राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता को आख़िर किस आधार पर चुनौती दी गई और केंद्र इसके समधान के लिए निश्चित समय भी क्यों नहीं बता पाया? जानिए, इस आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या फ़ैसला लिया।
राहुल गांधी को उनकी भारतीय नागरिकता को चुनौती दिए जाने के मामले में बड़ी राहत मिली है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सोमवार को राहुल की नागरिकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस राजीव सिंह की खंडपीठ ने यह फ़ैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि केंद्र याचिकाकर्ता की शिकायत के निस्तारण के लिए कोई निश्चित समय सीमा देने में सक्षम नहीं है इसलिए इस याचिका को लंबित रखने का कोई मतलब नहीं है।
याचिकाकर्ता कर्नाटक के एक भाजपा कार्यकर्ता एस. विग्नेश शिशिर ने राहुल गांधी पर ब्रिटिश नागरिकता रखने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में की गई कार्रवाई की जानकारी मांगने के बाद याचिका को निस्तारित कर दिया। इससे यह विवादास्पद मामला फिलहाल ख़त्म हो गया है। हालाँकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर को अन्य क़ानूनी विकल्प अपनाने की छूट दी है। वह इस मामले में दूसरे वैकल्पिक क़ानूनी उपाय के लिए स्वतंत्र हैं।
याचिका में विग्नेश शिशिर ने दावा किया था कि राहुल गांधी भारतीय नागरिक नहीं हैं, बल्कि उनके पास ब्रिटिश नागरिकता है। उन्होंने कहा था कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 और नागरिकता अधिनियम 1955 का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो स्वेच्छा से किसी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करता है, वह भारतीय नागरिक नहीं रह सकता।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि राहुल गांधी ने यूनाइटेड किंगडम में 2003 में स्थापित एक कंपनी बैकऑप्स लिमिटेड के दस्तावेजों में अपनी राष्ट्रीयता ब्रिटिश घोषित की थी। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त, उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और रायबरेली के रिटर्निंग ऑफिसर को राहुल गांधी का चुनावी प्रमाणपत्र रद्द करने का निर्देश दिया जाए।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने राहुल गांधी की कथित ब्रिटिश नागरिकता की जाँच के लिए केंद्रीय जाँच ब्यूरो यानी सीबीआई से जाँच की मांग की थी।
विग्नेश ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तृत जाँच की और यूनाइटेड किंगडम सरकार से प्राप्त 'गोपनीय' ईमेल के आधार पर दावा किया कि यूके सरकार के पास राहुल गांधी की ब्रिटिश राष्ट्रीयता के रिकॉर्ड मौजूद हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि यूके के डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2018 के तहत इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया।
इस मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से कई बार याचिकाकर्ता की शिकायत पर की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी। 25 सितंबर 2024 को कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि क्या विग्नेश की शिकायत प्राप्त हुई है और यदि हां, तो उस पर क्या कार्रवाई की गई। 30 सितंबर को केंद्र ने बताया कि शिकायत प्राप्त हो चुकी है, लेकिन उस पर लिखित निर्देशों के लिए समय मांगा गया। 26 नवंबर 2024 को केंद्र ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की शिकायत गृह मंत्रालय में विचाराधीन है।
21 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में कोर्ट ने गृह मंत्रालय के जवाब पर असंतोष जताया, क्योंकि यह साफ़ नहीं करता था कि राहुल गांधी भारतीय नागरिक हैं या नहीं। कोर्ट ने केंद्र को 10 दिन का समय दिया था ताकि वह इस सवाल का साफ़ जवाब दे। लेकिन इतने समय में भी जवाब नहीं दिया जा सका।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी की खंडपीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि नागरिकता से संबंधित मामलों में केंद्र सरकार सक्षम प्राधिकारी है। कोर्ट ने यह भी साफ़ किया है कि याचिकाकर्ता ने जो दस्तावेज पेश किए, वे पर्याप्त नहीं थे और ज़्यादातर इंटरनेट से डाउनलोड किए गए थे, जिनकी प्रामाणिकता संदिग्ध थी। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि इस मुद्दे को पहले सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया था, जहां 2019 में राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था।
इस मामले से संबंधित एक अन्य याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता रद्द करने की मांग की थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने सितंबर 2024 में कहा था कि वह इस मामले की सुनवाई तब तक नहीं करेगा, जब तक इलाहाबाद हाई कोर्ट में चल रही याचिका का निपटारा नहीं हो जाता, क्योंकि दो कोर्ट एक ही मुद्दे पर समानांतर सुनवाई नहीं कर सकते। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब दिल्ली हाई कोर्ट में स्वामी की याचिका पर सुनवाई हो सकती है।