लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
देश में क्या गरीबी और अमीरी के बीच बढ़ती खाई का ही नतीजा है कि गौतम अडानी दुनिया के सबसे पाँच अमीरों में शामिल हो गए हैं? कोरोना जैसे संकट के बीच अडानी यह उपलब्धि कैसे हासिल कर पाए?
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन के भारत दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से क्या कोई चूक हुई और इससे क्या भारत को कुछ नुकसान हुआ है?
दुनिया के तमाम मुल्क़ महंगाई का दंश झेल रहे हैं। इसका सबसे ज़्यादा असर ग़रीब और मध्यम वर्ग पर हो रहा है। इस बीच रूस-यूक्रेन के युद्ध के कारण हालात और ख़राब हुए हैं।
देश में नफ़रत फैलाने के मामले लगातार आते रहे हैं और क्रिसमस डे भी इसका अपवाद नहीं रहा। जानिए, क्रिसमस पर कुछ दक्षिणपंथियों ने क्या किया।
ओमिक्रॉन की दहशत के बीच मास्क को लेकर जारी की गई चेतावनी का ख़ुद प्रधानमंत्री और बाक़ी बड़े नेता ही पालन न करें तो फिर चेतावनी जारी करने का क्या मतलब है।
डेल्टा के बाद अब ओमिक्रॉन वैरिएंट का ख़तरा सामने है। क्या हम बीते वक़्त में की गई अपनी ग़लतियों से कुछ सबक लेंगे।
कोरोना संक्रमण के मामले और इसस मरने वालों का आँकड़ा क्या दुनिया भर में कहीं भी सही-सही बताया गया है? जानिए शोध में क्या सामने आया।
सांख्यिकी विभाग ने जब जीडीपी 20.1 फ़ीसदी विकास दर के आँकड़े जारी किए तो एक के बाद एक सभी टीवी चैनलों पर इसे सरकार की उपलब्धि बताया जाने लगा। लेकिन क्या इसे वाक़ई सरकार की उपलब्धि माना जा सकता है?
नेशनल मॉनीटाईजेशन पाइपलाइन से सबसे ज़्यादा पैसा भारतीय रेल से ही मिलेगा, लेकिन यह उसका चरित्र भी बदल देगा। क्या होगा भारतीय रेल का और क्या होगा इसकी रियायतों का, पढ़ें हरजिंदर को।
इन दिनों आप केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों की किसी भी वेबसाइट पर चले जाएं, सब जगह आपको अमृत महोत्सव की तैयारियां दिखाई देंगी।
एग्रीस्टैक के तहत सरकार देश भर के किसानों का एक विशाल डेटाबेस क्यों तैयार करवा रही है? आख़िर इसको लेकर किसानों में चिंता क्यों है?
क्या सरकार 2024 के आम चुनाव से पहले देश के राजनैतिक आधार में किसी आमूल-चूल बदलाव की तैयारी कर रही है?
कोविड-19 के मुफ्त टीके के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करने वाले ऐसे होर्डिंग्स ने कोविड काल में भी प्रचार का कारोबार करने वालों की चांदी कर दी है।
बड़े बदलाव किसी तारीख के मोहताज नहीं होते, लेकिन कुछ तारीखें जरूर ऐसी होती हैं जिन्हें कभी इसीलिए नहीं भुलाया जा सकता कि वहां से बदलाव का कारवां शुरू हुआ था।
बचपन में जिन दो लेखकों ने हमारे भीतर व्यंग्य की समझ पैदा की उनमें से एक थे केपी सक्सेना और दूसरे थे उर्मिल कुमार थपलियाल।
कोरोना संक्रमण पर हर रोज दिल्ली में होने वाली मीडिया ब्रीफिंग में कुछ राज्यों में बढ़ते संक्रमण का ज़िक्र विशेष रूप से किया जाता है जबकि कई राज्यों और बहुत सारे तथ्यों से आँखें मूंद ली जाती हैं।
वैक्सीन की शुरुआती कामयाबी के बाद पश्चिम के देशों ने शायद यह मान लिया है कि उन्होंने कोविड-19 की महामारी पर जीत हासिल कर ली है।
अब कई तरह के दबावों के बीच ऐसा लग रहा है कि भारत से वैक्सीन निर्यात का सिलसिला फिर से शुरू हो सकता है। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों को देख रहे वी के पॉल ने कहा कि कोविड वैक्सीन का निर्यात पूरी तरह से हमारे राडार पर है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और दवा बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित की गई वैक्सीन को लेकर दुनिया भर में जो हो रहा है वह आगे चलकर भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। यह सब भारत की वैक्सीन नीति से होगा।
रंगों को लेकर हर समाज की अपनी पसंद और नापसंद होती है। तो क्या रंगों को किसी भी तरह से सांप्रदायिक बनाया जा सकता है?
महामारी का ख़तरा उन लोगों के लिए भी उतना ही है, लेकिन जिस तरह से म्याँमार यानी बर्मा में सेना ने चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा किया है, जनता तमाम ख़तरों को नजरंदाज करते हुए सड़कों पर निकल आई है।
पिछले दिनों जब देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटों से भरी एक एसयूवी मिली तो चिंता की रेखाएँ हर तरफ़ दिखी थीं। 12 साल पहले मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी के साथ भी ऐसी ही घटना हुई थी।
सवा करोड़ लोगों को वैक्सीन देने का आँकड़ा काफी बड़ा लगता है, ख़ासकर जब इसकी तुलना हम दुनिया के दूसरे देशों से करते हैं। लेकिन अगर हम इसे प्रतिशत में बदल दें तो तसवीर कुछ दूसरी हो जाती है।
कभी दुनिया की क्रिकेट का चेहरा बदल देने वाले आस्ट्रेलियाई मीडिया मुगल कैरी पैकर और टेलीविजन की दुनिया बदल देने वाले रपर्ट मर्डाक अब सोशल मीडिया का चेहरा बदलने पर तुल गए हैं।
‘द इकाॅनमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ के डेमोक्रेसी इंडेक्स में इस बार जो साल 2020 का इंडेक्स जारी हुआ है उसमें भारत 6.61 अंक के साथ 53वें स्थान पर रहा है।
पूरे बजट भाषण में सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक यह रहा कि निर्मला सीतारमण ने रक्षा ख़र्च पर कुछ नहीं बोला।