'हम भारतीय पर्याप्त बेसब्र नहीं हैं', इस बार की अपनी भारत यात्रा में  मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने यह शिकायत की। बुज़ुर्ग सब्र की नसीहत देते पाए गए हैं, लेकिन हमारा यह बुज़ुर्गवार अध्यापक हमें अधैर्य की शिक्षा दे रहा है। ज्यां द्रेज़ के साथ अपनी पिछली किताब में भारत की दुर्दशा का वर्णन करने के बाद उन दोनों ने एक अध्याय लिखा,'बेसब्री की ज़रूरत'। सेन ज़िंदगी का लंबा हिस्सा भारत से बाहर गुजारने के बावजूद मानसिक रूप से भारत में रहते आए हैं। वे विश्व नागरिक हैं, रवीन्द्रनाथ टैगोर की परम्परा में, इंग्लेंड और अमरीका में लंबा वक़्त गुज़ारा है लेकिन भावनात्मक तौर पर वे भारत के ही नागरिक बने रहे हैं। भारत की जनता की वे आवाज़ हैं और इसकी परवाह उन्होंने नहीं की है कि वे अपने कद की ग़रिमा बनाए रखने के लिए संतुलित और संयमित होकर बोले।