loader

क्या सीबीआई पर राज्यों का अंकुश संघीय ढाँचे के चरमराने का संकेत है?

क्या देश की सबसे प्रमुख जाँच एजेंसी सीबीआई का अस्तित्व संकट में है? क्या सत्ता का समीकरण बनाने-बिगाड़ने का राजनीतिक पार्टियों का संघर्ष देश के संघीय ढाँचे के लिए ख़तरा बनता जा रहा है?

संघीय ढाँचा कमज़ोर?

या यूं कह लें कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के रिश्ते में कड़वाहट घोलने का जो दौर शुरू हुआ है वह देश और प्रदेश के विकास के लिए घातक मार्ग है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और अब राजस्थान ने अपने यहाँ सीबीआई पर अंकुश लगा दिए हैं। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र या कोई और प्रदेश भी इस सूची में शामिल हो सकता है?
देश से और खबरें
जिन प्रदेशों ने अंकुश लगाया है, वहाँ अब सीबीआई को किसी प्रकार की जाँच करने के लिए  राज्य सरकारों से अनुमति लेनी होगी।
कहा जा रहा है राजस्थान में चल रहे सियासी संकट के बीच प्रदेश में जिस तरह से सीबीआई कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों के ख़िलाफ़ छापामारी तथा विधायकों की ख़रीद-फ़रोख्त के मिले ऑडियो टेप की जाँच में दखल देने की तैयारी कर रही है, उसे देखते हुए राजस्थान सरकार ने यह निर्णय किया है। 

इसलिए सवाल यह उठता है कि सत्ता की होड़ कहीं देश के संघीय ढाँचे को नुक़सान तो नहीं पहुँचा रही है?

मामला राजस्थान का

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कई दिनों से विवाद चल रहा है। गहलोत ने पायलट पर बीजेपी के साथ मिल कर राज्य सरकार को गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। ऐसे में चुरू ज़िले के राजगढ़ थाने के एसएचओ विष्णुदत्त विश्नोई की कथित खुदकुशी के संबंध में सीबीआई ने सोमवार को राजस्थान की कांग्रेसी विधायक कृष्णा पूनिया के घरों पर छापे मारे और उनसे पूछताछ की। इसके बाद 23 मई को विश्नोई का शव उनके आवास की छत से लटकता पाया गया था। राजस्थान सरकार ने इस मामले की जाँच सीबीआई को सौंपी थी।

यही नहीं, राजस्थान विवाद शुरू होने के बाद जिस दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने आवास पर विधायकों की बैठक कर रहे थे, आयकर विभाग मुख्यमंत्री के क़रीबी लोगों पर छापेमारी कर रहा था। एक आभूषण कंपनी के जयपुर सहित चार शहरों में मौजूद ठिकानों पर छापे मारे गए थे। आयकर विभाग ने ओम कोठारी समूह के साथ-साथ राजीव अरोड़ा के आम्रपाली कार्यालय पर भी छापा मारा था। राजीव अरोड़ा राज्य कांग्रेस कार्यालय के सदस्य हैं।

कांग्रेस का हमला

इसे लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हमला बोला था। इस विधायक ख़रीद फ़रोख़्त काण्ड में कुछ ऑडियो टेप आये, जिसमें बीजेपी नेताओं के साथ साथ केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम भी सामने आया तो बीजेपी की तरफ से मामला सीबीआई को देने की बात उठने लगी। सीबीआई का नाम आते ही अशोक गहलोत सरकार यह निर्णय करने पर मजबूर दिखी।
सवाल यह नहीं है कि किसी आपराधिक मामले की जाँच से नहीं होनी चाहिए, सवाल यह है कि इन मामलों की जाँच ऐसे ही समय क्यों तेज़ क्यों हो जाती है जब राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ रहता है या किसी प्रदेश में सरकार अस्थिर होने का खेल चलता रहता है?

पिंजड़े का तोता!

केंद्रीय जाँच एजेंसियों के दुरुपयोग के मामले हमारे देश में नए नहीं हैं। इन केंद्रीय एजेंसियों में सबसे ज़्यादा कोई बदनाम हुई है तो वह है सीबीआई, जिसे देश के सुप्रीम कोर्ट ने ‘पिंजरे का तोता’ तक कह दिया है। हालिया दौर में जो दिखाई दे रहा है कि सरकार किस तरह से इस तोते का प्रयोग करती रहती है। केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी तब बीजेपी के नेता अरुण जेटली सीबीआई के दुरुपयोग पर ब्लॉग लिखा करते थे और अब बीजेपी की सरकार है तो कांग्रेस के नेता इसके कामकाज की आलोचना करते हैं।  सीबीआई को लेकर राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद यादव, अरविंद केजरीवाल समेत तमाम विपक्षी नेता यह आरोप लगाते लगा रहे हैं।

