पूछा गया कि आधार के आधार पर कितने मतदाताओं के नाम जोड़े गये तो आयोग चुप्पी साध गया। ज्ञानेश कुमार ने दलील दी कि आधार एक्ट के अनुसार यह न जन्मतिथि का प्रमाण है और न निवास का।
  • तो क्या आधार को आयोग ने देश में अवैध दस्तावेज करार दिया है?
  • क्या प्रधानमंत्री का "मेरा आधार, मेरी पहचान" का नारा झूठा था?
  • क्या अब देश में पहचान के लिए जन्म और निवास प्रमाण पत्र दिखाना होगा?
  • क्या आधार का डेटा मतदाता सूची में गड़बड़ी के लिए इस्तेमाल हुआ?
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने कहा था, "चुनाव न सिर्फ निष्पक्ष हों, बल्कि दिखें भी।" विपक्ष ने तो एसआईआर को "बैकडोर एनआरसी" कहा।

बंगलोर एटम बम और दिल्ली के हाइड्रोजन बम प्रेस कान्फ्रेंस से पहले बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सूची के इसी कथित और पूरी तरह संदेहास्पद शुद्धि अभियान को लेकर राहुल ने 20-दिवसीय यात्रा पूरे बिहार में की, जिससे INDIA ब्लॉक एकजुट हुआ। स्टालिन ने "लोकतंत्र पर हमला" कहा, अखिलेश ने "गरीबों पर खंजर"। कांग्रेस ने 89 लाख शिकायतें दर्ज कीं। राहुल गांधी अपनी “वोटर अधिकार यात्रा” में उन परिवारों की बातें सुनीं जिनके नाम हटाये गए-या-हुए। तो ग्रामीण उनसे कहने लगे:

“ये भूल नहीं अब घनघोर उल्लंघन है — और इसे हम सही नहीं होने देंगे।”

आयोग ने जनता के विश्वास को दरका दिया

तो हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में विस्तृत धांधली के आरोप, बिहार में विशाल मतदाता सूची संशोधन, और आयोग की चुप्पी — जब आप इन प्रमुख बिंदुओं को मिलाते हैं — तब तस्वीर स्पष्ट होती है। और तब समझ में आता है कि दुनिया के तमाम देश आज भी ईवीएम की बजाय बैलेट पेपर का इस्तेमाल ही क्यों करते हैं। और फिर याद आता है, कि 2004 केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के काल में बिहार में ईवीएम लागू कर दिया गया था। और तब अगले चुनाव में मतदान में भारी गिरावट दर्ज की गयी थी। क्या ये खेल तब से चल रहा है?

राहुल गांधी का कहना है कि भारत में ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि "चुनाव की पारदर्शिता मतदाता के विश्वास पर टिकी है।"

ईवीएम और वीवीपैट पर बढ़ते सवाल

“जब बैंक में हर ट्रांजेक्शन का रिकॉर्ड दिखाया जा सकता है, तो वोट का क्यों नहीं?”

फिर भी, 100% वीवीपैट मिलान की मांग आज तक पूरी नहीं हुई।
  • ECI ने मशीन-रीडेबल रोल्स सार्वजनिक नहीं किये;
  • ECI ने काउंटिंग-हॉल के सीसीटीवी फुटेज देने से इनकार किया

आयोग से सवाल करो, तो जवाब देगी भाजपा

मशीन-रीडेबल रोल्स : डाटा न देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने प्राइवेसी चिंताओं को कारण बताया। पर तकनीकी विश्लेषक कहते हैं कि गैर-खोजी पीडीएफ (scanned images) न केवल सत्यापन रोकते हैं, बल्कि मतदाताओं के अधिकारों का भी हनन करते हैं। सरल भाषा में कहें तो सार्वजनिक डाटा को इस तरह बंद कर देना—जिसे एल्गोरिदम सेकंडों में खंगाल लेते—शक पैदा करता है।  

