विश्वविद्यालयों में दलित, पिछड़े और आदिवासियों के आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब नया संकट खड़ा हो गया है। अब शायद किसी विश्वविद्यालय में उपलब्ध कुल पदों के अनुसार सीटें आरक्षित नहीं होंगी। इसका असर दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे जुड़े कॉलेजों के क़रीब 2000 आरक्षित वर्गों के असिसटेंट प्रफ़ेसर पर पड़ेगा। इनकी एड-हॉक नियुक्तियाँ हुई थीं यानी वे स्थाई नहीं थे। इन एड-हॉक असिसटेंट प्रफ़ेसर की नियुक्तियाँ हर 4 महीने पर की जानी होती है। और अब जो नियुक्तियाँ होंगी वे यूजीसी के आरक्षण से जुड़े नए नियम के तहत होंगी। इसमें यह आशंका है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दलितों, पिछड़ों और आदिवासी तबक़ों के लिए कोटा प्रणाली के तहत आरक्षित शिक्षण पदों को लगभग समाप्त कर दिया जाएगा।