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भारतीय कफ सिरप से अब तक 300 बच्चों की मौतः WHO

डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने दावा किया है कि भारत में बने घटिया कफ सिरप की वजह से तीन देशों में अगस्त 2022 से अब तक 300 बच्चों की मौत हो चुकी है, इस संबंध में डेटा अभी भी जमा किया जा रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स ने शनिवार को डब्ल्यूएचओ के हवाले से यह खबर प्रकाशित की है। हाल ही में गॉम्बिया और उज्बेगिस्तान से बच्चों की मौत की खबरें आई थीं।
संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी घटिया और नकली मेडिकल प्रॉडक्ट्स से निपटने के लिए फार्मा कंपनियों के संगठनों और नागरिक समाज के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर रही है।
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इकोनॉमिक टाइम्स को ईमेल पर दिए गए जवाब में डब्ल्यूएचओ प्रवक्ता ने कहा - इस मुद्दे पर परामर्श जारी हैं क्योंकि हम अधिक घटनाओं को रोकने, पता लगाने और प्रतिक्रिया देने के लिए कई स्टेकहोल्डर्स से बातचीत कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ मौजूदा मार्गदर्शन की समीक्षा कर रहा है ताकि यदि आवश्यक हो तो सुधार किया जा सके। फार्मा संगठनों और उद्योग की भागीदारी का समर्थन महत्वपूर्ण माना जाता है।
डब्ल्यूएचओ मूल्यांकन कर रहा है कि क्या ये प्रॉडक्ट्स बच्चों के लिए मेडिकल रूप से जरूरी हैं। प्रवक्ता ने कहा, छोटे बच्चों के इलाज के लिए मेडिकल प्रॉडक्टस का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवा एजेंसी की देखरेख में किया जाना चाहिए।  
डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता ने कहा, अब तक यह कहा गया है कि जिन तीन देशों में अगस्त 2022 से यह समस्या सामने आई है, वहां लगभग 300 मौतें हुई हैं, लेकिन अभी भी स्थानीय अधिकारियों से डेटा एकत्र किया जा रहा है।
डब्लूएचओ के अनुसार, खांसी के सिरप में दूषित पदार्थों के रूप में डायथिलीन ग्लाइकॉल और / या एथिलीन ग्लाइकॉल की "अस्वीकार्य" मात्रा होती है। प्रयोगशाला परीक्षणों के स्तर भिन्न होते हैं।    
इस बीच, गाम्बिया में बच्चों की "रहस्यमय मौतों" की जांच के लिए भारत द्वारा गठित एक समिति को भारतीय कंपनी की खांसी की दवा और मौतों के बीच कोई "पर्याप्त सबूत" नहीं मिला है।
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प्रसिद्ध फार्माकोलॉजिस्ट वाईके गुप्ता के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा गठित समिति ने इस महीने दवा नियामक और स्वास्थ्य मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। एक सूत्र ने कहा, समिति ने 6-7 बैठकें कीं, लेकिन दोनों के बीच कोई संबंध खोजने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले।

बड़ा आरोप

द हिंदू की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फार्मा कंपनियां पैसे बचाने के लिए ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकोल सॉल्वैंट्स के बजाय डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल करती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकॉल महंगा है, इसलिए दवा कंपनियां लागत कम करने के लिए जहरीले डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल करती हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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