कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में 767 किसानों की आत्महत्या का दिल दहलाने वाला आँकड़ा उजागर कर केंद्र की मोदी सरकार पर क़रारा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि 'मोदी जी ने कहा था, किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे, लेकिन अन्नदाता की जिंदगी आधी हो रही है!' सरकार की नीतियों पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की ताज़ा रिपोर्ट को लेकर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वादे को निशाना बनाया, जिसमें उन्होंने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का दावा किया था। राहुल ने कहा कि न केवल यह वादा खोखला साबित हुआ, बल्कि मौजूदा व्यवस्था में 'अन्नदाता की ज़िंदगी ही आधी हो रही है।' यह बयान महाराष्ट्र में बढ़ती किसान आत्महत्याओं के संदर्भ में आया है। एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में रोजाना क़र्ज़ तले तबे 8 किसान खुदकुशी कर रहे हैं। इसने एक बार फिर किसानों की बदहाली को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया है। राहुल गांधी ने कहा, 
सिर्फ़ 3 महीनों में महाराष्ट्र में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली। क्या ये सिर्फ़ एक आँकड़ा है? नहीं। ये 767 उजड़े हुए घर हैं। 767 परिवार जो कभी नहीं संभल पाएंगे। और सरकार? चुप है। बेरुख़ी से देख रही है।
राहुल गांधी
लोकसभा में विपक्ष के नेता

किसानों की त्रासदी पर राहुल के सवाल

उन्होंने किसानों की बदतर होती स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा कि क़र्ज़ का बोझ, महंगे बीज, खाद, और डीजल की क़ीमतें किसानों को हर दिन गहरे संकट में धकेल रही हैं। इसके बावजूद न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कोई क़ानूनी गारंटी नहीं दी जा रही है। राहुल ने केंद्र सरकार पर किसानों की क़र्ज़माफ़ी की मांग को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया और कॉरपोरेट्स के लिए क़र्ज़माफ़ी की तुलना करते हुए कहा, 'लेकिन जिनके पास करोड़ों हैं? उनके लोन मोदी सरकार आराम से माफ कर देती है।' उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा उठाए गए अनिल अंबानी की कंपनी से जुड़े 48,000 करोड़ रुपये के 'फ्रॉड' का उदाहरण देते हुए सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए। 

मोदी के वादे का ज़िक्र

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस चर्चित वादे को विशेष रूप से निशाना बनाया, जिसमें उन्होंने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वचन दिया था। राहुल ने मोदी सरकार की नीतियों को किसान विरोधी क़रार दिया।

राहुल ने मौजूदा सिस्टम को किसानों के लिए घातक करार दिया और आरोप लगाया कि यह सिस्टम गुपचुप तरीक़े से लगातार किसानों को तबाह कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री अपनी छवि चमकाने के लिए पीआर के तमाशे में व्यस्त हैं, जबकि किसान संकट में डूब रहे हैं।

महाराष्ट्र में किसानों की भयावह तस्वीर

महाराष्ट्र देश का एक प्रमुख कृषि पर निर्भर राज्य है। यह लंबे समय से किसान आत्महत्याओं का केंद्र रहा है। राहुल गांधी द्वारा उद्धृत आँकड़े के अनुसार, पिछले तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या की है। यह आँकड़ा विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में किसानों की बदहाली को और स्पष्ट करता है। सूखा, फ़सलों के उचित दाम न मिलना, क़र्ज़ का बढ़ता बोझ और कृषि लागत में वृद्धि जैसे मुद्दों ने किसानों को मजबूर कर दिया है। किसानों की प्रमुख मांगों में एमएसपी की क़ानूनी गारंटी, क़र्ज़माफ़ी, और बीज-खाद की क़ीमतों पर नियंत्रण शामिल हैं। विपक्ष का कहना है कि पीएम-किसान सम्मान निधि और फसल बीमा योजना जैसी केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएँ कागजी साबित हो रही हैं और जमीनी स्तर पर किसानों को राहत नहीं मिल रही है। 

'कॉरपोरेट्स को राहत, किसानों को अनदेखी'

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में अनिल अंबानी की कंपनी से जुड़े 'फ्रॉड' मामले को उदाहरण बनाकर सरकार पर कॉरपोरेट्स के लिए उदार नीतियों और किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। राहुल ने कहा कि एक तरफ़ बड़े उद्योगपतियों के भारी-भरकम क़र्ज़ माफ़ किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ छोटे-छोटे क़र्ज़ों में डूबे किसानों की कोई सुनवाई नहीं हो रही। 

एमएसपी की मांग

राहुल गांधी का यह ट्वीट ऐसे समय में आया है जब विपक्ष लगातार केंद्र सरकार पर किसान विरोधी नीतियों का आरोप लगा रहा है। कांग्रेस, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दल एमएसपी की क़ानूनी गारंटी और क़र्ज़माफ़ी की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का दावा है कि वह किसानों के लिए कई योजनाएँ चला रही है और उनकी स्थिति सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है। हालाँकि, राहुल गांधी का यह बयान सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। कुछ लोग इसे किसानों की वास्तविक स्थिति को उजागर करने वाला बयान मान रहे हैं, तो कुछ इसे महज राजनीतिक बयानबाज़ी बता रहे हैं। 

राहुल गांधी का यह ट्वीट न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश में किसानों की स्थिति पर बहस को और हवा दे सकता है। यह देखना अहम होगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर क्या जवाब देती है और क्या किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए कोई ठोस क़दम उठाए जाते हैं। किसानों की आत्महत्याओं का यह सिलसिला और सरकार की कथित उदासीनता देश के लिए एक गंभीर चुनौती है। क्या सरकार इस संकट से निपटने के लिए कोई प्रभावी नीति लाएगी, या यह मुद्दा केवल राजनीतिक बयानों तक सीमित रहेगा? यह सवाल हर किसी के मन में है।