प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घुसपैठ की तथाकथित समस्या को भारतीय जनता पार्टी की जीत के लिए हमेशा एक संप्रदायिक-राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है लेकिन जब इस बारे में सवाल किया जाता है तो जवाब में विपक्ष शासित राज्यों को दोषी ठहरा दिया जाता है और अपनी जवाबदेही के बजाय मजबूरी बता दी जाती है।

शनिवार को पटना में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह से घुसपैठ के बारे में आधा अधूरा सवाल किया गया तो उन्होंने इसका जवाब इस तरह दिया जिससे बिहार के वोटरों को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत तो किया जा सके लेकिन इसकी जिम्मेदारी से साफ बच जाया जाए।

घुसपैठिया शब्द के इस्तेमाल से ध्रुवीकरण का आरोप ना लगे इसके लिए पहले थोड़ा लाज लिहाजा बरतते हुए मुसलमान का नाम सीधे नहीं लिया जाता था लेकिन उनका इशारा बांग्लादेश के मुसलमानों की तरफ होता था। अमित शाह ने वह लाज लिहाज भी हटा दिया है और साफ तौर पर कहा, “घुसपैठिया मुसलमान है, इसलिए उसको देश में रहने की अनुमति देनी चाहिए क्या? कांग्रेस और राजद का कहना है कि मुसलमान घुसपैठिया है, तो उसे रहने दो, ये है ध्रुवीकरण। हम तो कह रहे हैं कि जो भी घुसपैठिया है, उसे निकाल बाहर करो।” उन्होंने यह भी कहा कि हम ध्रुवीकरण नहीं कह रहे, हम तो घुसपैठिया शब्द कह रहे हैं।
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ध्रुवीकरण की राजनीति

सबको पता है कि राजद और कांग्रेस ने ऐसी कोई बात नहीं की। अमित शाह ने अपने शब्दों का चयन बहुत ध्यान से किया और उन्होंने यह नहीं कहा कि घुसपैठिया चाहे हिंदू हो या मुसलमान, किसी को अंदर नहीं आने देना चाहिए। ऐसा कहते तो ध्रुवीकरण का उनका मकसद कामयाब नहीं होता इसलिए उन्होंने खुलकर मुसलमान घुसपैठिया शब्द का इस्तेमाल किया।

लेकिन अमित शाह ने बिहार में घुसपैठ के बारे में जो बात की वह घुसपैठ के सवाल के जवाब में नहीं था बल्कि उन्होंने यह बात राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा और वोट चोरी के आरोप के जवाब में कही। उन्होंने दावा किया कि राहुल गांधी अब वोट चोरी बोलना भूल चुके हैं। फिर उन्होंने बिहार में घुसपैठ के सवाल पर अपनी बात जिस अंदाज में रखी वह साफ़ तौर पर एक संप्रदायिक-राजनीतिक हथियार नज़र आता है।
अमित शाह ने पूछा कि बिहार की सरकार का फैसला कोई घुसपैठिया कर सकता है क्या? करना चाहिए क्या? फिर उन्होंने यह भी जोड़ा, “हमारे लोकतंत्र का मूल तत्व हमारा चुनाव है और चुनाव के अंदर मूल इकाई मतदाता सूची और मतदाता हैं। जो देश का नागरिक नहीं है, वह कैसे देश का मतदाता बन सकता है? हमारे देश का प्रधानमंत्री और राज्यों का मुख्यमंत्री कौन होगा, क्या यह विदेशी नागरिक तय करेंगे। चुनाव आयोग अगर एसआईआर के ज़रिए मतदाता सूची से घुसपैठियों को निकालता है तो उनके पेट में दर्द क्यों हो रहा है? उन्होंने घुसपैठ कराकर वोट बैंक तैयार किया है, जिसके आधार पर वह सत्ता पाना चाहते हैं।”

सवाल पूछने वाले ने यहां रुक कर अमित शाह से यह नहीं पूछा कि क्या नीतीश कुमार की सरकार का फैसला घुसपैठियों ने किया है? अमित शाह ने एसआईआर की भी चर्चा की लेकिन उनसे यह नहीं पूछा गया कि एसआईआर में आखिर कितने घुसपैठिए मिले।

एनडीए की सरकारों में घुसपैठ?

