तीन कृषि क़ानूनों के बाद किसानों के असंतोष की एक नई आशंका उभरती दिख रही है- एग्रीस्टैक जिसे नेशनल फार्मर्स डेटाबेस भी कहा जा रहा है। अभी तक जो जानकारी मिली है उसके हिसाब से सरकार देश भर के किसानों का एक विशाल डेटाबेस तैयार करवा रही है। अभी इसकी एक पायलट परियोजना चल रही है, जिसके तहत दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट उत्तर भारत के एक सौ गाँवों का डेटाबेस बनाकर उसका परीक्षण कर रही है। इसकी कुछ ज़िम्मेदारी नागपुर के एक स्टार्टअप को भी दी गई है। यह डेटाबेस ज़मीन की मिल्कियत के दस्तावेज़ यानी खतवा खतौनी के आधार पर बनाया जा रहा है।

एग्रीस्टैक का यह डेटाबेस लैंड रिकॉर्ड आधार पर तैयार किया जा रहा है इसलिए यह डर भी है कि इससे भारत में किसानों की परिभाषा बहुत सीमित हो जाएगी। किसान संगठनों का कहना है कि इसके आधार पर तो किसान सिर्फ़ वही माने जाएंगे जिनके पास छोटा या बड़ा ज़मीन का कोई टुकड़ा है।
जिसे लेकर पिछले कुछ महीनों से पहला विवाद तो यह उठ रहा है कि देश के किसानों की ज़मीन जायदाद की जानकारी एक निजी और बहुराष्ट्रीय कंपनी के हवाले कैसे की जा सकती है।