हिजाब पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार 21 सितंबर को 9वें दिन सुनवाई जारी रही। कर्नाटक सरकार के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने ज्यादा तर्क हिजाब बैन के संदर्भ में पेश किए। बीच-बीच में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया उनसे सवाल करके अपनी जिज्ञासा शांत करते रहे। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कई घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि काफी मुस्लिम महिलाएं हिजाब नहीं पहनती हैं।
कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर धार्मिक प्रथा संरक्षित नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि तीन तलाक और गोहत्या इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथाएं नहीं हैं। अनुच्छेद 25 के तहत सुरक्षा का दावा करने के लिए याचिकाकर्ताओं को यह साबित करना होगा कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। अनुच्छेद 25 के तहत हिजाब पहनने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। अदालत के सामने जो सवाल है वह है कि स्कूल में वर्दी पर प्रतिबंध तर्कसंगत है या नहीं।
एजी ने कहा कि राज्य (कर्नाटक) केवल वर्दी को रेगुलेट करके छात्रों में अनुशासन पैदा करना चाहता है। उन्होंने कहा, हमने बाहर हिजाब को प्रतिबंधित नहीं किया है, स्कूल बस में या अन्य वाहनों में पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। स्कूल परिसर में भी कोई प्रतिबंध नहीं है। यह केवल क्लास में है।
जहां तक अनुच्छेद 21 के तहत प्राइवेसी के अधिकार का संबंध है, सभी क्षेत्रों में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। एजी ने इन आरोपों से भी इनकार किया कि राज्य ने एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया है। यह छात्र बनाम स्कूल का मामला है। छात्र बनाम सरकार का मामला नहीं है।
बुधवार को कोर्ट में बहस शुरू होने पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने सवाल किया कि अगर हिजाब आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है तो यह कैसे तय होगा कि यह कैसी प्रथा है। जस्टिस गुप्ता ने कुराना का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता लड़कियां कह रही हैं कि कुरान में लिखी हर बात ईश्वर का वचन है और उसे मानना जरूरी बताया गया है। इस पर एजी ने जवाब दिया कि यह कोई दलील नहीं है कि यह धर्म के लिए मौलिक अधिकार है। हर सांसारिक गतिविधि एक आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस नहीं हो सकती। अगर कुरान में कही गई हर बात आवश्यक है तो ही यह अनिवार्यता की कसौटी पर खरी उतरेगी। कुरान का हर पहलू धार्मिक हो सकता है लेकिन अनिवार्य नहीं हो सकता। हमारे यहां तमाम ऐसी महिलाएं हैं जो हिजाब नहीं पहनती हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वो कम मुसलमान हैं।
एसजी के इस तर्क से जस्टिस हेमंत गुप्ता ने सहमति जताई और कहा कि मुस्लिम महिलाओं का बड़ा हिस्सा ऐसा है जो हिजाब नहीं पहनता। लाइव लॉ ने जस्टिस गुप्ता के शब्दों को कोट करते हुए लिखा - मैं पाकिस्तान में किसी को जानता हूं। लाहौर हाईकोर्ट के एक जज जो भारत आया करते थे। उनकी एक पत्नी और दो बेटियां हैं, मैंने कम से कम भारत में उन छोटी लड़कियों को हिजाब पहने हुए कभी नहीं देखा। ... पंजाब में, कई मुस्लिम महिलाएं हैं जो हिजाब नहीं पहनती हैं। जब मैं यूपी या पटना गया तो मैंने मुस्लिम परिवारों से बातचीत की और महिलाओं को हिजाब नहीं पहने देखा। इस पर एजी ने फिर दोहराया कि कुरान में कही गई हर बात जरूरी नहीं हो सकती।
जस्टिस धूलिया ने बुधवार को कई सवाल किए। उन्होंने पूछा कि राज्य ने हाईकोर्ट से आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस के मुद्दे से बचने के लिए क्यों नहीं कहा। जस्टिस धूलिया ने कहा, राज्य कह सकता था कि आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस न करें ... आपका तर्क था कि यह एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। फिर आपको भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी। इस पर एजी ने कहा कि इस पहलू पर बहस करने के लिए उनके बीच झिझक थी। उन्होंने लॉ अफसरों से अदालत में कुरान नहीं लाने को कहा था क्योंकि यह एक प्रतिष्ठित किताब है।
बहस के दौरान जस्टिस धूलिया ने पूछा, अब आप बैन लगा रहे हैं, ऐसा बैन केवल 19 (2) कानून के तहत लग सकता है। क्या राज्य सरकार का सर्कुलर कोई"कानून" है ? एजी ने कहा कि प्रतिबंध कर्नाटक शिक्षा नियमों के नियम 11 के तहत है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने चुनौती नहीं दी है। उन्होंने स्पष्ट किया, स्कूल के पास पावर है कि वो यूनिफॉर्म तय करे। सर्कुलर नहीं, बल्कि नियम इस पावर का स्रोत है।इस पर कोर्ट ने पूछा कि क्या स्कार्फ़ पहनना एकता और समानता के ख़िलाफ़ है? याचिकाकर्ताओं के अनुसार यूनिफॉर्म नहीं होनी चाहिए । जस्टिस धूलिया ने पूछा, कुछ स्कूलों में तो यूनिफॉर्म ही नहीं होती है और सरकारी सर्कुलर, में "एकता और समानता" शब्द का इस्तेमाल किया गया है। यह क्या है?
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