किसानों के दिल्ली मार्च को लेकर हरियाणा-पंजाब सीमा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसानों और हरियाणा पुलिस में रस्साकशी जारी है। लेकिन इस बीच सरकार ने पांचवें दौर की बातचीत के लिए किसान नेताओं को आमंत्रित किया है। किसान नेताओं ने कहा कि यह सिर्फ टाइम पास करने की चाल है, और कुछ नहीं। पिछले चार दौर की बातचीत यही बताती है कि सरकार हर बार नई पेशकश कर देती है और बातचीत खत्म हो जाती है।
चौथे दौर की बातचीत में क्या हुआ था। केंद्र सरकार ने पांच फसलों - मक्का, कपास, अरहर, अरहर और उड़द की एमएसपी पर खरीद का प्रस्ताव दिया था। लेकिन किसान नेताओं ने इसे नामंजूर कर दिया। उन्होंने इस कदम को मुख्य मांगों से ध्यान भटकाने का प्रयास करार दिया है। इस रिपोर्ट पर आगे बढ़ने से पहले जानिए बुधवार को क्या हुआ, उसके बाद ही आपको पूरा खाका समझ में आएगा।
विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया कि फसलों की सूची में सरसों, गन्ना और मूंग जैसी अन्य फसलों को भी जोड़ा जाना चाहिए और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार दरें तय की जानी चाहिए।
हरियाणा बीकेयू (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा “सूरजमुखी के बीज के लिए एमएसपी है, लेकिन खरीदारों की कमी के कारण किसानों को हर साल विरोध करना पड़ता है। पिछले साल किसानों ने कुरुक्षेत्र में एक सप्ताह तक चले विरोध प्रदर्शन के बाद सूरजमुखी के बीज एमएसपी से 500 रुपये से 700 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बेचे थे।
इनके अलावा भी कई किसान संगठनों ने सरकार की पेशकश को ठुकरा दिया है। भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां और महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां ने कहा कि सभी 23 फसलों के लिए एमएसपी के माध्यम से फसलों की गारंटीकृत खरीद सुनिश्चित करने वाले कानून बनाने के लिए संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिए। उन्होंने बुधवार दोपहर जारी एक बयान में कहा, किसान प्रदर्शनकारी किसानों की लोकतांत्रिक आवाज को दबाने के लिए केंद्र सरकार के आक्रामक कदमों को खारिज करते हुए चल रहे संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की मांग करते हैं।
इस बीच इस मुद्दे पर पंजाब की एक और किसान यूनियन आंदोलन में कूदने की तैयारी कर रही है। भारतीय किसान यूनियन डकौंदा (बुर्जगिल) की एक आपात बैठक बुलाई गई है। इसमें तय होना है कि सीमा पर चल रहे किसानों के आंदोलन को कैसे समर्थन दिया जाए। बीकेयू डकौंडा के महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा, हमारी मांगें वही हैं। यह यूनियन संयुक्त किसान मोर्चा की घटक इकाई है। फिलहाल एसकेएम 'दिल्ली चलो' आंदोलन का हिस्सा नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, एसकेएम के सदस्य किसान संघों ने जरूरत पड़ने पर पंजाब-हरियाणा सीमाओं के दूसरी ओर से विरोध दर्ज कराने की योजना बनाई है।