काउंटिंग-हॉल/सीसीटीवी-फुटेज — आयोग ने निर्देश दिए हैं कि अनचाहे ‘मैलिशियस’ खातों से बचने के लिए कई रिकॉर्ड 45 दिनों में नष्ट किए जाएँ— और जब समीक्षा मांगी गयी, तो नौकरशाही ने झकझोरने वाला समय दिया: “1 लाख दिनों/≈273 साल” जैसा रेखांकित मजाक-सा जवाब सोशल-स्पेस में फैल गया। अगर फुटेज तक पहुंच बेहद कठिन है तो उसकी ‘अनदेखी’ क्यों? यही शक जन्म देता है।  

चुनावी आचार संहिता:  MCC (Model Code of Conduct) का आंतरिक मसौदा — चुनाव आयोग ने कई बार दिखावे के तौर पर निषेधात्मक कदम कम, ‘नरम-नोटिस’ ज़्यादा दिए। बिहार के मामले में प्रधानमंत्री का भाषण, जिसे ‘टेलिवाइज़्ड-टीचिंग’ कहा जा रहा है, अस्पष्टता की वजह से कानूनी सीमा के भीतर बताया जा सकता है — पर नैतिक रूप से यह मतदान की आज़ादी पर प्रभाव डालता दिखता है।

बिहार का SIR — सफाई या सफाये की योजना?

जब 65 लाख नामों का ‘नॉन-इंक्लूज़न’ आधिकारिक तौर पर सामने आता है और मशीन-रीडेबल डाटा साझा न किया जाए — तो वही सवाल उभरता है जिसने नेहरू और गांधी को कभी जगाया: क्या संस्थाएं जनता की सेवा के लिए हैं या सत्ता की सुविधा के लिए?

लोकतंत्र और संविधान के साथ विश्वासघात

प्रियंका गांधी ने कहा कि चुनाव आयोग के तीनों अधिकारी जनता का अधिकार छीन रहे हैं। इनके नाम याद कर लीजिए। इन्हें पद के पीछे छिपने मत दीजिए। यहीं तीनों अधिकारी हैं जो लोग लोकतंत्र और संविधान के साथ विश्वासघात कर रहे हैं, उन्हें देश भूलेगा नहीं। इन सभी को आने वाले समय में जवाब देना पड़ेगा। प्रियंका गांधी ने कहा कि संविधान ने जनता को वोट डालने की शक्ति दी है, जिससे सरकार बनाने का निर्णय आप लेते हैं, लेकिन जब BJP को पता चला कि जनता खिलाफ हो रही है, तो उसने आपके अधिकारों को कमजोर करने के लिए ‘वोट चोरी’ करनी शुरू कर दी।

अब सवाल ढेर सारे हैं

1.  मतदाता सूची को मशीन-रीडेबल क्यों नहीं बनाया गया?

2.  सीसीटीवी-फुटेज मांगा गया तो क्यों कहा कि देखने में “272 साल” लगेंगे?–

3.  क्या आयोग बैलगाड़ी युग में जी रहा है। आयोग का जवाब भारत की तकनीकी क्षमता का अपमान है

4.  सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बावजूद 100% VVPAT मिलान और खुला ऑडिट क्यों नहीं?

5.  बिहार-हरियाणा दोनों जगह प्रभावित नामों पर स्वतंत्र सत्यापन क्यों नहीं किया गया?

6.  क्या आयोग सत्ता का रक्षक है या सत्ता-का संचालक?

7.  वीडियो फुटेज नहीं देने का एक और बहाना किया गया – हम औरतों के वीडियो नहीं दिखा सकते

8.  तो मतदान करने आयी मुस्लिम औरतों के बुर्का उठाने की इजाजत किसने दी

9.  चुनावी आचार संहिता के उल्लंघनों पर कार्रवाई कम और राजनीति अधिक क्यों

 चुनाव आयोग अब निष्पक्ष ‘अंपायर’ नहीं रहा

भारत के चुनाव आयोग को कभी निष्पक्षता का प्रतीक माना जाता था। लेकिन आयोग कथित विसंगतियों पर वैज्ञानिक ऑडिट या स्वतंत्र विश्लेषण की मांग से बचता रहा।

