देश में बेतहाशा बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई है। 243 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की बहुमत की ज़रूरत होगी। इस बार मुख्य मुक़ाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले गठबंधन (महागठबंधन) के बीच होगा। इस बार का चुनाव पिछले चुनाव से इस मामले में भी अलग होगा कि गठबंधन में पार्टियाँ इधर से उधर हुई हैं और नये समीकरण बने हैं।
इस बार दो बड़े गठबंधनों- एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन (यूपीए यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) के बीच काँटे की टक्कर है। इसके अलावा भी दो फ्रंट हैं। एक लेफ़्ट फ्रंट और दूसरा यूडीएसए यानी संयुक्त जनतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गठबंधन। 

एनडीए 

महागठबंधन 

लेफ़्ट फ्रंट

यूडीएसए 

लेकिन पिछले चुनाव यानी 2015 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन का समीकरण बिलकुल अलग था। महागठबंधन में नीतीश कुमार का जेडीयू और तेजस्वी का आरजेडी एक साथ थे। 

महागठबंधन

एनडीए 

इन दो गठबंधनों के अलावा लेफ़्ट फ्रंट और सोशलिस्ट सेक्युलर मोर्चा भी थे। 2015 का विधानसभा चुनाव पाँच चरणों में हुआ था। 12 अक्टूबर को पहले चरण और 5 नवंबर को पाँचवें चरण का चुनाव संपन्न हुआ था। 8 नवंबर को चुनाव के नतीजे आए थे। 2015 के चुनाव में सन 2000 के बाद सबसे ज़्यादा मत प्रतिशत रहा था। 56.6 फ़ीसदी लोगों ने वोट दिया था। चुनाव परिणाम घोषित हुआ था तब आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 

2015 के चुनावी नतीजे

2015 में भी असल लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच ही थी। इसमें महागठबंधन एनडीए पर भारी पड़ा था। महागठबंधन को 178 सीटें मिली थीं तो एनडीए को सिर्फ़ 58 सीटें।

2015 के चुनाव में महागठबंधन को वोट भी सबसे ज़्यादा क़रीब 40 फ़ीसदी मिले थे, जबकि एनडीए को क़रीब 32 फ़ीसदी। हालाँकि उस चुनाव की एक ख़ास बात यह भी थी कि 53 सीट जीतने वाली बीजेपी को 24.4 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि महागठबंधन में 80 सीटें जीतने वाले आरजेडी को 18.4 फ़ीसदी और जदयू को 18.8 फ़ीसदी। दरअसल, ऐसा इसलिए हुआ था कि बीजेपी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि महागठबंधन की तरफ़ से आरजेडी व जेडीयू 101-101 सीटों पर। इस लिहाज़ से जीत की स्ट्राइक रेट आरजेडी व जेडीयू की ज़्यादा हो गई। चूँकि बीजेपी काफ़ी ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी थी इसलिए कुल वोटों की संख्या उसकी ज़्यादा हो गई थी। 

लेकिन इस बार यानी 2020 का विधानसभा चुनाव इस मायने में अलग है कि महागठबंधन की दो बड़ी पार्टियाँ ही इस बार अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। दरअसल, वो एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रही हैं। नीतीश की जदयू एनडीए के साथ हो गया है। इस कारण पूरा समीकरण ही बदल गया है। हालाँकि नीतीश कुमार 15 साल से सत्ता में हैं तो एंटी-इन्कंबेंसी भी उनके ख़िलाफ़ काम कर सकता है। 

इस बीच जाति का समीकरण भी महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि बिहार चुनाव में जाति काफ़ी प्रभाव डालती है। बिहार में ओबीसी 50 फ़ीसदी जिसमें से 14 फ़ीसदी यादव, 7 फ़ीसदी कुशवाहा, 5 फ़ीसदी कुर्मी और 24 फ़ीसदी अन्य पिछड़ी जातियाँ हैं। इसके अलावा दलित और महादलित 15 फ़ीसदी, मुसलिम 16.9 फ़ीसदी हैं। अगड़ी जातियाँ 19 फ़ीसदी हैं जिसमें से भूमिहा 5.5, ब्राह्मण 5.5, राजपूत 6.5 और कायस्थ 1.5 फ़ीसदी हैं। इसके अलावा 1.3 फ़ीसदी आदिवासी और अन्य 0.4 फ़ीसदी हैं। 
इन जातियों के आधार पर ही चुनावी गठबंधन और सीटों पर उम्मीदवारों को भी उतारा जाता है। 

बदले हुए समीकरण में कौन-सा गठबंधन किस तरह से परिस्थितियों को भुनाता है, यह चुनाव के आख़िर पल की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। क्योंकि अभी भी गठबंधनों में ही सीटों के बँटवारे से लेकर नेतृत्व तक पर खींचतान चल रही है। ये गठबंधन इससे कैसे निपटते हैं इसका भी चुनाव परिणाम पर असर पड़ सकता है।