कांग्रेस ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि सरकार भारत-चीन सीमा विवाद से लेकर व्यापार घाटे की सच्चाई छिपा रही है। जानिए दोनों देशों के रिश्तों की हकीकत और विपक्ष की चिंताएं।
क्या भारत-चीन संबंधों में वाक़ई सुधार हो रहा है, या यह केवल एक भ्रामक तस्वीर है? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने वाले बयान पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने चीन की ओर से बढ़ती सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए राष्ट्रीय सहमति की जरूरत पर जोर दिया। ऑपरेशन सिंदूर में चीन की कथित भूमिका से लेकर सीमा पर तनाव और रिकॉर्ड व्यापार घाटे तक, रमेश ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया। पढ़िए, कैसे यह मुद्दा भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा सवाल बन रहा है!
जयराम रमेश ने विदेश मंत्री जयशंकर के उस बयान पर आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने 14 जुलाई को चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग के साथ बैठक में कहा था कि भारत-चीन संबंध पिछले अक्टूबर में कज़ान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक के बाद से लगातार बेहतर हो रहे हैं और हमारे संबंधों का निरंतर सामान्यीकरण आपसी लाभ पहुँचाने वाला हो सकता है।
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को पूरा समर्थन दिया और उसने नेटवर्क-केंद्रित युद्ध और हथियार सिस्टम के लिए एक परीक्षण के रूप में इस्तेमाल किया।
जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को न केवल तकनीकी और सामरिक समर्थन दिया, बल्कि इसे नेटवर्क-केंद्रित युद्ध और जे-10सी फाइटर, पीएल-15ई हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल और विभिन्न ड्रोन जैसी हथियार प्रणालियों के लिए परीक्षण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने सेना के उप-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह के हवाले से कहा कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में तीन विरोधियों का सामना किया, जिसमें चीन ने पाकिस्तान को लाइव इनपुट्स यानी भारतीय सैन्य अभियानों पर रियल-टाइम की खुफिया जानकारी दी।
जयराम रमेश ने यह भी बताया कि पाकिस्तान के निकट भविष्य में चीनी जे-35 स्टील्थ फाइटर हासिल करने की संभावना है, जो भारत की सुरक्षा के लिए एक और ख़तरा पैदा कर सकता है।
आर्थिक निर्भरता और व्यापार घाटा
कांग्रेस नेता ने भारत की दूरसंचार, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता को लेकर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि चीन ने भारत को रेयर-अर्थ मैग्नेट, विशेष उर्वरक और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए टनल-बोरिंग मशीनों जैसी अहम सामग्रियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बावजूद भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा रिकॉर्ड 99.2 अरब डॉलर तक पहुँच गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत में फॉक्सकॉन फ़ैसिलिटी से सैकड़ों चीनी कर्मचारियों के छोड़ने से भारत की एप्पल स्मार्टफोन्स के वैश्विक सप्लायर बनने की कोशिशों को झटका लगा है।
सीमा पर तनाव
जयराम रमेश ने सीमा पर तनाव के मुद्दे को भी उठाया। उन्होंने कहा कि देप्सांग, डेमचोक और चुमार में भारतीय गश्ती दलों को अपने गश्ती बिंदुओं तक पहुँचने के लिए चीनी सहमति की ज़रूरत होती है। गलवान, हॉट स्प्रिंग और पैंगोंग त्सो में बफर जोन मुख्य रूप से भारतीय दावे की रेखा के भीतर हैं, जिसके कारण भारतीय सैनिकों को उन बिंदुओं तक पहुंचने से रोका जा रहा है, जहां अप्रैल 2020 से पहले उनकी बिना रोक-टोक की पहुंच थी।
उन्होंने संसद में चीन के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की मांग की। उन्होंने कहा, 'जब 1962 में चीनी आक्रमण अपने चरम पर था, तब संसद में सीमा स्थिति पर चर्चा हो सकती थी, तो अब क्यों नहीं? खासकर जब दोनों पक्ष सामान्यीकरण चाहते हैं।' उन्होंने कांग्रेस की ओर से 2020 से इस मुद्दे पर संसद में चर्चा की मांग को दोहराया और उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी मानसून सत्र में इस "पांच साल के सूखे" को खत्म करेंगे।
जयशंकर और मोदी पर निशाना
रमेश ने विदेश मंत्री जयशंकर के दो साल पुराने बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था, 'देखिए, वे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। मैं क्या करूं? एक छोटी अर्थव्यवस्था के रूप में, क्या मैं बड़ी अर्थव्यवस्था से लड़ाई शुरू करूं?' रमेश ने इसे 'चीन के प्रति समर्पण' की भावना करार दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के 19 जून 2020 के 'न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है' वाले बयान को भी झूठ करार दिया, जिसका चीन ने वैश्विक स्तर पर अपने क्षेत्रीय अतिक्रमण को छिपाने के लिए इस्तेमाल किया।
जयराम रमेश ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, 'चीन विश्व की अग्रणी विनिर्माण ताक़त और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, जो अगले एक दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका को भी पीछे छोड़ सकता है। ऐसे में इसके आगे बढ़ने से आने वाली अहम सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों पर राष्ट्रीय सहमति बनाना अत्यंत ज़रूरी है।'
जयराम रमेश ने अपने बयान में जटिल भारत-चीन संबंधों को लेकर सरकार से आग्रह किया कि वह जनता को विश्वास में ले और संसद में इस मुद्दे पर खुली चर्चा करे ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एक मजबूत रणनीति तैयार की जा सके।