दिल्ली की एक जिला अदालत से अडानी समूह को झटका लगा है। अदालत ने गुरुवार को वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता पर अडानी से जुड़ी ख़बरों को प्रकाशित करने पर रोक लगाने वाले आदेश को रद्द कर दिया। जिला जज सुनील चौधरी ने कहा कि ठाकुरता 6 सितंबर के रोहिणी सिविल कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होंगे, जब तक कि सीनियर सिविल जज उनकी सुनवाई के बाद नया आदेश पारित नहीं करते। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को इस मामले की सुनवाई 26 सितंबर को दोपहर 2 बजे करने और अंतरिम निषेधाज्ञा के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया। 

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि माननीय ट्रायल कोर्ट, CPC के नियम 39, नियम 1 और 2 के तहत आवेदन पर नए आदेश देते समय अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करने के संबंध में स्थापित कानूनी सिद्धांतों पर विचार करेगा। अपील को इसी आधार पर खारिज किया जाता है और जब तक माननीय सीनियर सिविल जज की अदालत अपीलकर्ता को सुनकर कोई नया आदेश नहीं देती, तब तक अपीलकर्ता 6 सितंबर 2025 के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगा।'

अडानी से जुड़ा क्या है यह मामला?

अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड यानी एईएल ने सीनियर सिविल जज अनुज कुमार सिंह की रोहिणी कोर्ट में एक मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जिसमें दावा किया गया कि परंजॉय गुहा ठाकुरता, रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयस्कांत दास, और आयुष जोशी सहित कई पत्रकारों और एक्टिविस्टों ने उनकी कंपनी, अडानी समूह और इसके संस्थापक गौतम अडानी के खिलाफ मानहानि वाले कंटेंट छापे। एईएल ने तर्क दिया कि इन लेखों और सोशल मीडिया पोस्टों ने कंपनी की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया, निवेशकों का विश्वास कम किया और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी की जिससे अरबों डॉलर का नुकसान हुआ।

6 सितंबर को सिविल जज ने एकपक्षीय अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें पत्रकारों को कथित मानहानि वाली सामग्री को हटाने और ऐसी सामग्री प्रकाशित करने से रोकने का निर्देश दिया गया। इस आदेश में तीन वेबसाइटों paranjoy.in, adaniwatch.org, और adanifiles.com.au का उल्लेख किया गया, जिन पर बार-बार मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इन लेखों और पोस्टों को प्रथम दृष्टया मानहानिकारक और असत्यापित माना गया और इनके निरंतर प्रकाशन से एईएल की छवि को और नुकसान हो सकता है।

पत्रकारों की अपील

रोहिणी कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ परंजॉय गुहा ठाकुरता और चार अन्य पत्रकारों रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयस्कांत दास और आयुष जोशी ने अलग-अलग अपील दायर की। ठाकुरता ने अपनी अपील में तर्क दिया कि यह आदेश बिना तर्क वाला था, क्योंकि इसमें यह साफ़ नहीं किया गया कि कौन सी सामग्री मानहानिकारक थी। उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने कहा, 'आदेश में यह नहीं बताया गया कि कौन सा लेख, कौन सा यूआरएल, या कौन सा हिस्सा मानहानिकारक है। यह प्रेस की स्वतंत्रता पर बड़ा प्रतिबंध लगाता है।' 

पत्रकारों ने यह भी तर्क दिया कि लेख सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध सामग्री पर आधारित थे और इनमें एईएल का नाम तक नहीं था, बल्कि गौतम अडानी या अडानी समूह का उल्लेख था।

18 सितंबर को जिला जज आशीष अग्रवाल ने चार अन्य पत्रकारों की अपील पर सुनवाई करते हुए 6 सितंबर के आदेश को अस्थिर करार दिया, क्योंकि यह पत्रकारों को सुनवाई का अवसर दिए बिना पारित किया गया था। जज अग्रवाल ने कहा, 'जब लेख और पोस्ट लंबे समय से सार्वजनिक डोमेन में थे, तो सिविल जज को इनके हटाने का आदेश देने से पहले पत्रकारों को सुनना चाहिए था।' इस फ़ैसले ने ठाकुरता की अपील के लिए भी उम्मीद जगाई।

ठाकुरता की अपील पर सुनवाई

ठाकुरता की अपील पर जिला जज सुनील चौधरी के समक्ष दो दिनों तक सुनवाई चली। सुनवाई के दौरान जज चौधरी ने पूछा कि क्या ठाकुरता के पास अपने लेखों के दावों को समर्थन करने के लिए कोई सामग्री है। त्रिदीप पेस ने जवाब दिया, 'वह एक जिम्मेदार पत्रकार हैं। अगर उन्हें बुलाया जाता, तो वह अपनी बात रखते।' पेस ने यह भी तर्क दिया कि एईएल ने यह नहीं दिखाया कि उनके लेखों से कंपनी को अपूरणीय क्षति हुई है और यह कि मानहानि का आधार यह नहीं हो सकता कि कंपनी को किसी जांच में दोषी नहीं ठहराया गया।

कोर्ट का अंतिम फ़ैसला

25 सितंबर को जज सुनील चौधरी ने ठाकुरता की अपील को स्वीकार करते हुए रोक लगाने वाले आदेश को हटा दिया। कोर्ट ने कहा, 'ट्रायल कोर्ट को 26 सितंबर को दोपहर 2 बजे सुनवाई करनी चाहिए और अंतरिम निषेधाज्ञा के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए नया आदेश पारित करना चाहिए। तब तक ठाकुरता को 6 सितंबर के आदेश का पालन करने की ज़रूरत नहीं है।'

कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि ट्रायल कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि नया आदेश क़ानूनी सिद्धांतों के अनुरूप हो और सभी पक्षों को सुनने के बाद ही पारित किया जाए। 

पत्रकार संगठनों की प्रतिक्रिया

डिजिपब और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया जैसे पत्रकार संगठनों ने 6 सितंबर के आदेश और सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा 16 सितंबर को जारी नोटिस पर चिंता जताई थी। इन नोटिसों में उन पत्रकारों और मीडिया हाउसों को भी सामग्री हटाने का निर्देश दिया गया था, जो मूल मुकदमे में पक्षकार नहीं थे। डिजिपब ने इसे खतरनाक बताया और कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है।

पत्रकारों ने तर्क दिया कि उनके लेख 2023 के हिंडनबर्ग रिपोर्ट सहित सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध सामग्री पर आधारित थे और सुप्रीम कोर्ट ने भी अडानी समूह को किसी गलती का दोषी नहीं ठहराया था। फिर भी, उन्होंने कहा कि मानहानि का आधार यह नहीं हो सकता कि कोई कंपनी दोषी नहीं पाई गई है।

दिल्ली कोर्ट का यह फैसला पत्रकारों के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि यह प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट का नया आदेश इस मामले के भविष्य को निर्धारित करेगा।