पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा और बिहार में विशेष मतदाता सूची संशोधन को नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न्स यानी एनआरसी से भी ख़तरनाक बता दिया। कांग्रेस और विपक्षी दलों ने भी इस फ़ैसले की तीखी आलोचना की है। तो सवाल है कि आखिर चुनाव आयोग के इस क़दम पर हंगामा क्यों मचा है?
दरअसल, चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची में विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर शुरू किया है। इस पर बिहार विधानसभा चुनावों से पहले विवाद शुरू हुआ है और विपक्ष का दावा है कि यह प्रक्रिया जानबूझकर मतदाताओं को बाहर करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने की कोशिश है। ममता ने इसे 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को पिछले दरवाजे से लागू करने की साजिश' करार दिया है।
ममता बनर्जी के आरोप
ममता बनर्जी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि चुनाव आयोग की नई मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया 'लोकतंत्र के लिए खतरा' है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया विशेष रूप से उन युवा मतदाताओं को निशाना बना रही है जो जुलाई 1987 और दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए हैं। ममता ने दावा किया कि आयोग का यह कदम भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर हो रहा है और इसका असली निशाना पश्चिम बंगाल है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। उन्होंने कहा, 'यह बिहार में शुरू हो रहा है, लेकिन इसका असर बंगाल और अन्य विपक्षी शासित राज्यों पर होगा। यह एनआरसी की तरह एक ख़तरनाक क़दम है।'
ममता ने यह भी सवाल उठाया कि बिना राजनीतिक दलों से परामर्श किए मतदाता सूची को पूरी तरह संशोधित करने का फ़ैसला कैसे लिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, लेकिन यह बीजेपी की कठपुतली की तरह काम कर रहा है। ममता ने कहा, 'मुझे चुनाव आयोग के इस कदम के पीछे का कारण या इन तारीखों के चयन का तर्क समझ नहीं आता। यह एक घोटाले से कम नहीं है।'
मैं आयोग से स्पष्टीकरण मांगती हूं कि क्या वे पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। वास्तव में, यह एनआरसी से भी ज्यादा खतरनाक लगता है, जिसका हर विपक्षी राजनीतिक दल को विरोध करना चाहिए। ममता बनर्जी
मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की आपत्ति
कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन से जानबूझकर मतदाताओं को बाहर करने का ख़तरा है। उन्होंने इसे 'चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर' का प्रयास बताया। कांग्रेस का कहना है कि 2003 में मतदाता सूची में शामिल नहीं होने वाले सभी मतदाताओं से नए सिरे से दस्तावेज मांगना एक अनुचित और पक्षपातपूर्ण क़दम है।
कांग्रेस ने यह भी दावा किया कि यह प्रक्रिया विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों, प्रवासी मजदूरों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को निशाना बना सकती है, जिनके पास पुराने दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सकते। पार्टी ने इसे 'चुनाव आयोग की नाकामी' का सबूत बताया, क्योंकि यह प्रक्रिया बिहार में चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई है, जिससे मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा।
राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी जैसे अन्य विपक्षी दलों ने भी इस क़दम का विरोध किया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, 'यह बीजेपी की हार के डर का नतीजा है। वे जानते हैं कि बिहार में उनकी जमीन खिसक रही है, इसलिए वे मतदाता सूची को हेरफेर करने की कोशिश कर रहे हैं।'
विशेष गहन संशोधन क्या है?
चुनाव आयोग ने मंगलवार को घोषणा की थी कि बिहार में 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं होने वाले सभी मतदाताओं को अपनी नागरिकता और पहचान साबित करने के लिए नए दस्तावेज जमा करने होंगे। इसके तहत ब्लॉक-स्तरीय अधिकारी घर-घर जाकर फॉर्म बाँटेंगे, मतदाताओं को दस्तावेज भरने में मदद करेंगे और उन्हें जमा करेंगे। आयोग का दावा है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को 'शुद्ध' करने और अवैध मतदाताओं को हटाने के लिए है।
हालाँकि, विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इसमें मतदाताओं को परेशान करने की संभावना है। ममता बनर्जी ने कहा कि बिहार के बाद असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, जो उनके अनुसार 'लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की साजिश' है।
विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध?
- ममता बनर्जी और अन्य विपक्षी नेताओं का मानना है कि यह प्रक्रिया एनआरसी को पिछले दरवाजे से लागू करने का प्रयास है। विशेष रूप से बंगाल में जहां एनआरसी का मुद्दा पहले से ही संवेदनशील है। इसे लेकर डर है कि यह अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों को निशाना बना सकता है।
- विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग का यह कदम बीजेपी के इशारे पर हो रहा है। ममता ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सब 'मोदी सरकार की मर्जी' से हो रहा है।
- कांग्रेस और अन्य दलों का दावा है कि दस्तावेजों की मांग से कई वैध मतदाता, खासकर गरीब और अशिक्षित लोग, मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। इससे विपक्षी दलों के वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
- ममता ने शिकायत की कि इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों से कोई परामर्श नहीं किया गया। उनका कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर मतदाता सूची संशोधन का फैसला बिना सहमति के लागू करना लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों का अभी तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है। हालांकि, कुछ बीजेपी नेताओं ने ममता के बयानों को 'गैर-जिम्मेदाराना' करार दिया है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि ममता का यह बयान 'चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर हमला' है और यह केवल अवैध प्रवासियों को हटाने की सामान्य प्रक्रिया है।
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को संसद में और सड़क पर उठाने की योजना बनाई है। ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस प्रक्रिया के ख़िलाफ़ क़ानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ेगी। कांग्रेस ने भी बिहार में इस मुद्दे पर जन जागरूकता अभियान चलाने की बात कही है।