सबरीमला पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जगह जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ये प्रदर्शन मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े संगठन कर रहे हैं। हाल ही में उससे वैचारिक समानता रखने वाली पार्टी शिव सेना भी इसमें कूद पड़ी है।
ग़ौर से देखने से साफ़ लगता है कि इस पूरे मामले को हिंदुत्ववादी संगठनों ने ‘हाइजैक’ कर लिया है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि किसी भी उम्र की औरतों को केरल के सबरीमला स्थित अयप्पा के मंदिर में घुसने से रोका नहीं जा सकता। इस फ़ैसले को राज्य बीजेपी ने हाथोहाथ लपक लिया।
बीजेपी की ज़बरदस्त रैली
बीजेपी ने 10 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक एक विशाल रैली का आयोजन किया। यह रैली पंडालम में शुरू हुई और राजधानी तिरुवनंतपुरम स्थित राज्य सचिवालय पर जाकर ख़त्म हुई। पंडालम वह जगह है, जहां से श्रद्धालु हर बार यात्रा शुरू करते हैं और पैदल चल कर 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित सबरीमला जाते हैं।
इस रैली का उद्घाटन राज्य बीजपे के महासचिव मुरलीधर राव ने किया। रैली में पार्टी के राज्य अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई और पार्टी के एक मात्र विधायक ओ राजगोपाल ने शिरक़त की। पिल्लई ने रैली की अगुवाई की। इसके अलावा सी पद्मनाभन और पीके श्रीकृष्णदास जैसे बड़े नेता भी मौजूद थे।
रैली में शरीक एनडीए के दल
कोल्लम और अल्लपुज़ा ज़िलों से गुजरती हुई यह रैली तिरुवनंतपुरम पंहुची। इसमें लाखों लोग शामिल हुए।
आंदोलन के दूसरे चरण में बीजेपी ने पथमनथिट्टा में एक बहुत बड़ी सभा की योजना बनाई है।
बीजेपी ने इस आंदोलन को बड़ी चालाकी से खड़ा किया है। वह अदालत की अवमानना से बचने के लिए कह रही है कि विरोध प्रदर्शन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ नहीं है। यह राज्य सरकार के विरुद्ध है। पार्टी ने मुख्यमंत्री पिन्यारी विजयन को निशाने पर लिया है।
पार्टी के राज्य महासचिव मुरलीधर राव ने कहा कि जनता चाहती है कि राज्य सरकार देश की सबसे बड़ी अदालत में फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिका दायर करे। बीजेपी ने मांग की है कि राज्य सरकार तुरत एक अध्यादेश जारी कर अदालत के फ़ैसले पर रोक लगा दे। बाद में उसे निरस्त करने वाला विधेयक पारित करवाए। राज्य सरकार ऐसा नहीं कर रही है, इसलिए प्रदर्शन हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ने अदालत के निर्णय के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर करने से साफ़ इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर हो चुकी है। केरल ब्राह्मण सभा ने यह याचिका लगाई है। उसका तर्क है कि माहवारी के उम्र की स्त्रियों को मंदिर प्रवेश से रोकना लैंगिक भेदभाव नहीं है।
राज्य बीजेपी का यह भी दावा है कि अयप्पा मंदिर के रास्ते के इलाक़ोें में बसने वाले आदिवासी समुदाय ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वे श्रद्धालुओं पर नज़र रखेंगे। वे किसी भी क़ीमत पर महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने देंगे।
आरएसएस भी इस मामले में बीजेपी के साथ है। समझा जाता है कि उसके काडर बड़ी तादद में रैली में घुस आए थे। यात्रा शुरू होने की जगह भी वे मौजूद हैं। शिव सेना ने दावा किया है कि उसने आत्मघाती जत्था भेजा है। उसने इसके साथ ही यह भी कहा कि यदि महिलाएं मंदिर में दाख़िल हो गईं तो जत्थे के लोग ख़ुदकुशी कर लेंगे।
सबरीमला पर फ़ैसले के ख़िलाफ़ बीजेपी ने कई जगह प्रदर्शन किए।
केरल की राजनीति में बीजेपी हमेशा से ही हाशिए पर रही है। पर धीरे धीरे उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। साल 2006 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 4.75 फ़ीसद वोट ही मिले थे। पर पिछले चुनाव यानी 2016 में इसका वोट प्रतिशत बढ़ कर 15 प्रतिशत हो गया। इसे पहली बार एक सीट पर कामयाबी मिली। ओ राजगोपाल ने सीपीआईएम के एन शिवम कुट्टी को हरा कर नेमम सीट जीत ली।
उसके बाद वहां पार्टी का उत्साह बढ़ा हुआ है। पार्टी की रणनीति भावनात्मक मुद्दों को उछाल कर और जनभावना को भड़का कर पैर पसारने की है।
बीजेपी ने इस रणनीति के तहत ही यह विरोध खड़ा किया है। पहले वह सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के पक्ष में थी। पर हफ़्ते भर में इसने अपना मन बदल लिया और इसे हिंदुओं की भावना और मंदिर की परंपरा से जोड़ दिया। पर उसका मुख्य मक़सद इसी बहाने राज्य सरकार पर दबाव बनाए रखना और अपना विस्तार करना है।