पहलगाम आतंकी हमले में भारत सरकार अभी तक यह नहीं कह पाई है कि यह खुफिया एजेंसियों की विफलता है। सोशल मीडिया पर फिर उस शख्स की तस्वीरें तैर रही हैं, जिसमें उस आला अधिकारी को जब तब कभी जेम्स बॉन्ड तो कभी सलमान खान की मशहूर फिल्म टाइगर जिन्दा है के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन उस शख्स की जवाबदेही अब गायब है। भारत के गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान की जवाबदेही अब कहां है कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया है। जिस इलाके में दो हजार पर्यटकों की मौजूदगी हो, वहां की सुरक्षा का खाका किसके पास था। ये तमाम सवाल अब पूछे जा रहे हैं। इन सवालों को रोका नहीं जा सकता।

पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने 28 लोगों की जान ले ली। यह घटना भारत की खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक के रूप में सामने आई है। लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की सहयोगी द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। यह हमला उस समय हुआ जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस भारत के दौरे पर थे। इस घटना ने न सिर्फ भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि कश्मीर घाटी में खुफिया तंत्र की नाकामी को भी उजागर किया।

पहलगाम के बैसरण घास के मैदान में चार आतंकवादी, सेना की वर्दी में पर्यटकों से भरे एक दुर्गम क्षेत्र में हथियारों के साथ घुसने में सफल रहे, और खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। विशेषज्ञों का कहना है कि स्थानीय खुफिया नेटवर्क की कमजोरी और आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने में तकनीकी संसाधनों का अपर्याप्त इस्तेमाल इस विफलता के प्रमुख कारण हैं। लेकिन जब देश का गृह मंत्री बार-बार यह बयान दे कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पूरी तरह खत्म हो गया है तो जाहिर सी बात है कि खुफिया एजेंसियां और सुरक्षा बल अपनी शाबासी के रूप में ही लेंगे और सतर्कता के मोर्चे से आंखें बंद कर लेंगे। ताज्जुब है कि देश के गृह मंत्री ने अपनी नाकामी की जिम्मेदारी का ऐलान अभी तक नहीं किया।

ताज़ा ख़बरें

अमित शाह ने 21 मार्च 2025 को राज्यसभा में क्या कहा था

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 21 मार्च 2025 को राज्यसभा में फरमाया- अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ भारतीय युवाओं की संलिप्तता लगभग खत्म हो गई है। आतंकवादियों का महिमामंडन, जो कभी यूपीए शासन में आम बात थी, एनडीए के दशक भर के शासन के दौरान खत्म हो गया। दस साल पहले आतंकवादियों के जनाजे निकालना आम बात थी और लोग उनका महिमामंडन करते थे। लेकिन अब जब आतंकवादी मारे जाते हैं, तो उन्हें मौके पर ही दफना दिया जाता है। उनके रिश्तेदार, जो कभी सरकारी सुविधाओं का आनंद लेते थे, उन्हें सख्त संदेश देने के लिए बेरहमी से सरकारी पदों से हटा दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं में काफी कमी आई है। 2004 से 2014 के बीच इस क्षेत्र में 7,217 आतंकी घटनाएं हुईं, जबकि 2014 से 2024 के बीच यह संख्या घटकर 2,242 रह गई। आतंकवाद के कारण मोदी राज में मौतों में 70 प्रतिशत की कमी आई। पीएम मोदी सरकार आतंकवाद के प्रति "शून्य-सहिष्णुता की नीति" का पालन करती है, जबकि पिछली सरकारें आतंकवाद के प्रति नरम रवैया रखती थीं।

