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मॉब लिंचिंग के अभियुक्तों की मदद क्यों की जयंत सिन्हा ने?

केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त और ऊंचे पदों पर काम करने वाले आदमी को भी सांप्रदायिकता की राजनीति क्यों करनी होती है? वह क्यों गोरक्षकों और पीट पीट कर मार डालने के मामले के अभियुक्तों के साथ खड़े होते हैं और उनकी मदद करते हैं? देश की राजनीति किस तरफ जा रही है? ये सवाल इसलिए उठते हैं कि बीते दिनों उन्होंने ख़ुद कहा कि उन्होंने हत्या के अभियुक्तों की आर्थिक मदद की क्योंकि उन्हें लगता है कि वे निर्दोष हैं और उन्हें ग़लत तरीके से सज़ा दी गई है।

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सिन्हा ने एक मशहूर अमेरिकी विश्वविद्यालय से एमबीए किया, कॉरपोरेट जगत में लंबे समय तक ऊंचे पदों परन काम किया, केंद्र सरकार में मंत्री रहे। लेकिन वह भी  गोरक्षको के साथ खड़े दिखते हैं।
सिन्हा ने बीबीसी हिन्दी से बात करते हुए कहा कि उन्हें यह लगता है कि ये लोग निर्दोष हैं और उन्हें न्याय मिलना चाहिए, इसलिए उन्होंने और बीजेपी के दूसरे नेताओं ने पैसे इकट्ठा कर उन अभियुक्तों के वकील को दिए।

हत्या के अभियुक्तों की आर्थिक मदद

इस घटना के बहुत दिन बाद पिछले दिनों उन अभियुक्तों की आर्थिक मदद की बात कह कर वे एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। 

अभियुक्तों के परिजन मेरे घर आए थे, मैं उनके घर नहीं गया था। उन लोगों ने मुझसे कहा कि वे बहुत ही ग़रीब हैं, अच्छा वकील रखने के लिए पैसे चाहिए जो उनके पास नहीं है। इसलिए मुझे लगा कि मैं उनकी मदद करूं। मैंने और बीजेपी के कुछ दूसरे लोगों ने वकील की फ़ीस के पैसे दिए।


जयंत सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘मरियम ख़ातून (मृतक की विधवा) से मुझे बहुत सहानुभूति है, उनके साथ जो हुआ, बुरा हुआ। लेकिन मुझे लगा कि ये लोग (अभियुक्त) भी निर्दोष हैं, उनके साथ न्याय नहीं हुआ, उन्हें न्याय मिलना चाहिए। यह अवधारणा ग़लत है कि इन लोगों ने ही वह काम किया था।’

‘निर्दोषों को जेल में डाला गया’

बीजेपी के इस नेता ने अभियुक्तों का ज़ोरदार ढंग से बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘यदि कोई आदमी इस मामले का अध्ययन करे और हाई कोर्ट का फ़ैसला ग़ौर से पढ़े तो यह साफ़ हो जाएगा कि जो लोग मेरे घर आए थे, वे निर्दोष हैं।'

मेरा मानना है कि हिंसा के शिकार हुए लोगों को निश्चित तौर पर न्याय मिलना चाहिए। पर मेरा यह भी मानना है कि जो लोग निर्दोष हैं और जिन्हें ग़लत सज़ा दी गई और ग़लत ढंग से जेल में डाल दिया गया, उन्हें भी न्याय मिलना ही चाहिए।’


जयंत सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री

जब सिन्हा से पूछा गया कि क्या उन्हें इन अभियुक्तों के निर्दोष साबित होने तक उन्हें इंतजार नहीं करना चाहिए था, उन्होंने पलट कर जवाब दिया और कहा कि पूरे देश में ऐसे कई नेता है, जो अभियुक्त हैं और जिनका स्वागत और सम्मान किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि यह हिंसा का शिकार हुए व्यक्ति की विधवा उनसे मिली होती तो उन्होंने निश्चित रूप से उनकी मदद की होती।

‘पीड़ित नहीं, अभियुक्तों की मदद करते हैं सिन्हा’

लेकिन जब बीबीसी संवाददाता ने मरियम ख़ातून से मुलाक़ात की तो उन्होंने कहा, ‘क्या सिन्हा मेरे बेटे को नौकरी दिलवा देंगे? क्या वह उसकी मदद करेंगे? यदि वह ऐसा करें तो मैं मानूं कि सिन्हा मेरी मदद करने को तैयार हैं। पर ऐसा नहीं है। उन्होंने मदद उन लोगों की जिन्होंने मेरे पति को मार डाला।’

क्या हुआ था?

गोरक्षकों के एक समूह ने साल 2017 में झारखंड राज्य के रामगढ़ में मारुति गाड़ी से जा रहे अलीमुद्दीन को बीच सड़क पर रोक लिया। अलीमुद्दीन को बुरी तरह पीटा गया, उनकी गाड़ी में आग लगा दी गई, गाड़ी में मौजूद मांस सड़क पर फेंक दिया गया। बाद में उनकी मौत हो गई। इस मामले में 12 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। बीते साल 21 मार्च को एक फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने इस मामले में अभियुक्तों को दोषी क़रार देते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। इसके तीन महीने बाद राँची हाई कोर्ट ने ‘हमले का ख़ास सबूत न होने के आधार पर’ उन्हें ज़मानत दे दी।

Jayant Sinha economic support to murder accused - Satya Hindi
रामगढ़ मॉब लिंचिंग के अभियुक्तों को माला पहना कर सम्मान किया जयंत सिन्हा ने
गोरक्षकों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में गाय की बिक्री, गोमांस के व्यापार और यहाँ तक कि दूसरे मांस के व्यापार से जुडे लोगों को कई बार निशाना बनाया है। इसमें ज़्यादातर मामलों में मुसलमानों को निशाने पर लिया गया है। अधिकतर मामलों में दोषियों को सज़ा नहीं हुई, कई मामलों में तो पीड़ितों को ही फँसा दिया गया। एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने इन गोरक्षकों की आलोचना करते हुए उन्हें अपराधी तक क़रार दिया और राज्य सरकारों से उनका डाटा तैयार करने को कहा गया। लेकिन इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ।
सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों एक वर्ग विशेष को निशाने पर लिया जाता है? इस तरह की वारदात बीते पाँच साल में ही ज़्यादा हुई हैं, जब केंद्र के अलावा अधिकतर राज्यों में भी बीजेपी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं। 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देकर केंद्र की सत्ता हासिल करने वाले लोग क्यों सबको लेकर नहीं चल रहे हैं? ये सवाल उठते हैं और उठेंगे क्योंकि खुद बीजेपी के ही लोग इस तरह की बातों को हवा दे रहे हैं। जयंत सिन्हा ने खुद अभियुक्तों का सम्मान किया और उन्हें पैसे देने की बात भी उन्होंने खुद कही। उन्होंने चुनाव के बीच ही इस तरह की बातें की हैं। क्या वे इस तरह की बातें कर चुनावी फ़ायदा उठाना चाहते हैं, यह सवाल पूछा जाना लाज़िमी है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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