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यूएफओ के भवंर में अमेरिका, खंडन के बावजूद पुरानी कहानियां लौटीं

अमेरिका एक बार फिर यूएफओ (उड़ने वाली अज्ञात चीज) या उड़न तश्तरी के भंवर में डूब रहा है। 1940-50 के दशक का अमेरिका याद किया जा रहा है जब उड़न तश्तरी पर चर्चा उनके ड्राइंग रूम से लेकर बेडरूम तक पहुंच गई थी। एक अमेरिकी जनरल ने एक चीनी गुब्बारा और तीन अज्ञात वस्तुओं को मार गिराए जाने के बाद कहा था कि इसे एलियंस के नजरिए से भी देखा जा रहा है। पेंटागन ने अपने यूएफओ प्रकोष्ठ सक्रिय कर दिया। लेकिन अब  व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव काराइन जीन-पियरे ने सोमवार को कहा कि अभी तक एलियंस या अलौकिक गतिविधि का कोई संकेत नहीं मिला है।

प्रेस ब्रीफिंग में उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि इस बारे में सवाल और चिंताएं हैं लेकिन एलियंस का कोई संकेत नहीं है।

साउथ कैरोलिना में 4 फरवरी को चीनी जासूसी गुब्बारे को मार गिराने के बाद से, यूएस ने तीन और अज्ञात उड़ने वाली वस्तुओं को मार गिराया है। इनमें से दो अमेरिकी हवाई क्षेत्र में और एक कनाडाई हवाई क्षेत्र में शूट किए गए।

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व्हाइट हाउस ने कहा कि जिन अज्ञात वस्तुओं को मार कर गिराया गया वो जमीन पर लोगों के लिए खतरा नहीं थीं। उनसे कोई संचार संकेत (कम्युनिकेशन सिग्नल) नहीं मिल रहा था और वे अज्ञात वस्तुएं मानवयुक्त नहीं थीं। अमेरिका अभी भी उन उड़ने वाली वस्तुओं की प्रकृति और उद्देश्य को निर्धारित करने के लिए काम कर रहा है जिन्हें हाल ही में गिराया गया है। 
व्हाइट हाउस प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन को "सुरक्षा या सुरक्षा जोखिम पैदा करने वाले अज्ञात हवाई वस्तुओं का पता लगाने, विश्लेषण और निपटाने के लिए एक समूह का नेतृत्व करने के लिए कहा है। इस समूह में सचिव एंटनी ब्लिंकन, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक एवरिल हैन्स शामिल हैं।

उड़न तश्तरी लोक कथा बन गई

1940 और 50 के दशक में "उड़न तश्तरी" की खबरें यूएस मीडिया में आने लगीं और वो बहुत जल्दी अमेरिका की सांस्कृतिक घटना बन गईं। लोग उठते-बैठते, सोते-जागते सिर्फ उड़न तश्तरियों के बारे में बातें करने लगे। आकाश में अजीबोगरीब वस्तुओं का दिखना हॉलीवुड फिल्मों के लिए कच्चा माल बन गईं। 1956 से पृथ्वी बनाम उड़न तश्तरी जैसी फिल्मों के पोस्टर इसी स्थिति को बताते हैं।

इसी दौरान चांद पर जीवन, मंगल ग्रह पर नहरें और मंगल ग्रह की सभ्यताओं के बारे में बातें होने लगीं। हालांकि इस दौरान नासा भी इस बारे में कुछ न कुछ बताने लगा। इन अज्ञात चीजों को उड़न तश्तरी कहा गया और बहुत जल्द ही स्टार वार्स जैसी फिल्म सामने आ गई।

अमेरिकी लोगों की कल्पनाएं बढ़ने लगीं। वे अब गुड और बैड एलियंस के बारे में बातें करने लगे। हॉलीवुड की फिल्मों ने भी गुड-बैड एलियंस की कहानियों में रंग भरे। परमाणु बम को भी इन कहानियों के साथ फिट कर दिया गया।
अमेरिका-यूएसएसआर (रूस) के बीच शीत युद्ध की संभावनाओं ने उड़न तश्तरियों की धारणा को नए संदर्भों में पेश करना शुरू किया। अब ये कहानियां अमेरिका से निकल कर दूसरे देशों में पहुंच गईं। अन्य देशों में भी उड़न तश्तरी देखे जाने की खबरें मीडिया में आईं। भारत में एक समय की प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका धर्मयुग ने उड़न तश्तरी पर विशेषांक निकाला और किसी हिन्दी पत्रिका में उड़न तश्तरी पर यह पहला विशेषांक था।
क्या एलियंस हैंः अभी तक एलियंस का अस्तित्व फिल्मों, मीडिया और अमेरिकी लोक कथाओं में है। इसके अस्तित्व का खंडन बार-बार अमेरिका से ही हुआ है। एलियंस के होने की कहानी वहीं से जन्म लेती है और वहीं खत्म हो जाती है। जैसे इस बार भी पेंटागन और अमेरिकी एयरफोर्स के टॉप रैंक के जनरल के बयान से एलियंस पर चर्चा छिड़ी लेकिन अब व्हाइट हाउस ने बयान देकर उसका अंत कर दिया। लेकिन अमेरिका में सवालों का दौर जारी है - अगर यूएफओ हमारी दुनिया का दौरा कर रहे है, तो ये कहां से आ रहे हैं? क्या वे हमारे बीच छिपे हो सकते हैं? लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि सिर्फ कॉमिक पुस्तकों और टीवी की कहानियों से एलियंस युग की पुष्टि नहीं की जा सकती। आप डरते रहें। लेकिन डर जैसी कोई बात नहीं है।

अमेरिका में ही क्यों ज्यादा चर्चा

एलियंस की कहानियां समकालीन लोक कथाओं के रूप में तो मौजूद ही हैं। लेकिन यूएफओ मीडिया में, यूएफओ डॉक्यूमेंट्री के अलावा यूएफओ अमेरिकी लोक संस्कृति का भी हिस्सा बन गए हैं। एलियंस और उड़न तश्तरी के विचार अमेरिका की पौराणिक कथाओं का हिस्सा हैं। आप लोक जीवन संग्रहों में इस प्रकार के अनुभवों का दस्तावेजीकरण पा सकते हैं। शिकार और शिकारी कुत्तों के बारे में हॉवर्ड मिलर ने वर्जीनिया में लोकजीवन और लैंडस्केप में यूएफओ देखे जाने के एक व्यक्ति के अनुभव का दस्तावेजीकरण किया है।
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ए मिस्टीरियस लाइट में, मिलर ने एक अजीब रोशनी का वर्णन किया है जिसे उन्होंने 1966 में अपने कुत्तों के साथ शिकार करते समय देखा था यह पूछे जाने पर कि क्या वह जानते हैं कि वो क्या था, उन्होंने कहा- मुझे नहीं पता कि यह क्या था। लेकिन अगर यूएफओ जैसी कोई चीज है तो वह यही थी।

यह केवल मीडिया ही नहीं है जो यूएफओ की कहानियों को बताता है। यह लोगों के आपसी बातचीत से भी फैल रही हैं। अमेरिकी एक-दूसरे को बताते हैं, कि यूएफओ 21 वीं सदी के अमेरिका के लिए क्या मायने रखता है।

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क़मर वहीद नक़वी
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