जम्मू-कश्मीर विधानसभा में वक्फ क़ानून को लेकर ज़बरदस्त हंगामा हुआ। विपक्ष और सत्ताधारी विधायकों के बीच तीखी बहस के बाद हाथापाई तक की नौबत आ गई। आखिर विवाद की जड़ क्या है?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पिछले तीन दिनों से वक़्फ़ संशोधन अधिनियम को लेकर तनाव और हंगामा चरम पर है। सदन के अंदर तो लगातार हंगामा हो ही रहा है, विधानसभा परिसर में भी विधायकों के बीच झड़प की ख़बरें सामने आईं। एक वीडियो भी सामने आया जिसमें बीजेपी विधायकों और आप विधायक के बीच बहस और हाथापाई को देखा जा सकता है। इस बीच, नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों ने वक़्फ़ क़ानून पर चर्चा के लिए प्रश्नकाल स्थगित करने की मांग की। इस मांग को लेकर सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस और विपक्षी बीजेपी के बीच तीखी नोकझोंक हुई। इसके बाद स्थिति इतनी बिगड़ गई कि विधानसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। तो सवाल है कि आख़िर वक़्फ़ क़ानून को लेकर विधानसभा में ऐसा क्या चल रहा है जो लगातार तीसरे दिन भी हंगामे का कारण बन रहा है?
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक जम्मू-कश्मीर में एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा बन गया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी और कांग्रेस जैसे दलों का कहना है कि यह क़ानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों और आस्था पर सीधा हमला है। नेशनल कॉन्फ़्रेंस के विधायकों ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव लाने की कोशिश की, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर ने नियम 58 का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया। उनका तर्क था कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए इस पर विधानसभा में चर्चा नहीं हो सकती। इस फ़ैसले ने सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों को भड़का दिया, जिसके बाद उन्होंने नारेबाजी और प्रदर्शन शुरू कर दिया।
दूसरी ओर, बीजेपी विधायकों ने इस मांग का कड़ा विरोध किया। उनका कहना है कि यह क़ानून पारदर्शिता बढ़ाने और वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए लाया गया है। बीजेपी के नेता सुनील शर्मा ने इसे राजनीति से प्रेरित क़रार देते हुए कहा कि यह केवल जनता को भड़काने का प्रयास है। इस विरोध के बीच विधायकों के बीच धक्का-मुक्की और हाथापाई की स्थिति पैदा हो गई, जो विधानसभा की गरिमा पर सवाल उठाती है।
तीन दिन से जारी हंगामा: क्या है माजरा?
वक़्फ़ अधिनियम को लेकर विधानसभा में यह हंगामा सोमवार से शुरू हुआ, जब नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक तनवीर सादिक और नज़ीर गुरेज़ी ने वक़्फ़ क़ानून पर चर्चा की मांग उठाई। पहले दिन भी स्पीकर ने इसे खारिज किया, जिसके बाद विधायकों ने वेल में आकर नारेबाजी की। मंगलवार को पीडीपी ने एक नया प्रस्ताव पेश किया, जिसमें केंद्र से इस क़ानून को निरस्त करने की मांग की गई। इस दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक अब्दुल मजीद लार्मी ने अपना काला कोट फाड़कर विरोध जताया, जबकि बीजेपी विधायकों ने 'जय श्री राम' जैसे नारे लगाए।
झड़प और आरोप-प्रत्यारोप
बुधवार को यह तनाव चरम पर पहुंच गया, जब विधानसभा परिसर में विधायकों के बीच शारीरिक तौर पर झड़प की नौबत आ गई।
विधानसभा गैलरी में आप विधायक मेहराज मलिक ने बीजेपी विधायकों पर आरोप लगाया कि वे पुलिस का इस्तेमाल कर उन्हें सदन में आने से रोक रहे हैं। उन्होंने कई आरोप लगाए और कहा कि बीजेपी और पीडीपी मिली हुई है। इतना कहते ही दोनों पक्षों में विवाद बढ़ गया और हाथापाई हो गई। इस दौरान मेहराज मलिक को किसी ने धक्का दिया और वे कांच के टेबल से टकरा गए। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि आप विधायक मेहराज गालियाँ दे रहे थे। वीडियो में भी मेहराज को जोर-जोर से बोलते देखा गया।
बहरहाल, वक़्फ़ क़ानून को लेकर जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक ध्रुवीकरण गहरा गया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी इसे धार्मिक पहचान और भावनाओं से जोड़ रही हैं, जबकि बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ क़दम बताकर अपनी स्थिति मज़बूत करना चाहती है।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधानसभा जैसे संवैधानिक मंच पर विधायकों का यह व्यवहार क्या संदेश दे रहा है? काले कोट फाड़ना, नारेबाजी, और हाथापाई जैसे कृत्य न केवल सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि जनता के बीच भी निराशा पैदा करते हैं। पिछले एक दशक से राजनीतिक अस्थिरता और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों से जूझ रही जम्मू-कश्मीर की जनता की क्या यही उम्मीदें होंगी? ऐसे में वक़्फ़ कानून पर यह हंगामा एक बार फिर क्षेत्रीय राजनीति को धार्मिक और भावनात्मक मुद्दों की ओर मोड़ रहा है।
वक़्फ़ क़ानून पर यह विवाद जल्द सुलझता नहीं दिख रहा। नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके सहयोगी दलों का कहना है कि वे इस मुद्दे को सड़क से लेकर सदन तक उठाते रहेंगे। तनवीर सादिक ने कहा, 'यह जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए भावनात्मक मुद्दा है। हम अपनी बात विधानसभा में नहीं रखेंगे तो कहां रखेंगे?' वहीं, बीजेपी का दावा है कि यह क़ानून लागू हो चुका है और विधानसभा का इस पर चर्चा करना असंवैधानिक होगा।
इस बीच, यह हंगामा जम्मू-कश्मीर की नई चुनी हुई सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। केंद्र शासित प्रदेश के पहले सीएम मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के सामने यह साबित करने की ज़िम्मेदारी है कि उनकी सरकार भावनात्मक मुद्दों से ऊपर उठकर विकास पर ध्यान दे सकती है। लेकिन जिस तरह से यह मामला तूल पकड़ रहा है, वह आने वाले दिनों में और तनाव पैदा कर सकता है।
वक़्फ़ क़ानून पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में चल रहा हंगामा केवल एक क़ानूनी मसले से कहीं ज़्यादा है। यह क्षेत्रीय पहचान, धार्मिक भावनाओं, और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। सवाल यह है कि क्या यह हंगामा जनता की भलाई के लिए है या सिर्फ़ राजनीतिक लाभ के लिए?