भारत में दो प्रतिशत लोग दृष्टिबाधित हैं और 98% लोग दृष्टि (विजन) नहीं रखते। दृष्टिबाधित उद्योगपति श्रीकांत बोल्ला के जीवन पर बनी यह फिल्म कहती है कि दृष्टिहीनों को भी समान अवसर मिलने चाहिए। दृष्टिहीन केवल ट्रेनों में गाना गाने और मोमबत्तियां बनाने के लिए नहीं हैं। दृष्टिबाधितों को दया की नज़र से मत देखो, उन्हें समान अवसर दो।