सोनम वांगचुक की पत्नी डॉ. गीतांजलि अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में एक संशोधन याचिका दाखिल कर एनएसए हिरासत को चुनौती दी है। वांगचुक को हाल ही में लद्दाख में हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़कने के बाद गिरफ्तार किया गया था। अंगमो का कहना है कि हिरासत का आदेश क़ानूनी रूप से ग़लत है, क्योंकि यह पुरानी और बेकार एफ़आईआर, ग़ैर-ज़रूरी सामग्री और झूठे बयानों पर आधारित है। अंगमो ने सोनम वांगचुक की हिरासत को उनके असहमति के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार को रोकने का एक सोचा-समझा प्रयास करार दिया है। 

अंगमा ने याचिका में कहा है कि हिरासत की वजहें पाँच एफ़आईआर पर टिकी हैं। इनमें से तीन एफ़आईआर एक साल से ज़्यादा पुरानी हैं। इनमें वांगचुक के ख़िलाफ़ कोई इल्जाम नहीं है और न ही उनका नाम लिया गया है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार पांचवीं एफ़आईआर हिरासत से एक दिन पहले की है, जिसमें सिर्फ 'अज्ञात उपद्रवियों' का ज़िक्र है। इसमें लिखा है, 'कुछ शरारती युवक साजिश रचकर भूख हड़ताल में शामिल लोगों को उकसाकर जुलूस में बदल दिया... फिर इन उपद्रवियों ने लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल यानी एलएएचडीसी के दफ्तर पर पत्थर फेंके... पुलिस पर हमला किया।'
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रिपोर्ट के अनुसार याचिका में कहा गया है कि केवल चौथी एफ़आईआर में वांगचुक का नाम है, लेकिन वह लेह एपेक्स बॉडी यानी एबीएल में शामिल होने के तुरंत बाद दर्ज की गई थी। यह पूरी तरह अलग घटना से जुड़ी है। अंगमो ने कहा, 'हिरासत का आदेश पूरी तरह गलत और मनमानी है। पांच में से तीन एफआईआर 2024 की हैं, जिनका सितंबर 2025 की हिरासत से कोई सीधा संबंध नहीं है। चार एफआईआर 'अज्ञात व्यक्तियों' के खिलाफ हैं और वांगचुक का नाम नहीं है। एनएसए के तहत हिरासत का कोई स्पष्ट आधार नहीं बनता।'

'लोगों को भड़काने का इल्जाम ग़लत'

याचिका में कहा गया है कि वांगचुक लद्दाख को राज्य का दर्जा और संरक्षण की मांग करने वाली एबीएल और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए का आम समर्थक थे। 2025 में वे एबीएल के सदस्य बने। विवाद हुआ तो एबीएल नेतृत्व ने उन्हें हाई पावर्ड कमिटी यानी एचपीसी और गृह मंत्रालय से बातचीत की सब-कमिटी में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया। लेकिन गृह मंत्रालय को वांगचुक के शामिल होने पर आपत्ति थी। एबीएल और केडीए ने कहा कि उनकी टीम का फैसला उनका अपना है, दिल्ली से दखल नहीं चलेगा।

याचिका में कहा गया कि वांगचुक ने एबीएल को कोई प्रदर्शन भड़काने के लिए नहीं उकसाया। दोनों संगठनों ने मई 2025 की बैठक के बाद बातचीत न होने पर आंदोलन तेज करने की सार्वजनिक घोषणा की थी। अगस्त 2025 में कारगिल में तीन दिन की संयुक्त भूख हड़ताल भी हो चुकी थी, जब वांगचुक कोई पद पर नहीं थे।

'प्रदर्शन से सरकार पर निशाना साधने का आरोप ग़लत'

याचिका में इस आरोप का खंडन किया गया है कि वांगचुक ने सरकार को निशाना बनाने के लिए विरोध प्रदर्शन का इस्तेमाल किया, क्योंकि उन्होंने राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में सरकारों के साथ अथक प्रयास किया है।

याचिका में कहा गया कि वे 30 साल से शिक्षा सुधार और जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे हैं। राज्य सरकारों, केंद्र सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से 30 से ज्यादा पुरस्कार मिले हैं। लेकिन अगस्त-सितंबर 2025 में अचानक इल्जाम लगे। उनकी संस्थाओं पर नोटिस, जमीन लीज रद्द, सीबीआई जांच, एफसीआरए रद्द और इनकम टैक्स समन आए। अंगमो ने कहा, 'अक्टूबर 2025 में एलएएचडीसी लेह चुनाव से दो महीने पहले ये सब हुआ, जब वांगचुक ने 2020 चुनाव के वादों जैसे छठी अनुसूची की मांग उठाई। हिरासत में लेने वाले अधिकारी का इरादा बदनीयती भरा लगता है।'
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'नेपाल-बांग्लादेश के ज़िक्र को गलत समझा गया'

अंगमो ने कहा है कि वांगचुक की हिरासत की वजह में वांगचुक के भाषणों में नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश का ज़िक्र है। लेकिन पूरा भाषण देखें तो वे पहले वक्ताओं की बात दोहरा रहे थे। उन्होंने अपने बयान पर सफ़ाई भी दी है, 'इन देशों की तरह हिंसा, पत्थर या तीर से नहीं। लद्दाख में शांतिपूर्ण क्रांति होगी, जहां हम भूख हड़ताल करेंगे, किसी को परेशान नहीं करेंगे और लद्दाख को उदाहरण बनाएंगे।' अंगमो ने कहा, 'पहली पंक्ति छिपाकर भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। वांगचुक ने 24 सितंबर की हिंसा से पहले कोई उकसावे वाली बात नहीं की। वे सिर्फ राज्य की मांग पर शांतिपूर्ण भूख हड़ताल कर रहे थे। हिंसा की निंदा की और शांति की अपील की।'

बता दें कि अंगमो ने वांगचुक की नज़रबंदी को चुनौती देने वाली अपनी रिट याचिका में संशोधन करने और अतिरिक्त आधार उठाने की अनुमति मांगी थी। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ ने बुधवार को अंगमो को ये बदलाव करने की अनुमति दे दी। इसी के बाद अंगमो ने रिट याचिका में संशोधन किया है। जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद वांगचुक को लेह में पुलिस गोलीबारी में चार प्रदर्शनकारियों के मारे जाने के दो दिन बाद 26 सितंबर को हिरासत में लिया गया था।