संजय राय पेशे से पत्रकार हैं और वह समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
महाराष्ट्र के सियासी परिवारों में सत्ता का संघर्ष होता रहा है। ठाकरे और भोसले राजघराने के बाद अब शरद पवार के परिवार में सत्ता को लेकर कलह शुरू हो गई है।
क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
शरद पवार के लोकसभा चुनाव न लड़ने के एलान ने इस बात को उजागर कर दिया है कि परिवार पर उनकी पकड़ शायद कमज़ोर पड़ने लगी है।
पवार ने कहा है कि मोदी दुबारा प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। उन्होंने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मनसे नए समीकरण बनाएगी और इसकी ताक़त बढ़ेगी।
विधानसभा में भाजपा के साथ मिलकर इन दलों ने शिवसेना को पटकनी देने में मदद की थी, लेकिन आज बीजेपी को शिवसेना का साथ मिलने पर ये सहयोगी दल बेगानों जैसे हो गये हैं।
आचार संहिता लागू हो गई है लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन और सीटों के बंटवारे का खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ है। आकलन लगाया जा सकता है कि इस बार मुक़ाबला त्रिकोणीय होने वाला है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री के संभावित दावेदारों में से एक समझे जाने वाले शरद पवार ने घोषणा की है कि वह अगला लोकसभा चुनाव नही लड़ेंगे।
राहुल गांधी ने बैठक में अपनी नाराज़गी भी जताई थी कि महाराष्ट्र कांग्रेस छोटे-छोटे मुद्दों को हल करने की बजाय उन्हें आगे ढकेले जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने आंगनबाड़ी पोषण आहार की ख़रीद के लिए निकाले गए टेंडर्स को रद्द कर दिया है। इससे बीजेपी सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और महाराष्ट्र,, कभी समाजवादी नेताओं और श्रमिक आन्दोलनों का केंद्र हुआ करते थे, लेकिन आज राजनीति का रंग बदलकर कुछ और हो चुका है।
पृथक विदर्भ की पहेली अभी भी अनसुलझी है। जिस पृथक विदर्भ आंदोलन के नारे कभी बीजेपी नेताओं का जोश बढ़ाते थे आज इन्हीं नारों पर उन्हें ग़ुस्सा आ रहा है।
भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के लोकसभा चुनाव से पूर्व शीर्ष स्तर पर किये गए गठबंधन का ज़मीनी स्तर पर विरोध अब सामने आने लगा है।