मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में एक सरकारी स्कूल की दीवार की पुताई में अजीबोगरीब 'भ्रष्टाचार' का मामला सामने आया है। क्या एक आदमी से होने वाले काम को 233 लोगों का काम बताकर बिल बनाने की कल्पना भी की जा सकती है?
सिर्फ़ एक दीवार। 4 लीटर पेंट। और पुताई के लिए 168 मजदूर और 65 राजमिस्त्री लग गए! है न अजीबोगरीब केस! यह मामला बीजेपी शासित मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में एक सरकारी हाई स्कूल का है। इसकी दीवार की पुताई को लेकर एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। आरोप लगाया जा रहा है कि ऐसा खुला भ्रष्टाचार हो रहा है।
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के ग्राम सकंदी के सरकारी हाई स्कूल में महज 4 लीटर ऑयल पेंट से पुताई के इस काम का बिल 1,06,984 रुपये का बनाया गया। जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ ने मंजूरी दे दी। सोशल मीडिया पर इसकी बिल की कॉपी वायरल हुई है और लोग सवाल कर रहे हैं कि आख़िर ऐसा अजीबोगरीब भ्रष्टाचार का मामला कैसे हो सकता है और डीईओ बिना किसी जाँच-पड़ताल के मंजूरी कैसे दे सकते हैं।
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, शहडोल जिले के सकंदी हाई स्कूल में 4 लीटर ऑयल पेंट की खरीद की गई। इसकी क़ीमत 784 रुपये यानी 196 रुपये प्रति लीटर बताई गई। इस पेंट को दीवारों पर लगाने के लिए 168 मजदूरों को 67,200 रुपये और 65 मिस्त्रियों को 39,000 रुपये का भुगतान किया गया। कुल मिलाकर, इस छोटे से काम के लिए 1,06,984 रुपये का खर्च दिखाया गया। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि सुधाकर कंस्ट्रक्शन द्वारा बनाया गया यह बिल 5 मई 2025 को तैयार किया गया, लेकिन स्कूल प्राचार्य ने इसे 4 अप्रैल 2025 को ही सत्यापित कर दिया। यानी बिल बनाने के दिन की तारीख़ से भी एक महीने पहले ही इसको मंजूरी दे दी गई। है न अज़ीबोगरीब मामला।
20 लीटर पेंट के लिए 275 मजदूर, 150 मिस्त्री
इसी तरह, ब्यौहारी के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, निपानिया में 20 लीटर पेंट के लिए 275 मजदूर और 150 मिस्त्री लगाए गए। इसका बिल 2,31,650 रुपये का बनाया गया। दोनों मामलों में ठेकेदार सुधाकर कंस्ट्रक्शन का नाम सामने आया है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि जाँच में यह भी पाया गया कि स्कूलों में दर्शाए गए काम मौके पर नहीं हुए और यह पूरा मामला कागजी गोलमाल का हिस्सा लगता है।
सोशल मीडिया पर गुस्सा और व्यंग्य
यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद लोगों ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं। कांग्रेस नेता कुणाल चौधरी ने लिखा, 'मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार एक बीमारी नहीं, संस्कृति बन गई है। 4 लीटर पेंट के लिए 168 मजदूर और 65 मिस्त्री? यह पेंट नहीं, सिस्टम की ईमानदारी पर पुताई है।'
नमिता शर्मा नाम की यूज़र ने लिखा, "ये सिर्फ दीवार नहीं, पूरा सिस्टम रंगा गया है साहब। शिक्षा विभाग ने इस बिल को पास भी कर दिया!'
एक अन्य यूज़र यश समाजवादी ने लिखा, '4 लीटर पेंट में 1.06 लाख का खर्च? यह शिक्षा विभाग की शिक्षा पर सवाल उठाता है।' सिंह साब नाम के यूज़र ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, 'दीवार पर सफेदी चढ़ी या सिस्टम पर? 4 लीटर पेंट में 233 मजदूर!'
कई यूजर्स ने इसे भ्रष्टाचार का खुला खेल बताते हुए जांच की मांग की है। @UmeshCol नाम के यूज़र ने लिखा, 'D.E.O. ने बिना काम के फर्जी पेमेंट को मंजूरी दी। यह शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार की पुताई है।'
जिला शिक्षा अधिकारी का बयान
जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मरपाची ने कहा है कि इसकी जाँच की जा रही है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'यह मामला मेरे संज्ञान में सोशल मीडिया के माध्यम से आया है। मैं जल्द ही जांच करवाकर आवश्यक कार्रवाई करूंगा।' हालांकि, प्राचार्य ने इस मामले पर कोई साफ़ जवाब देने से इनकार कर दिया।
जाँच के आदेश, लेकिन सवाल बरकरार
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शहडोल कलेक्टर ने मामले की जाँच के लिए एसडीएम ब्यौहारी को नियुक्त किया है, जिन्होंने पुष्टि की है कि दर्शाए गए काम मौके पर नहीं पाए गए। लेकिन सवाल यह उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर फर्जी बिल कैसे पास हो गए? क्या यह सिर्फ लापरवाही थी, या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है? सोशल मीडिया पर लोग इसे मध्य प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों का प्रतीक बता रहे हैं।