जब चीन ने दी थी धमकी, तब इंदिरा गांधी ने दिखाया था राजनीतिक साहस और 1975 में सिक्किम को भारत में मिला लिया। जानिए इस ऐतिहासिक फैसले की पूरी कहानी।
हिमालय का रत्न कहा जाने वाला सिक्किम अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सामरिक महत्व के लिए जाना जाता है। लेकिन इसकी कहानी सिर्फ खूबसूरती तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी गाथा है जिसमें भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दूरदर्शिता, साहस, और कूटनीतिक कौशल दर्ज है जिसने इतिहास ही नहीं उपमहाद्वीप के भूगोल को बदल दिया। 1975 में चीन के विरोध के बावजूद इंदिरा गाँधी ने सिक्किम का विलय भारत में करा दिया जैसा कि अमेरिका के विरोध के बावजूद उन्होंने बांग्लादेश को संप्रुभ राष्ट्र के रूप में ग्लोब में जगह दिलाई थी।
सिक्किम को भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। विश्व का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत, कंचनजंगा, इसकी शान है। युमथांग घाटी (फूलों की घाटी), गुरुदोंगमार और त्सोमगो जैसी झीलें, और तिस्ता नदी इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाती हैं। सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक (ऑर्गेनिक) राज्य है, जहां 2016 से पूरी तरह जैविक खेती होती है। खांगचेंडज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, दुर्लभ प्रजातियों जैसे हिम तेंदुआ और लाल पांडा का घर है। इसकी राजधानी गंगटोक पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है।
लेकिन सिक्किम का सबसे बड़ा महत्व सामरिक है। यह नेपाल, भूटान, तिब्बत (चीन), और पश्चिम बंगाल से घिरा है। नाथू ला दर्रा भारत-चीन व्यापार और रणनीति का केंद्र रहा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सिक्किम की सीमा पर भारत की चौकसी और मजबूत उपस्थिति जरूरी हो गई थी। सिक्किम का भारत में पूर्ण विलय इसी सामरिक आवश्यकता का परिणाम था।
इंदिरा गांधी ने न केवल इतिहास बदला, बल्कि नया भूगोल भी रचा। 1971 में अमेरिकी सातवें बेड़े की धमकियों को नजरअंदाज कर, उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश को जन्म दिया। लेकिन सिक्किम की चुनौती बाकी थी। सिक्किम 1947 में भारत का हिस्सा नहीं बना था। यह एक संरक्षित रियासत थी, जहां भारत ने इसकी रक्षा और विदेश नीति का जिम्मा लिया, लेकिन आंतरिक मामले चोग्याल (राजा) के पास थे।
चीन इसे भारत का हिस्सा मानने को तैयार नहीं था। इंदिरा गांधी ने तय किया कि सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य बनाना होगा और वह भी बिना बड़े सैन्य संघर्ष के।
सिक्किम के अंतिम चोग्याल, पाल्डेन थोंडुप नामग्याल, और उनकी अमेरिकी पत्नी होप कुक इस कहानी में महत्वपूर्ण किरदार थे। होप कुक, जो 1963 में चोग्याल से शादी करने के बाद सिक्किम की रानी बनीं, पर कई लोगों ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का एजेंट होने का आरोप लगाया। वह सिक्किम की पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत करती थीं और चोग्याल को इसके लिए उकसाती थीं। होप कुक ने सिक्किम के महल की कई बहुमूल्य कलाकृतियां और पेंटिंग्स अमेरिका भेज दी थीं। वह राजनीतिक रूप से सक्रिय थीं, विदेशी मेहमानों से मिलती थीं, और सिक्किम की आजादी पर लेख लिखती थीं। इन गतिविधियों ने भारत में संदेह पैदा किया, और इंदिरा गांधी ने इसे एक रणनीतिक खतरे के रूप में देखा।
सिक्किम की कहानी 17वीं शताब्दी से शुरू होती है, जब 1642 में फुंट्सोग नामग्याल को लेप्चा समुदाय ने पहला चोग्याल बनाया। उस समय भारत में अकबर का शासन अपने चरम पर था। सिक्किम एक स्वतंत्र बौद्ध रियासत थी, जिसके तिब्बत, भूटान, और नेपाल के साथ गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध थे। नामग्याल राजवंश ने 333 वर्षों तक (1975 तक) शासन किया। लेकिन 19वीं शताब्दी में सिक्किम का भाग्य बदलने लगा।
