महाराष्ट्र की सियासत में उस वक़्त हलचल मच गई, जब 20 साल के लंबे अंतराल के बाद ठाकरे परिवार के दो धुरंधर, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर नज़र आए। मराठी अस्मिता की अलख जगाने वाली 'मराठी विजय दिवस' रैली में उद्धव ने गठबंधन का संकेत देते हुए कहा, 'हम एक साथ आए हैं और एक साथ रहेंगे।' क्या यह ऐतिहासिक पुनर्मिलन महाराष्ट्र की राजनीति को नया रंग देगा, या यह सिर्फ़ कुछ समय के लिए एकता है? 

दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ है। शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस के अध्यक्ष राज ठाकरे ने लगभग दो दशक के लंबे राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार करते हुए एक मंच साझा किया। यह ऐतिहासिक पुनर्मिलन मुंबई के वर्ली स्थित एनएससीआई डोम में आयोजित 'मराठी विजय दिवस' रैली में हुआ, जहां दोनों नेताओं ने एकजुट होकर मराठी अस्मिता और भाषा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई। इस रैली का आयोजन महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फ़ैसले को वापस लेने के जश्न के रूप में किया गया।

उद्धव और राज ठाकरे चचेरे भाई हैं। दोनों 2005 में राजनीतिक मतभेदों के कारण अलग हो गए थे। उस समय शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था, जिससे राज ठाकरे को निराशा हुई थी। इसके बाद 2006 में राज ने शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस की स्थापना की थी। तब से दोनों पार्टियाँ मराठी वोट बैंक के लिए एक-दूसरे के ख़िलाफ़ प्रतिस्पर्धा करती रही हैं।

हालाँकि, हाल के वर्षों में दोनों पार्टियों को राजनीतिक रूप से कमजोर होते देखा गया। 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना यूबीटी ने 20 सीटें जीतीं, जबकि एमएनएस कोई भी सीट हासिल नहीं कर सकी। इस पृष्ठभूमि में दोनों नेताओं का एक मंच पर आना और संभावित गठबंधन की बात करना महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

हिंदी थोपने के ख़िलाफ़ एकजुटता

यह रैली महाराष्ट्र सरकार द्वारा 16 अप्रैल को जारी किए गए दो सरकारी प्रस्तावों को वापस लेने के बाद आयोजित की गई। इसमें कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का प्रस्ताव था। इस फ़ैसले का शिवसेना यूबीटी, एमएनएस और अन्य विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया था। दोनों ठाकरे भाइयों ने इसे 'हिंदी थोपने' की कोशिश क़रार देते हुए मराठी अस्मिता के ख़िलाफ़ एक क़दम बताया था।

राज ठाकरे ने रैली में कहा, 'मैंने एक साक्षात्कार में कहा था कि मेरा महाराष्ट्र किसी भी राजनीति और झगड़े से बड़ा है। आज 20 साल बाद उद्धव और मैं एक मंच पर हैं। यह वह काम है जो बालासाहेब भी नहीं कर सके, लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया।' इस टिप्पणी में राज ने व्यंग्यात्मक रूप से फडणवीस को इस एकजुटता का श्रेय दिया, जिसे उन्होंने मराठी लोगों की एकता का परिणाम बताया।

बालासाहेब ठाकरे का सपना हम पूरा करेंगे: राज

राज ठाकरे ने मराठी अस्मिता को लेकर जोरदार बयान दिया। उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र में मराठी के साथ कोई समझौता नहीं होगा। बालासाहेब ठाकरे का सपना हम पूरा करेंगे। मराठी के लिए यह एकता बरकरार रहनी चाहिए। बीजेपी सरकार को तीन भाषा फॉर्मूले पर अपने नोटिफिकेशन वापस लेने पड़े, क्योंकि उन्हें एहसास हो गया कि महाराष्ट्र इसे स्वीकार नहीं करेगा।"

