भारत में दो प्रतिशत लोग दृष्टिबाधित हैं और 98% लोग दृष्टि (विजन) नहीं रखते। दृष्टिबाधित उद्योगपति श्रीकांत बोल्ला के जीवन पर बनी यह फिल्म कहती है कि दृष्टिहीनों को भी समान अवसर मिलने चाहिए। दृष्टिहीन केवल ट्रेनों में गाना गाने और मोमबत्तियां बनाने के लिए नहीं हैं। दृष्टिबाधितों को दया की नज़र से मत देखो, उन्हें समान अवसर दो।
फिल्म समीक्षा- श्रीकांतः क्या वे सिर्फ मोमबत्तियां बनाने के लिए हैं?
- सिनेमा
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- 29 Mar, 2025
आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में एक दिव्यांग लड़के का जन्म हुआ और उसके पिता ने प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर के नाम पर उसका नाम 'श्रीकांत' रखा। लेकिन यह फिल्म श्रीकांत बोल्ला की वास्तविक जीवन की कहानी पर आधारित है। जाने-माने फिल्म समीक्षक डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी को यह फिल्म क्यों नहीं पसंद आई, आप भी जानिएः
