उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे (दाएं)।
महाराष्ट्र की राजनीति शनिवार को एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने जा रहा है। दो दशकों के बाद ठाकरे परिवार के चचेरे भाई, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे, एक मंच पर एक साथ नजर आएंगे। दोनों नेता 5 जुलाई को मुंबई के वर्ली स्थित एनएससीआई डोम में 'मराठी विजय दिवस' के रूप में एक 'विजय रैली' कर रहे हैं, जो महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्राइमरी स्कूलों में तीन-भाषा नीति को वापस लेने की जीत का जश्न है।
इस रैली का आयोजन शिवसेना (यूबीटी) और मनसे द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। दोनों दल मराठी भाषा और अस्मिता के मुद्दे पर एकजुट होकर सरकार के खिलाफ अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में हैं। यह रैली पहले विरोध मार्च के रूप में प्रस्तावित थी, लेकिन बीजेपी नीत महायुति सरकार द्वारा 29 जून 2025 को हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने वाले दो सरकारी प्रस्तावों (जीआर) को वापस लेने के बाद इसे 'विजय रैली' में बदल दिया गया।
बीजेपी पर मराठी भाषियों को बांटने का आरोप
महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल 2025 को एक जीआर जारी कर कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का निर्णय लिया था। इस कदम को नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत लागू किया गया था। हालांकि, शिवसेना (यूबीटी), मनसे और एनसीपी (एसपी) सहित विपक्षी दलों ने इसे 'मराठी अस्मिता पर हमला' करार देते हुए कड़ा विरोध जताया। जनता के भारी दबाव और विरोध के बाद, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 17 जून को संशोधित जीआर जारी कर हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया। उद्धव ठाकरे ने इसे 'मराठी एकजुटता की जीत' बताते हुए सरकार पर मराठी भाषियों को बांटने की साजिश का आरोप लगाया।
रैली का नाम- मराठिचा आवाज
कोली समुदाय ने दोनों भाइयों की एकता पर पूजा की
शुक्रवार को ठाणे शहर में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे कार्यकर्ताओं ने संयुक्त रूप से मिठाइयां बांटकर और पारंपरिक ढोल-नगाड़ों के साथ उत्सव मनाकर इस एकता का प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया। कोली समुदाय ने भी ठाकरे भाइयों की एकता के लिए ठाने के लुईसवाडी में आई एकविरा मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया।
नाम की रैली, बड़े राजनीतिक संकेत हैं इसके
यह रैली न केवल मराठी अस्मिता का उत्सव है, बल्कि आगामी स्थानीय निकाय चुनावों, विशेष रूप से बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश भी दे रही है। दोनों ठाकरे भाइयों के बीच दो दशकों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बाद यह पहला मौका है जब वे एक साथ मंच साझा करेंगे। इससे पहले, 2005 में मालवन विधानसभा उपचुनाव के दौरान दोनों ने एक साथ मंच साझा किया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एकता मराठी वोटों का ध्रुवीकरण कर सकती है और बीएमसी जैसे महत्वपूर्ण चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
हालांकि, कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) ने इस रैली से दूरी बनाए रखने का फैसला किया है। कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ है, लेकिन गैर-मराठी वोटों को ध्यान में रखते हुए वे इस रैली में शामिल नहीं होंगे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के कारण इस आयोजन से अनुपस्थित रहेंगे।
ठाकरे भाइयों की एकता का इतिहास
दोनों दलों की छवि पर सवाल
उद्धव और राज ठाकरे ने इस रैली को मराठी एकजुटता का प्रतीक बताया है और चेतावनी दी है कि वे भविष्य में भी मराठी भाषा और संस्कृति पर किसी भी 'थोपे गए' निर्णय का विरोध करेंगे। उद्धव ने नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता वाली सरकारी समिति पर भी सवाल उठाए, जिसे भाषा नीति की समीक्षा के लिए गठित किया गया है, और इसे 'शिक्षा के मुद्दे पर गंभीरता की कमी' करार दिया।
यह रैली न केवल मराठी अस्मिता की जीत का उत्सव है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए समीकरण की शुरुआत भी हो सकती है। सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह ठाकरे भाइयों की एकता स्थायी होगी और क्या यह बीएमसी और अन्य स्थानीय चुनावों में मराठी वोटों को एकजुट करने में सफल होगी। बहुत कुछ इस बात से तय होगा कि अपने भाषणों में दोनों भाई क्या संकेत देते हैं।