साख पर सवाल

देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी यानी सीबीआई की विश्वसनीयता की साख पर अंगुली उठना या केंद्र सरकार पर इस एजेंसी के दुरुपयोग का आरोप लगना कोई नई और चौंकाने वाली बात नहीं है।
दरअसल सीबीआई के गठन को गुवाहाटी हाई कोर्ट अपने एक फ़ैसले में असंवैधानिक बता चुका है।

सीबीआई है असंवैधानिक?

न्यायाधीश आई. ए. अंसारी तथा इंदिरा शाह के खंडपीठ ने यह फ़ैसला हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा वर्ष 2007 में दिए गए फैसले को चुनौती देते हुए नावेन्द्र कुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर दिया था। इस फैसले में अदालत ने कहा, ‘हम 01.04.1963 के प्रस्ताव को रद्द करते हैं, जिसके जरिए सीबीआई का गठन किया गया था। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार और सीबीआई दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
मायावती, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह की तरफ से बार बार यह शिकायत की गई है कि केंद्र सरकार उन्हें सीबीआई से डरा रही है। दअरसल, इन तीनों नेताओं पर आय से अधिक संपत्ति तथा भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामले भी वर्षों से विचाराधीन है। लिहाज़ा, इनके टकराव को केंद्र और राज्य संबंधों के टकराव में नहीं देखा गया।

केंद्र-राज्य टकराव

लेकिन वर्तमान दौर में सीबीआई को जिस तरह से घेरा जा रहा है वह केंद्र राज्य संबंधों में टकराव के एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, उससे पहले आंध्र प्रदेश में चंद्राबाबू नायडू, छत्तीसगढ़ और अब राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने फ़ैसला लिया है कि राज्य में सीबीआई को किसी की जाँच करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी।
सरकार के गृह विभाग की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि सीबीआई को राजस्थान में जाँच करने के लिए प्रदेश सरकार की अनुमति की ज़रूरत होगी। ग़ौरतलब है कि सीबीआई का गठन दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टैब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत किया गया था और यह केंद्र सरकार के तहत काम करने वाली जाँच एजेंसी है।

राज्य का अधिकार क्षेत्र

क़ानून-व्यवस्था राज्य के अधिकारों की सूची में शामिल है, लिहाज़ा, इस एक्ट की धारा 6 के तहत मामलों की जाँच के लिए राज्यों की सहमति आवश्यक है और ज़्यादातर राज्य सरकारें बहुत सारे मामलों के लिए स्थायी सम्मति की अधिसूचना जारी कर चुकी हैं।
अब इस सम्मति को एक एक कर राज्य सरकारें वापस लेने लगी हैं, जिससे इस एजेंसी के बनाये जाने के सिद्धांत या औचित्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं।

राज्य जो आदेश जारी कर रहे हैं उनके मुताबिक़ राज्यों में अब किसी भी ज़रूरी मामले में तलाशी, छापामारी या जाँच का काम सीबीआई के बजाय राज्य सरकार के अधीन काम करने वाला ऐंटी करप्शन ब्यूरो करेगा।

दुरुपयोग का इतिहास

सीबीआई को औज़ार के तौर पर इस्तेमाल करने का इतिहास बहुत पुराना है। यह कह लें कि इसकी स्थापना के बाद से ही इसके दुरुपयोग का दौर शुरु हो गया था। आपात काल और उसके बाद के समय में क़रीब-क़रीब हर सरकार ने सीबीआई को अपने राजनीतिक औज़ार की तरह इस्तेमाल किया है। 

सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल की स्तर तक बढ़ गया इसका अंदाजा  दो सबसे बड़े अधिकारी राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा  की लड़ाई में खुलकर सामने आया। सिर्फ सीबीआई ही नहीं राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई या सत्ता काबिज रखने की जंग में चुनाव आयोग, सतर्कता आयोग, सूचना आयोग, सीएजी, रिजर्व बैंक और यहाँ तक की न्यायपालिका की साख भी सवालों के घेरे में आने से बच नहीं पाई है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजनीति के इस खेल में हम देश की स्वतंत्र एजेंसियों या संस्थानों जो देश के लोकतांत्रिक ढाँचे के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, उनकी सार्थकता को खोने की राह पर तो तेज़ी से नहीं दौड़ रहे हैं?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें