वक़्फ़ संशोधन और राज्यपाल की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने राजनीतिक बहस को तेज़ कर दिया है। जानिए क्यों देश की सर्वोच्च अदालत पर सवाल उठ रहे हैं और ऐसा करने वाले कौन हैं।
सुप्रीम कोर्ट फिर से कुछ लोगों के निशाने पर है। ऐसा करने वालों में उपराष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्री से लेकर दक्षिणपंथी खेमे के लोग तक हैं। ये निशाना इसलिए साधा जा रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फ़ैसले केंद्र सरकार और बीजेपी के लिए झटका की तरह हैं। इसमें वक़्फ़ संशोधन क़ानून और तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा तमिलनाडु सरकार के विधेयक को रोके जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले प्रमुख हैं। दरअसल, वक्फ संशोधन अधिनियम 2025, राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों पर टिप्पणी और संविधान के प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को बनाए रखने जैसे फ़ैसलों ने दक्षिणपंथी खेमे में असंतोष को जन्म दिया है। ये फ़ैसले न केवल क़ानूनी और संवैधानिक दायरे में चर्चा का विषय बने हैं, बल्कि एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दक्षिणपंथी समर्थकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ तीखी प्रतिक्रियाएँ दी जा रही हैं।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि संसद द्वारा पारित वक्फ अधिनियम को लागू न करना असंवैधानिक और अस्थिर है। उन्होंने उन राज्य सरकारों पर निशाना साधा, जिनके मुख्यमंत्रियों ने इस कानून को लागू करने से इनकार किया है। इसके साथ ही रिजिजू ने कहा कि केंद्र सरकार को भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट वक़्फ़ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विधायी मामलों में दखल नहीं देगा। उन्होंने कहा, 'यह क़ानून संवैधानिक रूप से मज़बूत है और संसद में व्यापक चर्चा के बाद पारित हुआ है।' बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ही वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के दो विवादास्पद प्रावधानों ‘वक़्फ़ बाय यूज़र’ की अवधारणा को हटाने और वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिमों की नियुक्ति पर अस्थायी रोक लगाने का संकेत दिया। केंद्र ने कोर्ट के संकेत के बाद इन प्रावधानों पर अमल को स्थगित करने की सहमति दी।
दक्षिणपंथी समूहों ने सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले को 'मुस्लिम तुष्टिकरण' के रूप में देखा। एक्स पर कुछ पोस्ट में कोर्ट को 'वक़्फ़ बोर्ड जैसे जिहादी गैंग' की याचिकाओं को तुरंत सुनने और हिंदू याचिकाओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया गया।
एक यूज़र ने लिखा, 'हिंदू जनता बरसों से फाइलें घिसती रहती है, सुनवाई नहीं होती और वक़्फ़ बोर्ड की अर्जी पलभर में सुन ली जाती है।' यह प्रतिक्रिया इस धारणा से उपजी है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के हिंदुत्व समर्थक एजेंडे में बाधा डाल रहा है, जिसे दक्षिणपंथी वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने के प्रयास के रूप में देखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर असहमति जताने के कारण बताने चाहिए और यदि विधेयक असंवैधानिक लगता है तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राय लेनी चाहिए। इस फ़ैसले को दक्षिणपंथी समूहों ने विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में न्यायपालिका के हस्तक्षेप के रूप में देखा। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अनुच्छेद 142 को 'न्यूक्लियर मिसाइल' करार देते हुए न्यायपालिका पर तीखा हमला बोला, यह कहते हुए कि यह लोकतंत्र को धमकाता है। एक्स पर कुछ पोस्ट में कोर्ट को 'संविधान विरोधी' और 'अपनी दुकान चमकाने' में लगा हुआ बताया गया। यह धारणा प्रबल हुई कि कोर्ट सरकार की कार्यप्रणाली में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को बनाए रखने का फ़ैसला सुनाया, जिसे दक्षिणपंथी तत्वों ने अपनी विचारधारा के ख़िलाफ़ माना। एक्स पर एक यूज़र ने इसे 'हिंदुत्ववादी तत्वों के लिए निराशा' क़रार दिया। दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि ये शब्द संविधान की मूल भावना के विपरीत हैं और इन्हें हटाने की उनकी मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस फ़ैसले ने दक्षिणपंथी समर्थकों के बीच कोर्ट के प्रति अविश्वास को और बढ़ाया। सुप्रीम कोर्ट की हाल की टिप्पणियाँ और अनुच्छेद 142 के तहत विशेषाधिकार का उपयोग जैसे फ़ैसले दक्षिणपंथी समूहों को यह लगता है कि कोर्ट विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 'न्यायिक सक्रियता' की आलोचना की थी, यह कहते हुए कि कोर्ट को तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब कार्यपालिका और विधायिका ठीक से काम न करें।सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाने के कारण
वक्फ क़ानून और संविधान की प्रस्तावना जैसे मामलों में कोर्ट के फ़ैसले दक्षिणपंथी समूहों को उनकी हिंदुत्ववादी विचारधारा के ख़िलाफ़ लगते हैं। एक्स पर कुछ यूजर्स ने कोर्ट को 'मुस्लिम तुष्टिकरण' में शामिल होने का आरोप लगाया और इसे हिंदू जनता के ख़िलाफ़ बताया। वक़्फ़ क़ानून पर कोर्ट की सुनवाई और हिंसा पर टिप्पणी ने राजनीतिक दलों के बीच तनाव को बढ़ाया है। कांग्रेस जैसे विपक्षी दल कोर्ट के फ़ैसलों को 'बीजेपी के संविधान विरोधी रुख' के ख़िलाफ़ जीत के रूप में देख रहे हैं। वहीं, बीजेपी शासित राज्यों ने वक़्फ़ क़ानून का समर्थन किया है, जिससे कोर्ट के फ़ैसले दक्षिणपंथी समर्थकों के लिए और विवादास्पद हो गए हैं।
दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के वक्फ कानून और धार्मिक स्वायत्तता से संबंधित नीतियों के सुधारवादी एजेंडे में बाधा डाल रहा है। यह अविश्वास कोर्ट की संवैधानिक भूमिका को कमजोर कर सकता है।
दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि कोर्ट के फ़ैसले उनकी हिंदुत्ववादी विचारधारा के ख़िलाफ़ हैं, जिससे वे कोर्ट को 'विपक्ष का साथी' मान रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में संतुलित रुख अपनाने की कोशिश की है। वक़्फ़ क़ानून पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने हिंसा को 'बहुत व्यथित करने वाला' बताया और विधेयक के कुछ सकारात्मक बिंदुओं को रेखांकित किया। कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि वह विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। फिर भी, कोर्ट के फ़ैसले और टिप्पणियाँ दक्षिणपंथी समूहों को उनकी विचारधारा के ख़िलाफ़ लग रही हैं, जिससे यह विवाद और गहरा गया है। सुप्रीम कोर्ट के हाल के फ़ैसले विशेष रूप से वक़्फ़ क़ानून, राष्ट्रपति की शक्तियों और संविधान की प्रस्तावना से संबंधित, दक्षिणपंथी समूहों के लिए असंतोष का कारण बने हैं। ये समूह कोर्ट को हिंदुत्ववादी एजेंडे में बाधक और मुस्लिम तुष्टिकरण में शामिल मानते हैं। एक्स पर तीखी प्रतिक्रियाएँ और राजनीतिक ध्रुवीकरण इस असंतोष को और बढ़ा रहे हैं। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन उसकी भूमिका को लेकर चल रही बहस भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका, विधायिका, और कार्यपालिका के बीच शक्ति संतुलन के सवाल को फिर से सामने लाती है।