लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
पूरे देश में जिस तरह का किसान असंतोष है, वह निश्चित तौर से सरकार पर यह दबाव तो बनाएगा ही कि सरकार इस बजट में किसानों के लिए कुछ ठोस करती हुई दिखे।
बिहार में सोशल मीडिया पर किसी के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक या तथ्यहीन पोस्ट करने पर अब सीधे कार्रवाई होगी। पर क्या इसका दुरुपयोग नहीं होगा?
कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं, जैसे वैक्सीन को लेकर पैदा होने वाले भय और उस पर उठने वाली आशंकाएं।
अगले 10 साल के लिए देश की स्पेक्ट्रम नीति तय हो रही है, दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनियाँ नाराज़ हैं कि उनकी राय नहीं ली जा रही है।
2020 की ख़ासियत यह रही है कि इस साल जितना भी बुरा हुआ, उसका आरोप मढ़ने के लिए एक खलनायक मौजूद है। ख़ासकर आर्थिक मोर्चे पर जितनी भी दुर्गति दिख रही है उसके लिए।
किसानों की आमदनी कैसे बढ़ाई जा सकती है, इसके लिए दो बातें अक्सर कही जाती हैं। सबसे पहले यह कहा जाता है कि भारत में कृषि उत्पादन काफी होता है और इसके निर्यात से किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है।
मशहूर ब्रिटिश पत्रिका ‘द इकाॅनमिस्ट’ में पिछले हफ़्ते आवरण कथा थी- ‘विल इन्फ्लेशन रिटर्न?’, यानी क्या मुद्रास्फीति लौटेगी? अर्थशास्त्रियों की यह सबसे बड़ी चिंता है कि मुद्रास्फीति यानी महंगाई का असर वहाँ के बाजारों से ग़ायब हो चुका है।
सोशल मीडिया पर एक तसवीर बहुत ज़्यादा चलाई जा रही है- इसमें आंदोलन कर रहे किसानों के हाथों में भीमा कोरेगाँव, शाहीनबाग़ और दिल्ली दंगों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों के पोस्टर हैं। यह तसवीर क्या कहती है?
मध्य प्रदेश में हुई गौ-कैबिनेट की चर्चा जितनी उसकी बैठक से पहले हुई, बैठक के बाद उतनी नहीं हुई क्योंकि उसमें ऐसा कुछ हुआ ही नहीं कि कोई बड़ी चर्चा हो सके। क्या बीजेपी को वाक़ई गाय की चिंता है?
शुक्रवार को सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के आपातकालिक प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए प्याज के भंडारण की सीमा तय कर दी। प्याज की कीमतें जिस तरह से और जिस तेजी से बढ़नी शुरू हुई हैं, उसे देखते हुए सरकार के पास कोई चारा भी नहीं था।
सितंबर महीने में महंगाई यानी मुद्रास्फीति की जो दर 7.34 फीसदी के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गई थी उसका सबसे बड़ा कारण था खाद्य वस्तुओं यानी खाने-पीने के जरूरी सामान का महंगा हो जाना।
देश के आर्थिक विमर्श में इन दिनों नई हरी पत्तियों की चर्चा अचानक ही शुरू हो गई है। सितंबर महीने के जो आँकड़ें हैं वे भले ही कोई बड़ी उम्मीद न बंधी रही हो, राहत तो दे ही रहे हैं।
देश भर के किसान सड़कों पर उतर आए हैं और यह संकट सिर्फ सड़कों पर ही नहीं दिखा, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन भी इसकी जद में आ गया।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आँकड़े बता रहे हैं कि कभी सबसे तेज़ी से तरक्क़ी कर रही अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने वाला भारत अब दुनिया की सबसे तेज़ी से नीचे गिर रही अर्थव्यवस्था बन गया है।
यह कहा जाने लगा कि चेचक दुनिया को भारत की ही देन है, हालांकि चेचक का जो दर्ज इतिहास उस समय तक मौजूद था। क्या है मामला?
मानव श्रृंखला बनाकर चेचक की वैक्सीन को किस तरह भारत तक पहुँचाया गया, यह एक बेहद दिलचस्प कहानी है।
एक ऐसा अनूठा मामला, जिसमें प्लेग के वायरस का इस्तेमाल कर कोलकाता में हत्या की गई थी।
दुनिया ने भले ही एडवर्ड जेनर को वैक्सीन का पितामह मान लिया लेकिन ये दावे कभी खत्म नहीं हुए कि वैक्सीन का अविष्कार भारत में ही हुआ था।
आतंक पहले भी कम नहीं था, लेकिन कोरोना वायरस को लेकर जो नया अंदेशा दुनिया भर के वैज्ञानिकों और महामारी विशेषज्ञों को परेशान कर रहा है, वह है ‘सेकंड वेव’ यानी एक बार कम होने के बाद संक्रमण फिर से बढ़ने की आशंका।
लाॅकडाउन शुरू होने के कुछ ही समय बाद रिलायंस की संचार कंपनी जियो प्लेटफाॅर्म्स में विदेशी निवेश की जो बारिश शुरू हुई, वह अब तक जारी है।
क्या वाईक भारतीय रेल का निजीकरण होने जा रहा है? रेल मंत्री पीयूष गोयल ऐसा नहीं मानते। पर सच क्या है?