क्या गलवान में भारत-चीन सैन्य टकराव के दौरान कई हथियारों की डिलीवरी समय पर नहीं हो पाई, इससे सैन्य तैयारियों पर असर पड़ा था और इस वजह से सरकार ने अब हथियारों की खरीद की नीति बदल दी है? सरकार ने कहा है कि आपात स्थिति में खरीदे जाने वाले हथियारों और सैन्य उपकरणों की डिलीवरी एक साल के भीतर पूरी करनी ही होगी। यदि इस समय सीमा में डिलीवरी नहीं होती तो संबंधित अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा। रक्षा मंत्रालय द्वारा लागू की जा रही इस नई नीति का मक़सद भारतीय सशस्त्र बलों की तैयारियों को बढ़ाना और भविष्य के संघर्षों के लिए उनकी युद्धक क्षमता को मजबूत करना है। तो क्या अब रक्षा आपूर्ति के समय पर नहीं होने की बार-बार आने वाली समस्या का समाधान हो जाएगा?
बहरहाल, रक्षा मंत्रालय ने आपातकालीन खरीद प्रक्रिया को और सख्त करने का निर्णय लिया है। इस नीति के तहत केवल वे हथियार और गोला-बारूद खरीदे जाएँगे जो बाज़ार में तुरंत उपलब्ध हों। द इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'अब आपातकालीन स्थिति से खरीदे जाने वाले सभी उपकरणों की डिलीवरी अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के एक साल के भीतर होनी होगी। ऐसा न होने पर अनुबंध अपने आप रद्द हो जाएगा।' इस नीति का मक़सद यह है कि आपातकालीन खरीद में सैन्य उपकरण समय पर मिल जाएँ।
मंत्रालय सामान्य रक्षा खरीद प्रक्रिया को भी तेज करने की कोशिश कर रहा है। फिलहाल, प्रमुख रक्षा उपकरणों की खरीद में आम तौर पर 5-6 साल लग जाते हैं, जिसे अब दो साल तक सीमित करने का लक्ष्य है। इसके लिए फील्ड इवैल्यूएशन ट्रायल्स को एक साल में पूरा करने की योजना है। फ़िलहाल आमतौर पर इसमें 2-3 साल लगते हैं।
नीति क्यों बदली गई?
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह फ़ैसला पूर्व में आपातकालीन खरीद के तहत हुई देरी की घटनाओं के बाद लिया गया है। रिपोर्ट है कि 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य टकराव के दौरान आपातकालीन खरीद के तहत कई हथियारों की डिलीवरी समय पर नहीं हो पाई थी, जिससे सैन्य तैयारियों पर असर पड़ा। मिसाल के तौर पर गलवान संघर्ष के बाद भारत ने रूस से हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल रैंपेज मिसाइल की आपातकालीन खरीद के लिए ऑर्डर दिया था। इसके साथ ही कई अन्य अनुबंधों में देरी ने आपातकालीन खरीद के मक़सद को कमजोर किया।
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस नई नीति से न केवल समय पर डिलीवरी सुनिश्चित होगी, बल्कि उन कंपनियों पर भी दबाव बनेगा जो अनुबंध लेने के बाद समय पर आपूर्ति करने में विफल रहती हैं। यह कदम रक्षा खरीद प्रक्रिया को और पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में भी एक प्रयास है।
आपातकालीन खरीद कब कब हुई?
आपातकालीन खरीद प्रक्रिया को 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद भी शुरू किया गया था। तब से अब तक चार दौर की आपातकालीन खरीद हो चुकी है:
- 2016 में ईपी-1 : उरी हमले के बाद शुरू।
- 2019 में ईपी-2 : बालाकोट हवाई हमले के बाद।
- 2020 में ईपी-3 : लद्दाख में चीन के साथ तनाव के दौरान।
- 2022 में ईपी-4 : महत्वपूर्ण सैन्य क्षमता अंतराल को भरने के लिए।
फिलहाल, पांचवां दौर ईपी-5 चल रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद 24 जून 2025 को रक्षा मंत्रालय ने 1981.99 करोड़ रुपये की लागत से 13 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।
कुछ जानकारों ने इस नीति की सराहना की है, लेकिन कुछ ने इसे भारत की घरेलू रक्षा उत्पादन पर निर्भरता बढ़ाने की नीति के खिलाफ बताया है। उनका तर्क है कि आपातकालीन खरीद में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम कर स्वदेशी उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कहा जाता है कि स्वदेशी तेजस एमके1ए विमान की डिलीवरी में बार-बार देरी ने भारतीय वायुसेना की तैयारियों को प्रभावित किया है।
रक्षा मंत्रालय की इस नई नीति से आपातकालीन खरीद प्रक्रिया में तेजी और जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, स्वदेशी रक्षा उत्पादन और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती बना रहेगा।