बिंदु और कनकदुर्गा आख़िर सबरीमला मंदिर के भीतर कैसे पहुँच गईं? क्या आपको पता है कि यह एक ज़बर्दस्त मनोवैज्ञानिक प्रयोग था, जिसे एक मनोविज्ञानी ने एक ख़ास तकनीक के साथ पूरी तैयारी के साथ किया था और वह इसमें पूरी तरह सफ़ल रहे?
सबरीमला में 'अदृश्य गुरिल्ला' तकनीक से घुसी थीं कनक और बिंदु!
- केरल
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- 29 Mar, 2025
बिंदु और कनकदुर्गा आख़िर सबरीमला मंदिर के भीतर कैसे पहुँच गईं? यह एक ज़बर्दस्त मनोवैज्ञानिक प्रयोग था, जिसे एक मनोविज्ञानी ने पूरी तैयारी के साथ किया था।

बिंदु और कनक ने मंदिर के भीतर जाने के लिए न कोई भेष बदला, न वे चोरी-छुपे वहाँ गई थीं, और न ही किसी ख़ुफ़िया दरवाज़े से अंदर घुसी थीं। आपको जान कर बड़ी हैरानी होगी कि ये दोनों महिलाएँ पूरे रास्ते भारी भीड़ के साथ चलते हुए मंदिर तक गईं थी, लेकिन उन पर किसी की नज़र नहीं पड़ी! वह वीआईपी गेट से मंदिर के भीतर गईं। ज़ाहिर है कि गेट वीआईपी होगा, तो वहाँ सुरक्षा भी कड़ी होगी, लेकिन किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं!
- यही नहीं, बिंदु और कनक दोनों ने प्रौढ़ महिलाओं की तरह साड़ियाँ भी नहीं पहनी थीं, बल्कि वे चूड़ीदार पहने थीं। युवा दिख रही थीं। फिर भी सबरीमला में दर्शन के लिए आई भीड़ का ध्यान उनकी तरफ़ नहीं गया! कैसे हुआ यह करिश्मा? ये महिलाएँ वहाँ आम लोगों की तरह तस्वीरें खींचते, विडियो बनाते हुए भीड़ के साथ चलती रहीं। फिर भी किसी ने उन्हें वहाँ जाने से क्यों नहीं रोका?
यह कोई जादू नहीं था। कोई सम्मोहन की ट्रिक भी नहीं थी। बल्कि यह मनोविज्ञान के एक सिद्धाँत का चमत्कार था। मनोविज्ञान व्यक्तियों के व्यवहार और किसी स्थिति में उनकी प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। इस अध्ययन के लिए उसमें तरह-तरह की तकनीकें और प्रयोग किए जाते हैं। ऐसा ही एक प्रयोग है 'अदृश्य गुरिल्ला' का। कनक और बिंदु को सबरीमला के भीतर पहुँचाने के लिए त्रिशूर के मनोविज्ञानी डॉ. प्रसाद अमोरे ने इसी 'अदृश्य गुरिल्ला' तकनीक का प्रयोग किया।
इस बारे में वेबसाइट 'द न्यूज़ मिनट' ने डॉ. अमोरे से विस्तार से बातचीत कर एक रिपोर्ट छापी है। डॉ. अमोरे का कहना है कि मनोविज्ञान का एक सामान्य-सा सिद्धाँत है कि अगर लोगों का ध्यान किसी एक ख़ास चीज़ या बात की तरफ़ फ़ोकस कर दिया जाए, तो वे आसपास घट रही बहुत-सी बातों पर ध्यान नहीं दे पाते। 'अदृश्य गुरिल्ला' यही प्रयोग है, जिसमें कुछ लोगों के समूह को एक विडियो दिखाया जाता है और उनसे किसी ख़ास बात पर ध्यान देने को कहा जाता है। लोग उस बात पर ध्यान देते हुए नज़र गड़ाए हुए विडियो को देखते हैं। विडियो में बहुत-सी दूसरे दृश्यों के साथ एक गुरिल्ला भी पल भर के लिए दिखता है। लेकिन जब विडियो ख़त्म होता है और लोगों से पूछा जाता है तो पता चलता है कि वह विडियो में कोई गुरिल्ला नहीं देख पाए। इतने भारी भरकम शरीर वाले गुरिल्ला पर लोगों की नज़र इसीलिए नहीं पड़ पाती क्योंकि वह विडियो में किसी और चीज़ को बारीकी से तलाश रहे थे।
प्रसाद अमोरे ने इसी तकनीक का इस्तेमाल किया। सबरीमला में इसके पहले जिन महिलाओं ने घुसने की कोशिश की थी, उन सबने पहले से इसकी घोषणा की थी। फिर वह पुलिस के घेरे में मंदिर की तरफ़ बढ़ती थीं। इसलिए लोगों के मन में ये दोनों बातें और छवियाँ बैठ चुकी थीं। यानी उन्हें पहले से पता हो जाएगा कि महिलाएँ मंदिर में आने की कोशिश करेंगी और वह जब आएँगी, तो पुलिस उनकी सुरक्षा में होगी।
- 'अदृश्य गुरिल्ला' प्रयोग से संकेत लेते हुए अमोरे ने निष्कर्ष निकाला कि अगर महिलाएँ बिना किसी शोर-शराबे के, बिना किसी घोषणा के और पुलिस की मौजूदगी के बिना अकेले भीड़ का सामान्य हिस्सा बन कर जाएँगी, तो उन पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा क्योंकि लोगों के अवचेतन मन पर यही छवि बनी हुई है कि ऐसी कोई महिला पुलिस घेरे में ही आएगी।