अमित शाह ने दावा किया कि जहां एनडीए की सरकारें हैं, वहां सीमा से अवैध घुसपैठ रुक चुकी है। उनके अनुसार, “गुजरात, राजस्थान और असम इसका उदाहरण हैं। लेकिन बंगाल और झारखंड में जहां विपक्षी दल सत्ता में हैं, वहां घुसपैठ को वोट बैंक बना दिया गया है।” इस दावे पर भी उनसे यह सवाल नहीं किया गया कि बिहार में एनडीए की सरकार है तो फिर वह बिहार में घुसपैठ की समस्या क्यों उठा रहे हैं।

अमित शाह ने तो यहां तक आरोप लगाया कि घुसपैठ इसलिए हो रही है क्योंकि बंगाल और झारखंड में पटवारियों और थानों को निर्देश है कि घुसपैठियों का स्वागत किया जाए, “क्योंकि ये उनके वोट बैंक है।” 

अमित शाह ने तथाकथित घुसपैठ रोकने में अपनी लाचारी बताते हुए यह सफाई दी, “बंगाल और झारखंड में हमारी सरकारें नहीं हैं। जिन्होंने बांग्लादेश, कश्मीर और पंजाब का बॉर्डर देखा है, उन्हें मालूम होगा कि बॉर्डर कोई पटना शहर की सड़कों जैसा नहीं है। वहां सैकड़ों नदी-नाले हैं। घने जंगल हैं। ऊंचे पहाड़ हैं। यहां तार बाड़ लगाना संभव नहीं है। वहां चार घंटे निगरानी भी संभव नहीं हो पाती। बारिश के समय में तो बड़ी से बड़ी निगरानी नाव भी बह जाती है। आरोप लगाने वाले लुटियन में बैठकर बात करते है, कभी बॉर्डर पर जाएं तो पता चले।” 
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राजद और कांग्रेस पर आरोप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह बार-बार बिहार में राजद और कांग्रेस को जानबूझकर घुसपैठियों का समर्थक बताते रहे हैं। उनका साफ संदेश यह रहता है ऐसे घुसपैठिए मुसलमान रहते हैं इसलिए राजद और कांग्रेस को वोट ना दिया जाए। वोट पाने के लिए इतना खुलकर हिंदू मुसलमान करने के बावजूद अमित शाह उल्टे राजद और कांग्रेस पर ध्रुवीकरण का आरोप लगाते हैं।

दूसरी तरफ़ इंडिया गठबंधन के नेता इस तथाकथित घुसपैठ के मुद्दे को एक झूठा प्रचार बताते हैं। उनका कहना है कि दरअसल एनडीए की कमियों-कमज़ोरियों को छिपाने के लिए इस तरह की बात करता है। हाल के आंकड़ों में बताया गया है कि 2005-2013 के बीच जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का शासन था तो 88 हजार घुसपैठियों को वापस बांग्लादेश भेजा गया था जबकि बीजेपी के 11 वर्षों में यह संख्या केवल 10000 है। 

अमित शाह ने एसआईआर को घुसपैठ के मुद्दे से भी जोड़ा है लेकिन बिहार में मतदाता सूची के विशेष ग्रहण पुनरीक्षण के बाद जारी आंकड़े में किसी एक घुसपैठिये के बारे में भी कोई बात नहीं बताई गई है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के अनुसार एसआईआर का मकसद वोटर लिस्ट का शुद्धिकरण था लेकिन उन्होंने भी घुसपैठियों की संख्या बताने से साफ इनकार कर दिया और इसे बताने की जिम्मेदारी स्थानीय अधिकारियों पर डाल दी। 
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SIR में कितने घुसपैठिए मिले?

चुनाव आयोग द्वारा राज्य स्तर पर घुसपैठियों की कोई संख्या नहीं बताई गई लेकिन मीडिया में यह खबर आई कि कुल 40 ऐसे वोटरों का नाम हटाया गया है जिनकी नागरिकता पर सवाल खड़े हुए थे। ऐसे कुल 106 आपत्तियां आई थी जिनमें 47 लोगों का नाम हटाया गया और उन में भी 7 लोग मृत पाए गए। यह बात भी सामने आई कि इन 40 लोगों में 25 हिंदू और 15 मुसलमान हैं।

एसआईआर के तहत 30 सितंबर को जारी फाइनल वोटर लिस्ट में तमाम जोड़ घटाव के बाद 7 करोड़ 42 लाख मतदाताओं के नाम शामिल हैं। हालांकि एसआईआर के लिए जब नोटिफिकेशन जारी हुआ था तो उस समय बिहार में वोटरों की संख्या 7 करोड़ 89 लाख बताई गई थी। इस तरह कुल 47 लाख मतदाता फाइनल वोटर लिस्ट में कम हो गए। हालांकि वोटर लिस्ट से कुल 68 लाख लोगों का नाम काटने की बात बताई गई। 2020 में मतदाताओं की कुल संख्या 7 करोड़ 36 लाख थी।