भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मंगलवार को बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह उनकी पिछले पांच वर्षों में पहली चीन यात्रा है और यह मुलाकात 2020 में गलवान घाटी में हुए सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
जयशंकर, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर चीन में हैं। जयशंकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "आज (मंगलवार) सुबह बीजिंग में अपने साथी एससीओ विदेश मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुभकामनाएं दीं। राष्ट्रपति शी को हमारे द्विपक्षीय संबंधों के हालिया विकास से अवगत कराया। इस संबंध में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को महत्व देता हूं।"
यह मुलाकात पिछले साल अक्टूबर में रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक के बाद हुई है, जिसमें दोनों नेताओं ने सीमा विवाद को हल करने और द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न संवाद तंत्रों को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया था। जिसकी वजह से 21 अक्टूबर 2024 को भारत और चीन ने डेपसांग और डेमचोक में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त व्यवस्था को लेकर समझौते की घोषणा की थी, जिसके बाद 2020 के सभी विवादित प्वाइंट्स से सैन्य वापसी पूरी हो गई थी।
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जयशंकर ने सोमवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ भी विस्तृत बातचीत की थी। इस बैठक में उन्होंने पिछले नौ महीनों में सीमा पर तनाव कम करने और शांति बनाए रखने के कारण द्विपक्षीय संबंधों में हुए सुधार की सराहना की। उन्होंने कहा कि अब दोनों पक्षों के लिए सीमा से संबंधित अन्य पहलुओं, विशेष रूप से डी-एस्केलेशन पर ध्यान देना आवश्यक है। जयशंकर ने यह भी जोर दिया कि भारत और चीन को आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर संबंधों को विकसित करना चाहिए, ताकि मतभेद विवाद न बनें और प्रतिस्पर्धा कभी संघर्ष में न बदले।

क्या भारत झुक रहा है 

सोशल मीडिया पर जयशंकर की चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात को भारत का झुकना बताया जा रहा है। भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसकी अलग ढंग से आलोचना की है। लेकिन कूटनीति सोशल मीडिया या विपक्ष के हिसाब से नहीं चल सकती। इसे भारत का झुकना किसी भी तरह नहीं कहा जा सकता। भारत ने 2020 के गलवान संघर्ष के बाद सख्त रुख अपनाया था, जिसमें सैन्य तैनाती बढ़ाना, आर्थिक प्रतिबंध (जैसे चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध), और वैश्विक मंचों पर चीन की आलोचना शामिल थी। हाल के समझौतों और इस मुलाकात से यह संकेत मिलता है कि भारत अपनी शर्तों पर संबंधों को सामान्य करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, न कि दबाव में।
भारत ने इस मुलाकात में अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से सामने रखा, जैसे डी-एस्केलेशन, व्यापार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान। यह एक रणनीतिक कदम है जो भारत के दीर्घकालिक हितों, जैसे क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास, को आगे बढ़ाना वाला है।

कमजोरी नहीं, आत्मविश्वास 

भारत ने इस मुलाकात के जरिए एक जिम्मेदार ग्लोबल शक्ति के रूप में अपनी छवि को मजबूत किया है, जो कूटनीति के माध्यम से समस्याओं का समाधान करने में विश्वास रखता है। यह किसी भी तरह से कमजोरी का संकेत नहीं है, बल्कि एक परिपक्व और नजरिए को दर्शाता है।

कुछ लोग इसे भारत का नरम रुख मान सकते हैं, क्योंकि यह मुलाकात 2020 के बाद तनाव के बीच हुई है। इसे चीन के प्रति रियायत के रूप में देखा जा सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जिस तरह से चीन की पाकिस्तान को मदद की बात सामने आई थी। हाल ही में चीन ने भारत के पड़ोसियों से भी संबंध मज़बूत किए हैं। इससे भारत को चीन से संबंध आगे बढ़ाने की पहल करना ही था।

यह मुलाकात भारत की रणनीतिक नीति का हिस्सा है, जो यथास्थिति को बनाए रखने के बजाय संबंधों को सामान्य करने और भविष्य में टकराव से बचने की दिशा में काम करती है। भारत ने अपनी सैन्य और आर्थिक स्थिति के मद्देनजर यह कदम उठाया है। इसके अलावा, कैलाश मानसरोवर यात्रा जैसे मुद्दों पर सहयोग भारत के सांस्कृतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है।
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बहरहाल, एस. जयशंकर की शी जिनपिंग से मुलाकात को भारत का झुकना मानना गलत होगा। यह एक रणनीतिक और कूटनीतिक कदम है, जो भारत के दीर्घकालिक हितों के मद्देनजर है। भारत ने अपनी शर्तों पर बातचीत की है, और यह मुलाकात आपसी सम्मान और लाभ के आधार पर संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक पॉजिटिव कदम है। यह भारत की परिपक्व कूटनीति और आत्मविश्वास को दर्शाता है, न कि किसी दबाव में झुकने का संकेत।