I love Muhammad: देशभर में मुस्लिम आई लव मुहम्मद के बैनर और पोस्टर लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं या जुलूस निकाल रहे हैं। कई जाने-माने मुस्लिम नेताओं ने भी अपनी डीपी पर यही लिखा हुआ फोटो लगाया है। आइए, इसकी वजह जानते हैं।
आई लव मुहम्मद के बैनर के साथ लखनऊ में जुलूस
उत्तर प्रदेश के कानपुर में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर लगाए गए "आई लव मुहम्मद" (सल्ल.) बैनर को लेकर पुलिस ने एफआईआर की।
इसके बाद इस छोटी सी घटना के विरोध में देशभर में इस समय मुस्लिम बैनर-पोस्टर के साथ जुलूस निकाल रहे हैं या प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, परभणी, बुरहानपुर और झारखंड समेत कई शहरों में पिछले एक हफ्ते से मुसलमान सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्नाव में सोमवार को कई मुस्लिम युवकों को प्रदर्शन के विरोध में हिरासत में लिया गया। हाथों में "आई लव मुहम्मद" के पोस्टर और बैनर थामे प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की, "प्यार का इजहार अपराध नहीं, हमारा विश्वास है!" एक अन्य नारा भी लग रहा है- "मुहम्मद से प्यार अपराध नहीं है।" मुस्लिमों के इस तरह देशव्यापी प्रदर्शन की तस्वीरें इससे पहले सीएए विरोधी शाहीनबाग आंदोलन और वक्फ कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों की आई थी।
कानपुर के सैयद नगर इलाके में 4 सितंबर को मिलाद-उन-नबी की शोभायात्रा के दौरान मुस्लिम समुदाय ने एक लाइट बोर्ड लगाया था, जिस पर अंग्रेजी में "आई लव मुहम्मद" लिखा था। इस रास्ते से सभी धार्मिक जुलूस निकलते हैं। हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसका विरोध किया और बोर्ड तोड़ दिया। इसके बाद 9 सितंबर को रावतपुर थाने में 25 मुसलमानों (8 नामजद सहित) के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। उन लोगों पर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया गया। पुलिस ने बाद में साफ किया कि एफआईआर बैनर के कारण नहीं, बल्कि उसके बाद हुई झड़पों और हिंदू धार्मिक पोस्टर्स को फाड़ने के आरोपों पर हुई।
देशव्यापी प्रदर्शनों की लहर
दिल्ली: जामा मस्जिद और अन्य मस्जिदों के बाहर प्रदर्शनकारियों ने "आई लव मुहम्मद" के नारे लगाए। उन्होंने कहा, "अगर पैगंबर (सल्ल.) के लिए प्यार जताना गुनाह है, तो हम इसे लाखों बार दोहराएंगे।"
मुंबई: मुंब्रा पुलिस स्टेशन के बाहर सामाजिक कार्यकर्ता अशरफ (शानू) पठान ने कहा, "यह घटना मुस्लिम समुदाय में गहरा दुख पैदा कर रही है। हमारा विश्वास अपराध नहीं।"
हैदराबाद: नमपल्ली पब्लिक गार्डन में नमाज के बाद रैली निकाली गई। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी, "एफआईआर से डरेंगे नहीं, 'आई लव मुहम्मद' का नारा बुलंद करते रहेंगे।"
अहमदाबाद: महिलाओं और युवाओं ने प्लेकार्ड थामे मार्च निकाला।
परभणी: शांतिपूर्ण फुट मार्च में बैनर लहराए गए, जहां प्रदर्शनकारियों ने "साम्प्रदायिक सद्भाव" का संदेश दिया।
लखनऊ: 20 सितंबर को मुस्लिम महिलाओं ने विधान भवन के बाहर धरना दिया। कवि मुनव्वर राना की बेटी सुमैया राना ने नेतृत्व किया। पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया, लेकिन बाद में रिहा कर दिया। सुमैया ने कहा, "यह एफआईआर असंवैधानिक है, जो भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाती है।"
इसी तरह के प्रदर्शन आगरा, बिहार, गुजरात और तेलंगाना तक में भी हुए। काशीपुर (उधम सिंह नगर) में एक रैली हिंसक हो गई, जहां पुलिस से टकराव हुआ। गुजरात में कुछ स्थानों पर ऐसा जुलूस निकालने वाले मुस्लिम युवकों पर एफआईआर करके गिरफ्तार कर लिया गया।
सोशल मीडिया पर अभियान: वैश्विक समर्थन
सोशल मीडिया पर #ILoveMuhammad एक कैंपेन बन गया। लाखों यूजर्स ने प्रोफाइल पिक्चर बदलीं और पोस्ट शेयर कीं। पाकिस्तान, मिडिल ईस्ट से भी समर्थन मिला। गैर-मुस्लिम यूजर्स ने भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए पुलिस कार्रवाई की निंदा की। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "'आई लव मुहम्मद' कहना अपराध नहीं। अगर यह गुनाह है, तो हमें सजा दो। हम डरते नहीं।" ओवैसी ने अपनी डीपी भी इस नारे से बदली।
वर्ल्ड सूफी फोरम चेयरमैन हजरत सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने पुलिस कार्रवाई को "अवैध" बताया। उन्होंने कहा, "प्यार जताना संवैधानिक अधिकार है। यह नफरत की साजिश है।" कानपुर के शहर काजी मुफ्ती मोहम्मद यूनुस रजा ने भी कहा, "यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। कोई कानून प्यार को अपराध नहीं ठहरा सकता।"
कानपुर पुलिस का बयान
कानपुर पुलिस का दावा है कि एफआईआर बैनर हटाने से नहीं, बल्कि उसके बाद हुई तोड़फोड़ से हुई। लेकिन मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि हिंदुत्ववादी समूहों ने पहले बोर्ड तोड़ा, फिर मुसलमानों को फंसाया गया। यह घटना उत्तर प्रदेश में राम नवमी और मिलाद-उन-नबी जैसे त्योहारों के दौरान होने वाले सांप्रदायिक तनाव की याद दिलाती है।
वकील मोहम्मद इमरान खान ने कहा, "हिंदुत्व संगठनों ने बोर्ड तोड़ा, लेकिन मुसलमानों पर ही केस। यह नई परंपरा स्थापित करने का बहाना है।" प्रदर्शनकारियों ने एफआईआर रद्द करने और गिरफ्तार युवकों की रिहाई की मांग की है। यह आंदोलन मुस्लिम समुदाय के लिए न केवल धार्मिक सम्मान का सवाल है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का भी। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी घटनाएं साम्प्रदायिक तनाव बढ़ा सकती हैं। देश में जुलूसों का सिलसिला अभी भी जारी है।