18वीं शताब्दी में नेपाल का गोरखा साम्राज्य तेजी से विस्तार कर रहा था और उसने सिक्किम के कुछ हिस्सों पर कब्जा करने की कोशिश की। 1814-1816 के एंग्लो-नेपाल युद्ध (गोरखा युद्ध) ने इस स्थिति को बदल दिया। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल को हराया, और सुगौली संधि (1815) के तहत:
1817 में सुगौली संधि और 1861 में तुमलोंग संधि ने सिक्किम को तिब्बत और ब्रिटिश भारत के बीच एक बफर राज्य बनाया। सिक्किम की स्वायत्तता बनी रही, लेकिन चोग्याल का शासन ब्रिटिश प्रभाव के अधीन था।
1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय सैकड़ों रियासतें भारत में शामिल हुईं, लेकिन सिक्किम एक संरक्षित रियासत बना रहा। 1950 की भारत-सिक्किम संधि ने इस व्यवस्था को औपचारिक रूप दिया। भारत ने सिक्किम की रक्षा और विदेश नीति का जिम्मा लिया, जबकि आंतरिक मामले चोग्याल के पास रहे। सिक्किम की विधानसभा में कुछ निर्वाचित और कुछ मनोनीत सदस्य होते थे। भारत ने बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए विशेष अधिकार हासिल किए, और सिक्किम के लोग भारतीय पासपोर्ट के साथ विदेश यात्रा कर सकते थे।
लेकिन भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रभाव सिक्किम पर भी पड़ा था। स्वतंत्रता और समानता के विचारों ने सिक्किम में लोकतांत्रिक आंदोलन को जन्म दिया। 1947 में सिक्किम स्टेट कांग्रेस और बाद में 1960 में सिक्किम नेशनल कांग्रेस का गठन हुआ। इन संगठनों ने चोग्याल के निरंकुश शासन के खिलाफ और भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों की मांग को तेज किया।
1970 के दशक में सिक्किम में अशांति बढ़ रही थी। चोग्याल पाल्डेन थोंडुप नामग्याल के खिलाफ लोकतांत्रिक आंदोलन जोर पकड़ रहे थे। 1973 में हजारों प्रदर्शनकारियों ने शाही महल को घेर लिया। इंदिरा गांधी ने इसे एक रणनीतिक अवसर के रूप में देखा। उन्होंने सिक्किम में भारत की सैन्य उपस्थिति बढ़ाई, जिससे चोग्याल पर दबाव बढ़ा।
1974 में सिक्किम में चुनाव हुए, जिसमें काजी लेंडुप दोरजी के नेतृत्व वाली सिक्किम कांग्रेस ने जीत हासिल की। उसी वर्ष एक नया संविधान अपनाया गया, जिसमें चोग्याल की भूमिका को नाममात्र का कर दिया गया। 1975 में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें दो-तिहाई योग्य मतदाताओं ने भाग लिया। 59,637 वोट भारत में विलय और राजशाही को खत्म करने के पक्ष में पड़े, जबकि केवल 1,496 वोट इसके खिलाफ थे। 97% मतों ने विलय का समर्थन किया।
लोकसभा में संविधान (छत्तीसवां संशोधन) विधेयक पेश किया गया, जिसे संसद ने पारित किया और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने स्वीकृति दी। 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वां राज्य बन गया। इंदिरा गांधी की कूटनीति ने सिक्किम को भारत का अभिन्न अंग बनाया, बिना किसी बड़े सैन्य संघर्ष के।
चीन ने सिक्किम के विलय को शुरू में मान्यता नहीं दी और इसे "अवैध कब्जा" करार दिया। लेकिन इंदिरा गांधी ने चीन की आपत्तियों की परवाह नहीं की। चीन ने 2003 में सिक्किम को भारत का हिस्सा माना जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ। भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना, और बदले में चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा स्वीकार किया। 2006 में नाथू ला दर्रा व्यापार के लिए खोला गया, जो इस समझौते का प्रतीक था।
इंदिरा गांधी की दूरदर्शी रणनीति ने सिक्किम को भारत का हिस्सा बनाया, जिसने भारत की सामरिक स्थिति को मजबूत किया। यह कल्पना ही की जा सकती है कि इस क्षेत्र में चीन की बढ़त कितना नुक़सान पहुँचा सकती थी। डोकलाम विवाद ने इसे फिर से रेखांकित किया है जिसके बाद चीन ने भारत में सिक्किम के विलय को दी गयी अपनी मान्यता पर पुनर्विचार की धमकी दी थी। सिक्किम न केवल भारत की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है, बल्कि हिमालय में भारत की चौकसी की सबसे मजबूत चौकी भी है।