ट्रम्प प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि अमेरिका में मौजूदा H-1B वीज़ा धारकों और हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ग्रैजुएट्स को सितंबर 2025 में लागू होने वाले $100,000 फीस से छूट दी गई है। इसका सीधा फायदा भारतीय छात्रों और तकनीकी विशेषज्ञों को होगा।
अमेरिका में हजारों भारतीय प्रोफेशनल्स और छात्रों के लिए बड़ी राहत की खबर है। ट्रम्प प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ग्रैजुएट्स को H-1B वीज़ा के लिए पिछले महीने शुरू की गई 100,000 डॉलर की भारी फीस का भुगतान नहीं करना होगा। अधिकारियों ने पहले भी कहा था कि मौजूदा H-1B वीजा धारकों को पिछले महीने घोषित फीस का भुगतान नहीं करना होगा। लेकिन पिछली घोषणा स्पष्ट नहीं थी। इस वजह से तमाम पसोपेश बना हुआ था। लेकिन ताज़ा घोषणा बहुत साफ है और उसमें सारे संशय दूर कर दिए गए हैं।
यह स्पष्टीकरण ट्रम्प के उस घोषणापत्र के बाद हफ्तों की उलझन के बाद आया है, जिसमें तकनीकी रूप से कुशल विदेशी श्रमिकों को बुलाने वाली कंपनियों के लिए लगभग ₹90 लाख रुपये की भारी वार्षिक फीस अनिवार्य कर दी गई थी। यह फीस 21 सितंबर को दोपहर 12:01 बजे से लागू हो गई थी। जिसने भारतीय श्रमिकों, अमेरिकी कंपनियों और इमीग्रेशन वकीलों के बीच घबराहट पैदा कर दी थी।
मौजूदा वीजा धारकों के लिए राहत
यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) ने अपनी नवीनतम गाइडलाइंस में कहा कि 100,000 डॉलर (90 लाख रुपये) का शुल्क उन लोगों पर लागू नहीं होगा जो पहले से ही संयुक्त राज्य में वैध वीजा पर हैं, जिसमें F-1 छात्र वीजा धारक, L-1 कंपनी के भीतर स्थानांतरित कर्मचारी, और वर्तमान H-1B वीजा धारक जो नवीकरण या विस्तार की मांग कर रहे हैं, शामिल हैं।
एजेंसी ने स्पष्ट किया कि फीस वाली घोषणा “पहले जारी किए गए और वर्तमान में वैध H-1B वीजा, या 21 सितंबर, 2025 को दोपहर 12:01 बजे से पहले जमा किए गए किसी भी आवेदन पर लागू नहीं होगी।” इसने यह भी कहा कि H-1B धारक बिना किसी प्रतिबंध के यूएस में और बाहर यात्रा जारी रख सकते हैं। फीस के संबंध में इस घोषणा ने सबसे बड़ी चिंता में से कम से कम एक मामले में राहत तो दे दी है।
USCIS ने पुष्टि की है कि मौजूदा विदेशी नागरिक जो स्थिति परिवर्तन के लिए आवेदन कर रहे हैं - जैसे कि F-1 वीजा पर अंतरराष्ट्रीय छात्र जो H-1B नौकरियों में बदलाव कर रहे हैं, उन्हें नया शुल्क नहीं देना होगा।
भारतीय क्यों सबसे ज्यादा प्रभावित
यह घोषणा भारतीय तकनीकी प्रोफेशनल्स के लिए एक बड़ी राहत है, जो H-1B वीजा कार्यक्रम की रीढ़ हैं।
वर्तमान में अमेरिका में लगभग 300,000 भारतीय श्रमिक H-1B वीजा पर हैं, जो ज्यादातर आईटी और सर्विस प्रोवाइडर इंडस्ट्री में कार्यरत हैं। अमेरिकी प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 70% भारतीयों ने नए H-1B वीजा आवंटन के लिए आवेदन किया है, इसके बाद चीनी नागरिक 11-12% हैं जिन्होंने वीजा के लिए आवेदन किया है।
H-1B वीजा अत्यधिक कुशल श्रमिकों को यूएस में तीन साल तक रहने और काम करने की अनुमति देता है, जिसे तीन साल और बढ़ाया जा सकता है। हर साल, 85,000 नए वीजा लॉटरी सिस्टम के जरिए दिए जाते हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स के विश्लेषण के अनुसार, नए 100,000 डॉलर की फीस उस सालाना आमदनी से 20 से 100 गुना ज्यादा है, जो नए H-1B श्रमिकों को मिलती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि यह शुल्क H-1B कार्यक्रम को “प्रभावी रूप से समाप्त” कर सकता है, क्योंकि यह कई कंपनियां और स्टार्टअप्स नहीं झेल सकते थे।
भारतीय-अमेरिकी समुदाय पर प्रभाव
भारत के लिए, यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। H-1B वीजा लंबे समय से मिडिल क्लास का अमेरिका में प्रवेश द्वार रहा है, जिसमें कई भारतीय परिवारों ने इस मार्ग के जरिए अमेरिका में खुद को स्थापित किया। रिसर्चरों ने बताया है कि H-1B वीजा ने भारतीय-अमेरिकियों को अमेरिका में सबसे शिक्षित और उच्च आय अर्जित करने वाले समुदायों में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इन्फोसिस, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), और विप्रो जैसी भारतीय आईटी कंपनियों ने ऐतिहासिक रूप से H-1B वीजा का इस्तेमाल अमेरिकी साइटों पर इंजीनियरों को तैनात करने के लिए किया है। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियां भी H-1B श्रमिकों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं, जिनमें से कई अमेरिकी यूनिवर्सिटीज से ग्रैजुएट भारतीय हैं।
नए H-1B वीजा फीस का राजनीतिक प्रभाव
ट्रम्प के 100,000 डॉलर की फीस ने अमेरिका और भारत दोनों में तीखी प्रतिक्रियाएं दीं थीं। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह “उच्च आय वालों” को आकर्षित करने और उन कंपनियों को हतोत्साहित करने के लिए बनाया गया था जो “कम आय वाले लोगों को लाकर अमेरिकियों की नौकरियां छीनते हैं।” उन्होंने कहा था कि जबकि H-1B कोटा 65,000 नियमित और 20,000 उन्नत डिग्री स्लॉट्स पर बना रहेगा, “उनमें से कम ही जारी किए जाएंगे।”
भारत में भी ट्रम्प की घोषणा के बाद राजनीतिक विवाद हुआ। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भारतीय श्रमिकों के हितों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया, जबकि कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस शुल्क को ट्रम्प से मोदी के लिए “जन्मदिन का उपहार” करार दिया। केंद्र ने कहा कि वह नई नीति के प्रभावों का अध्ययन कर रहा है। इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में “आत्मनिर्भरता” के अपने आह्वान को दोहराया, और कहा कि भारत का “एकमात्र वास्तविक दुश्मन अन्य देशों पर निर्भरता है।”