अमित शाह फिर से कश्मीर में हैं। पहलगाम में मारे गए लोगों के परिवारों से मिल रहे हैं। लेकिन अभी तक उन्होंने यह नहीं कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसियां नाकाम हुईं। आतंकवादी उस जगह पर करीब 20 मिनट तक दनदनाते रहे लेकिन उस समय तक एक भी सुरक्षा बल की टुकड़ी उनका जवाब देने या मुकाबला करने के लिए मौजूद थी। अगर यह मान भी लिया जाए कि पर्यटन केंद्रों पर सुरक्षा बल इस तरह तैनात नहीं होते तो आखिर सिविल ड्रेस में तैनात रहने वाल हथियारबंद सुरक्षाकर्मी कहां थे। उन्होंने क्यों नहीं आतंकियों का मुकाबला किया।

खुफिया सूत्रों के अनुसार, हमले से पहले कोई ठोस जानकारी नहीं मिली थी, जो आतंकवादियों की योजना को विफल कर सकती थी। यह हमला 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी में नागरिकों पर सबसे घातक हमला है, और यह दर्शाता है कि आतंकी संगठन अब भी भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों को निशाना बनाने में सक्षम हैं।

पहलगाम हमले ने नियंत्रण रेखा (LoC) पर घुसपैठ को रोकने में भारत की चुनौतियों को भी उजागर किया है। माना जा रहा है कि आतंकवादी पाकिस्तान से प्रशिक्षित थे और LoC के रास्ते घाटी में दाखिल हुए। हाल के वर्षों में भारत ने LoC पर ड्रोन, थर्मल इमेजिंग और अन्य तकनीकों का उपयोग बढ़ाया है, लेकिन इस हमले ने इन उपायों की सीमाओं को सामने ला दिया। खुफिया एजेंसियों को आतंकवादियों की आवाजाही और उनके स्थानीय समर्थकों की गतिविधियों पर पहले से जानकारी जुटाने में नाकामी मिली।

पहलगाम, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए "मिनी स्विट्जरलैंड" के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। हमले के समय बैसरण में करीब 2000 पर्यटक मौजूद थे, लेकिन वहां सुरक्षा बलों की तैनाती और निगरानी अपर्याप्त थी। पर्यटकों की स्क्रीनिंग और संवेदनशील क्षेत्रों में CCTV या अन्य निगरानी उपकरणों की कमी ने आतंकवादियों को आसानी से हमला करने का मौका दिया। यह खुलासा करता है कि पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरती गई।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान की "जीवन रेखा" बताया, को हमले का एक संभावित ट्रिगर माना जा रहा है। खुफिया सूत्रों का कहना है कि इस बयान ने TRF जैसे आतंकी संगठनों को उकसाया हो सकता है। यह हमला भारत के खिलाफ पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की एक और कड़ी के रूप में देखा जा रहा है, जिसने खुफिया एजेंसियों की विफलता को और उजागर किया।

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती और निगरानी उपकरणों का इस्तेमाल शामिल है। खुफिया एजेंसियों को स्थानीय स्तर पर सूचना नेटवर्क को मजबूत करने और LoC पर घुसपैठ को रोकने के लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया गया है।

पहलगाम हमला कश्मीर में शांति और पर्यटन की प्रगति के लिए एक बड़ा झटका है। इस खुफिया विफलता ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम जरूरी हैं:


  

खुफिया नेटवर्क का विस्तार: स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग और तकनीकी निगरानी को मजबूत करना।  


LoC पर सतर्कता: ड्रोन, सैटेलाइट इमेजिंग और AI-आधारित प्रणालियों का उपयोग बढ़ाना।  


पर्यटक सुरक्षा: लोकप्रिय पर्यटक स्थलों पर स्थायी चेकपॉइंट, CCTV और प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की तैनाती।  


अंतरराष्ट्रीय कूटनीति: पाकिस्तान पर आतंकी समर्थन रोकने के लिए वैश्विक दबाव बढ़ाना।

पहलगाम आतंकी हमला भारत की खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों का एक दुखद उदाहरण है। यह घटना न केवल कश्मीर में शांति के लिए खतरा है, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। सरकार को तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने होंगे, ताकि खुफिया तंत्र को मजबूत किया जा सके और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।