रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ बैठक में पाकिस्तान-चीन के रवैये को क़रारा जवाब देते हुए संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। पहलगाम आतंकी हमले को नज़रअंदाज़ करने और बलूचिस्तान का ज़िक्र थोपने की कोशिश पर भारत ने कड़ा रुख अपनाया। भारत की बात को एससीओ दस्तावेज़ में आखिर क्यों जगह नहीं मिली? क्या भारत की रणनीति कमजोर रही?

शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी सख़्त नीति को एक बार फिर मज़बूती से रखा, लेकिन इस मंच पर भारत की आवाज़ को दबाने की कोशिश की गई। चीन के किंगदाओ में आयोजित एससीओ बैठक के संयुक्त बयान में यह साफ़ दिखा। दस्तावेज़ में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले का ज़िक्र नहीं था। इसके बजाय, दस्तावेज़ में बलूचिस्तान का उल्लेख किया गया। पाकिस्तान अपने इस प्रोविंस में अस्थिरता के लिए भारत को लगातार ज़िम्मेदार बताता रहा है। पाकिस्तान आरोप लगाता रहा है कि बलूच मिलिटेंट को भारत सहयोग करता रहा है। हालाँकि, भारत इन दावों को खारिज करता रहा है।

पहलगाम आतंकी हमलों का ज़िक्र क्यों नहीं?

एससीओ दस्तावेज में इस मुद्दे के ज़िक्र को भारत ने अपनी संप्रभुता और आतंकवाद विरोधी नीति के ख़िलाफ़ माना। पहलगाम आतंकी हमलों पर भी भारत ने कड़ी आपत्ति जताई।

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बड़े आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे। भारत ने इस हमले को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई का एक और सबूत माना और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का फ़ैसला किया। 

एससीओ बैठक में भारत ने इस हमले को संयुक्त बयान में शामिल करने की मांग की, ताकि आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक सहमति बनाई जा सके। लेकिन पाकिस्तान और चीन ने इस मांग को ठुकरा दिया और दस्तावेज़ में पहलगाम हमले का कोई उल्लेख नहीं किया गया।

राजनाथ सिंह का सख्त रुख

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ बैठक में भारत का पक्ष मज़बूती से रखा। उन्होंने साफ़ किया कि भारत आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी जीरो टॉलरेंस नीति पर कोई समझौता नहीं करेगा। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि राजनाथ सिंह ने संयुक्त बयान को खारिज करते हुए कहा कि यह दस्तावेज़ भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को कमजोर करता है। उन्होंने पहलगाम हमले को नजरअंदाज करने को अस्वीकार्य क़रार दिया और इसे आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में एक गंभीर चूक माना। राजनाथ सिंह ने यह भी चेतावनी दी कि आतंकवाद को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और एससीओ जैसे मंचों का उपयोग आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुटता दिखाने के लिए होना चाहिए।

पाकिस्तान और चीन की रणनीति

पाकिस्तान और चीन ने एससीओ दस्तावेज़ में पहलगाम हमले का उल्लेख न करके भारत के रुख को कमजोर करने की कोशिश की। इसके बजाय दस्तावेज़ में बलूचिस्तान का ज़िक्र शामिल करने का प्रयास किया गया, जिसे भारत ने अपनी संप्रभुता पर हमला माना। पाकिस्तान लंबे समय से भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है और इस मंच पर भी उसने अपनी पुरानी नीति को दोहराया। दूसरी ओर, एससीओ के मेजबान चीन ने भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दिया। विश्लेषकों का मानना है कि यह क़दम भारत को अलग-थलग करने और एससीओ में उसकी आवाज़ को दबाने की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा था।

भारत की बात को क्यों नहीं मिली जगह?

एससीओ दस्तावेज़ में भारत की बात को शामिल न किए जाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं:

चीन-पाकिस्तान गठजोड़: एससीओ में चीन और पाकिस्तान का काफ़ी ज़्यादा प्रभाव है। दोनों देश भारत के ख़िलाफ़ कई मुद्दों पर एकजुट होकर काम करते हैं। पहलगाम हमले का ज़िक्र न करना और बलूचिस्तान का ज़िक्र शामिल करना इस गठजोड़ का हिस्सा माना जा रहा है।

एससीओ की सर्वसम्मति नीति: एससीओ में सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं। अगर कोई भी सदस्य देश किसी मुद्दे पर सहमत नहीं होता, तो वह दस्तावेज़ में शामिल नहीं होता। इस मामले में पाकिस्तान और चीन ने भारत की मांग का विरोध किया।

राजनीतिक दबाव: एससीओ का एक प्रमुख सदस्य और इस बार के मेजबान चीन ने भारत के रुख को कमजोर करने के लिए अपनी स्थिति का इस्तेमाल किया। यह भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव का भी परिणाम हो सकता है, खासकर सीमा विवाद और अन्य मुद्दों के संदर्भ में।

आतंकवाद की परिभाषा पर असहमति: एससीओ में आतंकवाद की परिभाषा और इसे संबोधित करने के तरीक़े पर सदस्य देशों के बीच मतभेद हैं। पाकिस्तान और चीन आतंकवाद के कुछ रूपों को नज़रअंदाज़ करते हैं, खासकर जब वे भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होते हैं।

भारत की आतंकवाद विरोधी नीति

भारत ने हमेशा आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़ा रुख अपनाया है। पहलगाम हमले के बाद भारत ने अपनी सीमाओं पर सुरक्षा-व्यवस्था को और मज़बूत किया है और आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाइयों को तेज़ किया है। राजनाथ सिंह ने बैठक में 'ऑपरेशन सिंदूर' का ज़िक्र किया, जो आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत की हालिया कार्रवाइयों का हिस्सा है। भारत ने यह भी साफ़ किया कि वह आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने से नहीं हिचकेगा।

एससीओ और भारत की भूमिका

शंघाई सहयोग संगठन एक क्षेत्रीय संगठन है। इसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई को बढ़ावा देना है। भारत ने इस मंच पर हमेशा आतंकवाद के ख़िलाफ़ मज़बूत रुख अपनाया है और इसे वैश्विक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा माना है। हालाँकि, इस बार भारत की मांग को नज़रअंदाज़ करना एससीओ की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है।

एससीओ बैठक में राजनाथ सिंह के इस फ़ैसले की भारत में ख़ूब सराहना हो रही है। एक्स पर कई यूजरों ने इसे भारत की संप्रभुता और आतंकवाद के ख़िलाफ़ दृढ़ नीति का प्रतीक बताया। भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह अपनी संप्रभुता और आतंकवाद विरोधी नीति पर कोई समझौता नहीं करेगा।