इतिहास का हवाला देते हुए राज ने कहा, 'मराठा साम्राज्य ने देश के आधे हिस्से पर शासन किया, जिसमें गुजरात और उत्तर भारत के राज्य शामिल थे। क्या हमने मराठी थोपी? नहीं। हिंदी तो मात्र 200 साल पुरानी है। फिर इसे अनावश्यक रूप से क्यों थोपा जा रहा था? दरअसल, वे यह परखना चाहते थे कि क्या मुंबई को महाराष्ट्र से अलग किया जा सकता है।'

राज ने सवाल उठाया, 'लालकृष्ण आडवाणी ने एक क्रिश्चियन मिशनरी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई की... अंग्रेजी माध्यम में... क्या कोई उनकी हिंदुत्व की प्रतिबद्धता पर सवाल उठा सकता है?' उन्होंने आगे कहा, 'श्रीकांत ठाकरे (मेरे दादाजी) ने भी अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई की थी... क्या आप उनकी मराठी के प्रति निष्ठा पर सवाल उठा सकते हैं? आपने कहां और किस भाषा में पढ़ाई की, इसका मराठी के प्रति आपकी प्रतिबद्धता से कोई लेना-देना नहीं है। यह तो आपके भीतर से आता है।'

उद्धव ने भी इस अवसर पर मराठी गौरव पर जोर देते हुए कहा, 

हमने एक साथ आने का फ़ैसला किया है और यह एकता स्थायी होगी। राज ने इतना शानदार भाषण दिया कि उन्हें कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
उद्धव ठाकरे
शिवसेना यूबीटी प्रमुख

रैली का माहौल: मराठी गौरव का उत्सव

रैली में शिवसेना यूबीटी और एमएनएस के कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ रही। रैली शुरू होने से पहले मराठी लोक संगीत और नृत्य ने माहौल को उत्साहपूर्ण बना दिया। दोनों नेताओं ने एक साथ छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और मराठी गीत 'जय जय महाराष्ट्र माझा' की धुन पर भीड़ का अभिवादन किया। कार्यकर्ताओं ने 'आमची ओळख मराठी' जैसे नारे लगाए और बैनर-पोस्टर प्रदर्शित किए।

शिवसेना यूबीटी के सांसद संजय राउत ने इस रैली को महाराष्ट्र के लिए एक उत्सव करार दिया और कहा, 'यह ऐतिहासिक क्षण है कि ठाकरे परिवार के दो प्रमुख नेता, जो अपनी राजनीतिक विचारधाराओं के कारण अलग हो गए थे, 20 साल बाद एक साथ आए हैं।'

क्या यह गठबंधन लंबे समय तक टिकेगा?

यह रैली न केवल मराठी अस्मिता के लिए एक जीत का उत्सव थी, बल्कि यह आगामी स्थानीय निकाय चुनावों, विशेष रूप से बृहन्मुंबई नगर निगम यानी बीएमसी चुनावों के लिए एक रणनीतिक क़दम भी माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यह एकता मराठी वोट बैंक को एकजुट करने में मदद कर सकती है, जो मुंबई और आसपास के जिलों में 30-35% तक है।

हालांकि, कुछ सवाल अभी भी बने हुए हैं। क्या यह एकता केवल मराठी मुद्दे तक सीमित रहेगी, या यह एक बड़े राजनीतिक गठबंधन में तब्दील होगी? सीट बंटवारे और नेतृत्व जैसे मुद्दों पर सहमति कैसे बनेगी? 

मराठी अस्मिता या राजनीतिक रणनीति?

उद्धव और राज ठाकरे का यह पुनर्मिलन न केवल मराठी अस्मिता के लिए एक अहम क्षण है, बल्कि यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए समीकरण की शुरुआत भी हो सकता है। दोनों नेताओं ने साफ़ कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित हैं, लेकिन इस एकता का असली प्रभाव आगामी बीएमसी और अन्य स्थानीय निकाय चुनावों में ही दिखेगा।

फिलहाल, यह रैली मराठी गौरव का एक शक्तिशाली प्रदर्शन थी, जिसमें ठाकरे भाइयों ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता को साबित करने की कोशिश की। क्या यह एकता महाराष्ट्र की राजनीति को नया आकार देगी?