भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने सोमवार को विवादित बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे को दो तरीके से करारा जवाब दिया। दुबे ने अपने एक आपत्तिजनक बयान में कुरैशी को मुस्लिम चुनाव आयुक्त कहा था। कुरैशी 2010 में सीईसी बने थे और 2012 में रिटायर हुए थे। लेकिन अपने बयानों के लिए बदनाम निशिकांत दुबे ने पहले सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाया और फिर एसवाई कुरैशी पर हमला किया। 

कुरैशी ने सोमवार 21 अप्रैल को दुबे के हमले का जवाब बहुत चतुराई से दिया। उन्होंने बिना नाम लिए अपने एक्स हैंडल पर जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का एक कोट शेयर किया, जिसमें लिखा था, "मैंने बहुत पहले सीख लिया था कि सुअर से कभी कुश्ती नहीं लड़नी चाहिए। क्योंकि तुम गंदे हो जाते हो, और सुअर को भी यह पसंद है।" निशिकांत दुबे ने कुरैशी के कोट का जवाब देते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर की एक पुरानी पोस्ट पर लिखा, "हां, मैं सुअर हूं।" लेकिन कुछ ही देर बाद उन्होंने वह पोस्ट डिलीट कर दी।

धार्मिक पहचान, संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता और राजनीतिक बयानबाजी वाले इस विवाद की शुरुआत 17 अप्रैल को तब हुई, जब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने अपने एक्स हैंडल पर वक्फ (संशोधन) अधिनियम को "मुस्लिम जमीन हड़पने की सरकार की शैतानी और बुरी योजना" करार दिया। इस बयान ने झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को नाराज कर दिया।

दुबे ने कुरैशी पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें "चुनाव आयुक्त नहीं, बल्कि मुस्लिम आयुक्त" कहा। इतना ही नहीं, उन्होंने आरोप लगाया कि कुरैशी के कार्यकाल के दौरान झारखंड के संथाल परगना में सबसे ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठियों को मतदाता बनाया गया। यह बयान न केवल कुरैशी पर व्यक्तिगत हमला था, बल्कि इसने एक बड़े राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया।

कुरैशी ने इस हमले का जवाब चतुराई से दिया। उन्होंने बिना नाम लिए अपने एक्स हैंडल पर जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का एक कोट शेयर किया, जिसमें लिखा था, "मैंने बहुत पहले सीख लिया था कि सुअर से कभी कुश्ती नहीं लड़नी चाहिए। तुम गंदे हो जाते हो, और सुअर को यह पसंद है।"  

यह विवाद यहीं नहीं रुका। निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर "धार्मिक युद्ध भड़काने" का आरोप लगाकर और विवाद खड़ा कर दिया।

इसके बाद एक इंटरव्यू में कुरैशी ने सीधे निशिकांत दुबे पर पलटवार किया। उन्होंने कहा, "मैं भारत की उस अवधारणा में विश्वास रखता हूं, जहां व्यक्ति को उसकी योग्यता और योगदान से परिभाषित किया जाता है, न कि धार्मिक पहचान से।" कुरैशी ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ लोग नफरत भरी राजनीति को बढ़ावा देने के लिए धार्मिक पहचान का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने चुनाव आयुक्त के संवैधानिक पद पर पूरी निष्ठा से सेवा की और IAS में उनका करियर संतुष्टिदायक रहा।

इस बयान के बाद दुबे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक लेटर पिटिशन दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना कार्यवाही पर साफ कहा कि केस फाइल करने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं है।

इस विवाद में कई हस्तियों ने कुरैशी का समर्थन किया। आईएएस अधिकारी के. महेश ने कुरैशी की विरासत की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने मतदाता शिक्षा प्रभाग की स्थापना और भारत अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र व चुनाव प्रबंधन संस्थान जैसे सुधारों में योगदान दिया। गोपालकृष्ण गांधी ने कुरैशी को "हमारे सबसे उल्लेखनीय मुख्य चुनाव आयुक्तों में से एक" बताया।  दूसरी ओर, कांग्रेस ने दुबे के बयानों की कड़ी निंदा की। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट और संवैधानिक संस्थानों को कमजोर करने की कोशिश है।

वहीं बीजेपी ने निशिकांत दुबे के बयानों से खुद को अलग कर लिया और कहा कि ये उनके निजी विचार हैं, जिनका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं। लेकिन यह विवाद अब संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता और धार्मिक पहचान के राजनीतिक इस्तेमाल पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। सोशल मीडिया पर कुरैशी के समर्थक और आलोचक एक्टिव हैं, जिससे यह मामला और गरमाता जा रहा है।