अब यह सवाल आम जनता के मन में उठ रहा है कि — क्या आयोग सत्ता की सुविधा के लिए काम कर रहा है? या चुनाव आयोग मोदी सरकार के जादुई ‘दायरा चक्र’ में लोकतंत्र की सांसें घोंटने में लगा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि आयोग अब “जनसंपर्क आयोग” बन गया है, न कि “जनविश्वास आयोग।”
  • यह वक्त संतुलन से आगे निकलकर सवाल करने का है।
  • यह सिर्फ सुधार का नहीं — पुनर्निर्माण का समय है।
  • यह प्रश्न अब जन-आंदोलन का रूप ले चुका है।
  • डिजिटल युग में चुनावी पारदर्शिता की चुनौती
चुनाव अब केवल मतपत्र या मशीनों से नहीं, बल्कि डेटा से लड़े जा रहे हैं — व्हाट्सऐप ग्रुप, मोबाइल लिंक्ड वोटर आईडी, और एप्स के जरिए मतदाताओं की मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग की जा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि “डिजिटल मैनिपुलेशन” नया चुनावी हथियार बन चुका है। राहुल गांधी का यह कहना कि “भारत का लोकतंत्र अब सर्वर रूम में कैद है” — इसी खतरे की ओर इशारा करता है।

संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका पर पुनर्विचार

चुनाव आयोग, सीबीआई, ईडी, और मीडिया — ये चार स्तंभ अब सवालों के घेरे में हैं। अगर संस्थाएं सरकार के अधीन हो जाएँ, तो लोकतंत्र केवल नाम का रह जाता है। राहुल गांधी का अभियान इसी सच्चाई को उजागर करने का प्रयास है।

न्यायपालिका का परीक्षण-मंच

अगर आयोग-विरोधी आरोप सार्वजनिक-सुधार विकल्पों और संविधान-चिंताओं के आधार पर हैं — तो न्यायालय को अब स्वतःसंज्ञान लेना होगा।

यह अब तीक्ष्ण प्रश्नों का क्षण है — और इन सवालों की धार सुप्रीम कोर्ट के आगे टिक चुकी है:
  • क्या सुप्रीम कोर्ट ECI की निष्पक्षता की जांच करेगा?
  • क्या सुप्रीम कोर्ट मतदाता के वोट, और उसको देने के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करेगा?
  • क्या वह उस अंतिम सुरक्षित गार्ड के रूप में आएगा जो संवैधानिक पवित्रता को बचाए?
  • और क्या वह देश को विश्वास दिलाएगा कि न्यायपालिका अभी जीवित है
  • या वह भी उस दीवार के समान बन चुका है, जो सिर्फ परदा झकझोरने पर ढह जाती है?
  • यदि न्यायपालिका खामोश रही, तो आने वाली पीढ़ियाँ कहेंगी:
  • भारत में लोकतंत्र था — लेकिन उसे बचाया नहीं गया।

जनता का नया आंदोलन — वोट बचाओ, देश बचाओ

राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ केवल राजनीतिक अभियान नहीं, बल्कि एक जन-जागरण है। गाँवों में बैठकर चाय के साथ संवाद करने की उनकी शैली ने लोकतंत्र को फिर से जन-आधारित बनाने की कोशिश की है।

लोकतंत्र को बचाना हर नागरिक की जिम्मेदारी 

भारत का लोकतंत्र एक मोड़ पर खड़ा है — जहाँ जनता का विश्वास और संस्थाओं की ईमानदारी, दोनों की परीक्षा हो रही है। अगर वोट की पवित्रता पर प्रश्न उठे तो संविधान ही कमजोर पड़ जाएगा। यह सिर्फ राजनीति नहीं, आंदोलन बन चुका है— और आंदोलन में अक्सर निर्णायक मोड़ आता है जब सत्ता-सेतु संस्थाओं में दरार दिखे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आवाज गूंज रही है -

“The spirit of democracy cannot be imposed from without. It has to come from within.” — Mahatma Gandhi, Young India, 1925.

और नेहरू याद दिला रहे हैं -

“Ultimately, the strength of a democracy is not in its laws but in the honesty of those who implement them.” — Jawaharlal Nehru, लोकसभा 1951.

The soul of the Republic is on trial. It is time for the Supreme Court to deliver its opening statement.