यह साल हमें एक सुविधा देकर ख़त्म हो रहा है। 2020 की ख़ासियत यह रही है कि इस साल जितना भी बुरा हुआ, उसका आरोप मढ़ने के लिए एक खलनायक मौजूद है। ख़ासकर आर्थिक मोर्चे पर जितनी भी दुर्गति दिख रही है उसका सारा आरोप इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के मत्थे मढ़ा जा सकता है।

अब अगर हम ग्रॉस कैपिटल फाॅरमेशन के हिसाब से देखें तो 2020 पहले के वर्षों के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही बुरा साबित होने वाला दिखता है। 2018 के मुक़ाबले 2019 में यह आँकड़ा दो फ़ीसदी से भी ज़्यादा गिर गया। वैसे भारत में ग्रॉस कैपिटल फाॅरमेशन में यह गिरावट 2009-10 में आई उस विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के बाद से ही शुरू हो गई थी।
यह सच है कि संक्रमण और उसके बाद लागू हुए लाॅकडाउन ने दुनिया के तकरीबन सभी देशों में अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल दिया है। हालाँकि भारत ने इस दौरान जिस तरह मंदी में गोता लगाया है वैसे उदाहरण बहुत कम ही हैं। लेकिन जब यह साल ख़त्म हो रहा है तो एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि अगर यह महामारी न आई होती तो क्या हम 2020 में पहले के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में होते?